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प्रतिक्रमण
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प्रतिक्रमण
प्रश्नकर्ता : वह तो विनोद कहलाये। ऐसा तो होता रहता है न?
दादाश्री : नहीं, फिर भी हमें प्रतिक्रमण करने होंगे। आप नहीं करे तो चलेगा। पर हमें तो करने होंगे। वरना हमारा यह ज्ञान, यह टेपरिकार्ड बजता है (जो वाणी निकलती है) न, वह फिर धुंधला निकले।
बाक़ी, मैंने हर तरह के मज़ाक किये थे। हमेशा हर तरह का मज़ाक कौन करेगा? बहुत टाइट ब्रेन (तेज दिमाग़) होगा वह करेगा। मैं तो मौज में आकर सभी का मजाक किया करता था, अच्छे-अच्छे लोगों का, बड़ेबड़े वकीलों का, डॉक्टरों का मजाक उडाता था। अब वह सारा अहंकार गलत ही था न ! वह हमारी बुद्धि का दुरुपयोग ही किया न! मजाक उड़ाना यह बुद्धि की निशानी है।
प्रश्नकर्ता : मज़ाक उड़ाने में क्या-क्या जोखिम है? किस तरह के जोखिम आते है?
दिखाना। फिर भी ऐसे माफ़ी माँगने पर भी ऊपर से चपत लगाये तो समझना कि यह नालायक है। फिर भी निपटारा करने का है। माफ़ी माँगने पर चपत पड़े तो समझना कि इसके साथ भूल तो हुई है, पर नालायक मनुष्य है इसलिए झूकना बंद कर दें।
प्रश्नकर्ता : हेतु अच्छा हो तो फिर प्रतिक्रमण करने का?
दादाश्री : प्रतिक्रमण तो करना पड़ेगा, उसको दुःख हुआ इसलिए। व्यवहार में लोग कहेंगे कि देखिए यह औरत, मरद को कैसा धमकाती है। फिर प्रतिक्रमण करना पड़े। जो आँख से दिखाई पड़े उसका प्रतिक्रमण करने का। अंदर हेतु आपका सोने का हो मगर किस काम का? नहीं चलेगा ऐसा हेतु। हेतु नरदम सोने का हो फिर भी हमें प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। भूल होने पर प्रतिक्रमण करना होगा। यह सभी महात्माओं की इच्छा है। अब जगतकल्याण की भावना है। हेतु अच्छा है पर फिर भी नहीं चलेगा। प्रतिक्रमण तो पहले करना होगा। कपड़े पर दाग़ लगने पर धो डालते हो न? ऐसे ये कपड़े पर के दाग़ हैं।
प्रश्नकर्ता : व्यवहार में कोई गलत करता हो तो उसे टोकना पड़ता है। इससे उसे दु:ख होता है, तो उसका निपटारा कैसे करें?
दादाश्री : व्यवहार में टोकना पड़े, पर उसमें अहंकार समेत होता है इसलिए प्रतिक्रमण करना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : टोके नहीं तो वह सिर पे चढ़ जाये न?
दादाश्री : टोकना तो चाहिए पर कैसे कहे वह जानना चाहिए। कहना नहीं जाने, व्यवहार नहीं जाने, अत: अहंकार समेत टोकना होता है। इसलिए बाद में उसका प्रतिक्रमण करें। आप सामनेवाले को टोकेंगे इससे उसे बुरा तो लगेगा, पर उसका बार-बार प्रतिक्रमण करने पर, छह-बारह महीने में वाणी ऐसी निकलेगी की सामनेवाले को मीठी लगेगी।
अब हम भी किसी का विनोद करें तो उसके भी प्रतिक्रमण हमें करने पड़ते हैं। हमें भी ज्यों का त्यों ऐसा नहीं चलेगा।
दादाश्री : ऐसा है न, किसी को थप्पड़ मारा हो और जो जोखिम आये उससे अनेक गुना जोखिम मज़ाक उड़ाने में है। उसकी बुद्धि नहीं पहुँचती थी, इसलिए आपने उसे आपकी बुद्धि की लाइट (प्रकाश) से आपके क़ब्जे में किया।
प्रश्नकर्ता : जिसे नया टेप नहीं उतारना हो, उसके लिए कौनसा मार्ग?
दादाश्री : कुछ भी स्पंदन नहीं होने दें। सब कुछ देखा ही करें। पर ऐसा होता नहीं न! यह (देह) भी मशीन ही है और ऊपर से पराधीन है। इसलिए हम दूसरा रास्ता दिखाते हैं कि टेप उतरने बाद तुरन्त मिटा दें तो चलेगा। यह प्रतिक्रमण मिटाने का साधन है। इससे एकाध जनम में परिवर्तन होकर सब (फिजूल) बोलना बंद हो जायेगा।
प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा का लक्ष्य होने से निरंतर प्रतिक्रमण जारी ही रहता है।