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________________ सत्य-असत्य के रहस्य संसार के धर्म, नहीं है वह मोक्ष की पटरी? ऐसा है न, यह सत्य-असत्य, वह चीज़ ही मोक्ष के लिए नहीं है। वह तो संसारमार्ग में बताया है कि यह पुण्य और पाप, ये सब साधन हैं। पुण्य करोगे तो किसी दिन मोक्षमार्ग की तरफ जाया जाएगा। मोक्षमार्ग की तरफ किस तरह जाया जाए? घर में बैठे-बैठे खाने का मिलेगा तो मोक्षमार्ग की तरफ जाएँगे न? सारा दिन मेहनत करने में पड़े हों, तो मोक्ष का किस तरह कर पाएँगे?! इसलिए पुण्य का बखान किया है इन लोगों ने। बाक़ी मोक्षमार्ग तो सहज है, सरल है, सुगम है। संसारी मार्ग रिलेशन की कड़ीवाला है और यहाँ मोक्षमार्ग में 'नो रिलेशन'!!! प्रश्नकर्ता : तो संसार के सभी धर्म पाले हों तो भी उसे मोक्ष की लिंक मिलने का ठिकाना ही नहीं न? दादाश्री : मोक्ष की बात ही नहीं करनी ! इस अज्ञान की जितनी स्लाइस करें वे सारी ही उजाले के रूप में नहीं होती। एक भी स्लाइस उजालेवाली नहीं आती, नहीं? प्रश्नकर्ता : ना। दादाश्री : इस आलू की स्लाइसेस करें, उसमें कोई प्याज की आती सत्य-असत्य के रहस्य क्या सत्य? क्या असत्य? प्रश्नकर्ता : सच्चे और झूठे में कितना फर्क है? दादाश्री : आपने किसीको पाँच सौ रुपये दिए हों और फिर पूछो कि, 'मैंने आपको रुपये दिए थे' और वह झूठ बोले कि 'नहीं दिए', तो आपको क्या होगा? हमें दु:ख होगा या नहीं होगा? प्रश्नकर्ता : होगा। दादाश्री : तो हमें पता चलेगा न, कि झूठ खराब है, दुःखदायी है? प्रश्नकर्ता : हाँ, ठीक है। दादाश्री : और सच बोले तो सुखदायी लगता है न? इसलिए सच्ची वस्तु खुद को सुख देगी और झूठी वस्तु दुःख देगी। इसलिए सच की क़ीमत तो होगी न? सच्चे की ही क़ीमत है। झूठ की क्या क़ीमत?! झूठा दु:खदायी होता है! उसमें भी सत्य, हित, मित और प्रिय हमें सत्य, हित, प्रिय और मित प्रकार से काम में लेना चाहिए। कोई ग्राहक आया तो उसे प्रिय लगे उस तरह से बात करनी चाहिए. उसे हितकारी हो ऐसी बातें करनी चाहिए। ऐसी चीज़ नहीं दें कि जो उसके लिए घर जाकर बेकार हो जाए। तब वहाँ पर हम उसे कहें कि. 'भाई. यह वस्तु आपके काम की नहीं है।' तब कोई कहेगा कि, 'ऐसा सच कह दें, तो हम व्यापार किस तरह करेंगे?' अरे, तु जीवित किस आधार पर है? कौन-से हिसाब से तू जी रहा है? जिस हिसाब से तु जी रहा है उसी हिसाब से व्यापार चलेगा। कौन-से हिसाब से ये लोग सुबह उठते होंगे? रात को सो गए, और मर गए तो?! कई लोग ऐसे सुबह फिर उठे नहीं थे! वह किस आधार पर? इसलिए डरने की ज़रूरत नहीं है। प्रामाणिकता से व्यापार करना। फिर जो हो वह ठीक है पर हिसाब शुरू मत करना। सच्चे को ऐश्वर्य मिलता है। जैसे-जैसे सत्यनिष्ठा और वे सभी गुण प्रश्नकर्ता : नहीं। सभी आलू की ही स्लाइस निकलती हैं। दादाश्री : उसी तरह ये लोग स्लाइसेस करते रहते हैं कि 'अब उजाला आएगा, अब उजाला आएगा...' अरे, पर नहीं आएगा। यह तो अज्ञानता की स्लाइसेस! अनंत जन्मों तक सिरफोड़ी करके मर जाएगा, उल्टे सिर लटककर देह को गला देगा तो भी कुछ होगा नहीं। वह तो मार्ग को जिन्होंने प्राप्त किया है वे ही तुझे यह मार्ग प्राप्त करवाएँगे, जानकार होंगे, वे मार्ग प्राप्त करवाएंगे। जानकार तो हैं नहीं। उल्टे खोए जाने के जानकार हैं, वे आपको भी रास्ता भुला देंगे!!
SR No.009602
Book TitleSatya Asatya Ke Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size212 KB
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