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________________ प्रतिक्रमण इसलिए आपको ऐसा लिख दिया है पर मुझे क्षमा कर दीजियेगा। तो सारी गालियाँ मिट जायेंगी या नहीं मिट जायेगी? अर्थात् पढ़नेवाला सारी गालियाँ पढ़ेगा, खुद गालियाँ स्वीकार भी करेगा और फिर माफ़ भी करेगा ! अर्थात् ऐसी यह दुनिया है। इसलिए हम तो कहते हैं न कि माफ़ी माँग लेना, आपके इष्टदेव से माँग लेना। और नहीं तो मुझ से माँग लेना। मैं आपको माफ़ कर दूंगा। पर बहुत विचित्र काल आ रहा है और उसमें चन्दुभाई अपनी मनमानी करते है, उसका कोई अर्थ नहीं है न! जीवन जिम्मेदारी से भरा है ! इसलिए सत्तर प्रतिशत तो मैं डरते-डरते कहता हूँ । अब भी आपको चेतना हो तो चेत जाइए। यह आखिरी भरोसा आपको देते हैं। भयंकर दुःख ! अभी भी प्रतिक्रमण रूपी हथियार देते हैं। प्रतिक्रमण करेंगे तो अभी भी बचने का कुछ अवकाश है और हमारी आज्ञा से करेंगे तो आपका तुरंत कल्याण होगा। पाप भुगतने होंगे मगर इतने सारे नहीं । ६३ हजारों लोगों की उपस्थिति में कोई कहे कि, 'चन्दुभाई में अक्ल नहीं है।' तब हमें उन्हें आशीर्वाद देने का दिल हो कि अहो, अहो, हम जानते थे कि चन्दुभाई में अक्ल नहीं है पर यह तो वे भी जानते हैं, तब जुदापन रहेगा! यह चन्दुभाई को हम रोज बुलायें कि आइए, चन्दुभाई आइए ! और फिर एक दिन नहीं बुलायें, उसकी क्या वजह? उसे विचार आयेगा कि आज मुझे आगे नहीं बुलाया। हम उसे चढ़ाये-गिरायें, चढ़ाये- गिरायें, ऐसा करते-करते वह ज्ञान पायें। हमारी प्रत्येक क्रिया ज्ञान प्राप्त कराने हेतु होती है। प्रत्येक के साथ अलग-अलग होगी, उसकी प्रकृति निकल ही जानी चाहिए न ! प्रकृति तो खतम करनी ही होगी। परायी चीज़ कहाँ तक हमारे पास रहेगी? प्रश्नकर्ता: सच बात है, प्रकृति खतम किये बगैर छुटकारा नहीं है। दादाश्री : हं। हमारी तो कुदरत ने खतम कर दी, हमारी तो ज्ञान से खतम हुई। और आपकी तो हम खतम कर देंगे, हम निमित्त हैं न ! न? प्रतिक्रमण १९. झूठ के आदी को प्रश्नकर्ता : हम झूठ बोलें हो, वह भी कर्मबंधन हुआ ही कहलाये दादाश्री : अवश्य ही ! पर झूठ बोलने से भारी कर्म तो झूठ बोलने का भाव करें, वह कहलाये। झूठ बोलना तो मानों कर्म फल है। झूठ बोलने का भाव ही, झूठ बोलने का हमारा निश्चय, उससे कर्मबंधन होता है। आपकी समझ में आया? यह वाक्य आपकी हेल्प (मदद करेगा कुछ ? क्या हेल्प करेगा? प्रश्नकर्ता: झूठ बोलने से थमना चाहिए। दादाश्री : नहीं, झूठ बोलने का अभिप्राय ही छोड़ देना चाहिए। और झूठ बोल दिया तो पश्चाताप करना चाहिए कि 'क्या करूँ? ऐसा झूठ बोलना नहीं चाहिए।' लेकिन झूठ बोला जाना बंद नहीं हो सकेगा, पर वह अभिप्राय बंद हो जायेगा। 'अब आज से झूठ नहीं बोलूँगा, झूठ बोलना यह महापाप है, महा दुःखदायी है, और झूठ बोलना वही बंधन है।' ऐसा आपका अभिप्राय यदि हो गया तो आपके झूठ बोलने संबंधी पाप बंद हो जायेंगे। 'रीलेटिव धर्म' कैसा होना चाहिए? कि झूठ बोला जाय तो बोलिए, मगर उसका प्रतिक्रमण कीजिए। न? २०. जागृति, वाक्धारा बहे तब .... मन का उतना हर्ज नहीं, वाणी का हर्ज है। क्योंकि मन तो गुप्त रीति से चलता होगा, पर वाणी तो सामनेवाले की छाती में घाव करे। इसलिए इस वाणी से जिन-जिन लोगों को दुःख हुआ हो उन सभी की क्षमा चाहता हूँ, ऐसे प्रतिक्रमण कर सकते हैं। प्रश्नकर्ता: प्रतिक्रमण से वाणी के वे सारे दोष माफ़ हो जायेंगे
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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