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प्रतिक्रमण
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प्रतिक्रमण
हैं हमारे, इसलिए उसे लगेंगे जरूर। अत: इस समझदारी से प्रतिक्रमण कर डालना। भारी शब्द निकला हो तो हमें मालूम नहीं होगा कि उसे लगा होगा?!
प्रश्नकर्ता : मालूम होगा।
दादाश्री : यह भी उसके लिए करना नहीं है। पर हमारा अभिप्राय उसमें नहीं है। हमारे अभिप्राय से दूर होने के लिए है। प्रतिक्रमण माने क्या? वह पहले के अभिप्राय से दूर होने के लिए है और प्रतिक्रमण से क्या होता है कि, सामनेवाले को जो असर होता हो वह नहीं होगा, बिलकुल ही नही होगा। मन में तय करें कि, मुझे समता भाव से निपटारा करना है। तो उस पर असर होगा और उसका मन ऐसे सुधरेगा, और आप मन में तय करें कि इसका ऐसा कर डालूँ और वैसा कर डालूँ तो उसके मन में भी वैसा ही रीएक्शन (प्रतिक्रिया) होगा।
प्रश्नकर्ता : किसी भी मनुष्य को दुतकार कर फिर पछतावा हो तो वह क्या कहलाये?
दादाश्री : पछतावा होने पर फिर दतकारने की आदत छट जायेगी. थोड़ा समय दुतकारकर पछतावा नहीं करे। और मैंने कैसा अच्छा किया ऐसा माने तो वह नर्क में जाने की निशानी है। बुरा करने के पश्चात् पछतावा तो करना ही चाहिए।
प्रश्नकर्ता : सामनेवाले का दिल तोड़ा हो तो उससे छूटने के लिए क्या करें?
दादाश्री : प्रतिक्रमण करें, और वह सामने आ जाये तो कहना कि भैया, मैं कमअक्ल हूँ, मुझ से भूल हो गई। ऐसा कहने से उसके घाव भर जायेंगे।
प्रश्नकर्ता : क्या उपाय करना कि जिससे दुतकार के परिणाम भुगतने की बारी नहीं आये?
दादाश्री : दुतकार के लिए दूसरा कोई उपाय नहीं है, एक प्रतिक्रमण किया करें बार-बार। जब तक सामनेवाले के मन का परिवर्तन
नहीं हो तब तक करें। और रूबरू मिल जाये तो फिर मधुर भाषा में क्षमा माँगना कि, 'भैया, मुझ से तो भारी भूल हो गई, मैं तो मूर्ख हूँ, कमअक्ल हैं।' इससे सामनेवाले के घाव भरते जायेंगे। हम खुद की निंदा करें तो सामनेवाले को भला लगे, तब उसके घाव भरेंगे।
हमें पिछले जनम की दुतकार का परिणाम नज़र आता है। इसलिए तो मैं कहता हूँ कि, किसी को दुतकारना नहीं। मजदूर को भी दुतकारना नहीं। अरे. आखिर साँप हो कर भी बदला लेगा। दुतकार से छुटकारा नहीं है। एक प्रतिक्रमण ही बचायेगा।
प्रश्नकर्ता : किसी को हम दुःख पहुँचायें और फिर प्रतिक्रमण कर लें मगर उसे जबरदस्त आघात, ठेस पहुँची हो तो उससे हमें कर्मबंधन होगा न?
दादाश्री: हम उसके नाम के प्रतिक्रमण करते रहें और उसे जितनी मात्रा में दुःख हुआ हो उसी मात्रा में प्रतिक्रमण करने होंगे।
एक जज ने मुझ से कहा कि, 'साहब, आपने मुझे ज्ञान तो दिया, और अब मुझे वहाँ कोर्ट में देहान्तदंड की शिक्षा करनी या नहीं?' तब मैंने उसे कहा, 'देहान्तदंड की शिक्षा नहीं करोगे, तो उसका क्या करोगे?' वह कहे, 'पर मझे दोष लगेगा।' मैंने पूछा, "आपको मैंने 'चन्दुलाल' बनाया है कि 'शुद्धात्मा' बनाया है?" तब उसने कहा, 'शुद्धात्मा बनाया है।' तो चन्दलाल करते हो तो उसके आप जिम्मेदार नहीं है। और जिम्मेदार होना हो तो आप चन्दुलाल हैं। आप स्वेच्छापूर्वक साझेदार होते हैं तो हमें हर्ज नहीं है पर साझेदार मत होना। फिर मैंने उसे रीत बताई कि आप यह कहना कि, 'हे भगवान, मेरे हिस्से में यह काम क्यों आया' और उसका प्रतिक्रमण करना, दूसरे गवर्नमेन्ट (सरकार) के कानून अनुसार कार्य करते रहना। समझ में आया?
प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करने से छुटा जाये ऐसा खयाल यदि हम रखें तो सब लोगों को स्वच्छंदता का लायसन्स मिल जायेगा।
दादाश्री : नहीं, ऐसी समझ मत रखना, बात ऐसी ही है। हमें