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________________ पैसों का व्यवहार वह पाप किया था, उसके फल स्वरूप है। लक्ष्मी, पुण्य और पाप के अधीन है। इसलिए यदि लक्ष्मी चाहिए तो हमें पुण्य-पाप का ध्यान रखना चाहिए। पैसों का व्यवहार लक्ष्मीजी तो पुण्यवान के पीछे ही घूमती रहती है और मेहनती लोग लक्ष्मीजी के पीछे घूमते रहते हैं। इसलिए हमें समझ लेना चाहिए कि पुण्य होगा तो लक्ष्मीजी पीछे आयेगी वरना मेहनत से तो रोटियाँ मिलेगी, खाना-पीना मिलेगा, और एकाध बेटी होगी तो ब्याहेगी। बाकी बिना पुण्य के लक्ष्मी नहीं मिलेगी। इसलिए वास्तविकता क्या कहती है कि यदि तू पुण्यवान है तो क्यों छटपटाता है? और तू पुण्यवान नहीं है तब भी क्यों छटपटा रहा है? (१) लक्ष्मी का आवन-जावन सारे संसार ने लक्ष्मी को ही प्रधानता दी है न! प्रत्येक कार्य में लक्ष्मी ही प्रधान है, इसलिए लक्ष्मी के प्रति ही ज्यादा प्रीति है। लक्ष्मी के प्रति ज्यादा प्रीति होने पर भगवान के प्रति प्रीति नहीं होगी। भगवान के प्रति प्रीति होने पर लक्ष्मी की प्रीति उड जायेगी। दोनों में से एक के प्रति प्रीति रहेगी, या तो लक्ष्मी के प्रति या तो भगवान के प्रति । आपको ठीक लगे वहाँ रहिये। लक्ष्मी के साथ शादी करने पर रँडापा अवश्य होगा। और नारायण के साथ, शादी भी नहीं और रँडापा भी नहीं, निरंतर आनंद में रखें, मुक्तभाव में रखें। बात को समझनी होगी न? इस प्रकार खोखलापन कहाँ तक चलेगा? और अडचनें तो पसंद नहीं है। यह मनुष्य देह अडचनों से मुक्त होने के लिए है, केवल पैसा कमाने के लिए नहीं है। पैसे किस तरह कमाते होंगे? मेहनत से कमाते होंगे कि बुद्धि से? पुण्यशाली भी कैसा? यह अमलदार को भी आफ़िस से अकुलाकर घर वापस आने पर उसकी पत्नी क्या कहेगी, 'डेढ़ घंटा लेट हुए, कहाँ गये थे?' यह देखो पुण्यशाली! पुण्यशाली के साथ क्या ऐसा होता है? पुण्यशाली को एक उलटी लहर भी नहीं छूती। बचपन से ही वह क्वालिटी (गुणवत्ता) अलग होगी। उसे अपमान का संयोग प्राप्त नहीं हुआ हो। जहाँ जाये वहाँ आइये आइये भाईजी' इस प्रकार परवरिश हुई हो (मान मिले)। और यह तो यहाँ टकराया, वहाँ टकराया (हर जगह अपमानित हो)। इसका क्या अर्थ है? फिर पुण्य की समाप्ति होने पर जैसा था वैसा हो जाये। तू पुण्यशाली नहीं है तो सारी रात पट्टी बाँधकर फिरे (ज्यादा मेहनत करे) तब भी क्या सबेरे पचास रुपये मिल जायेंगे? इसलिए छटपटाना नहीं। और जो कुछ मिला उसमें खा-पीकर पड़ा रहे चुपचाप। लक्ष्मी (धन) अर्थात् पुण्यशाली लोगों का काम है। पुण्य का हिसाब ऐसा है कि, कड़ी मेहनत करे और कम से कम मिले वह बहुत ही कम, नाम मात्र का पुण्य कहलाये। शारीरिक मेहनत बहुत नहीं करनी पड़े और वाणी की मेहनत करनी पडे, वकीलों की तरह, वह पहले की तुलना में थोड़ा अधिक पुण्य कहलाये। और उससे आगे क्या? वाणी की झंझट के बिना, शारीरिक झंझट के बिना, केवल मानसिक झंझट से कमाये प्रश्नकर्ता : दोनों से। दादाश्री : यदि मेहनत से पैसे कमाते होते तो इन मज़दूरों के पास बहुत सारे पैसे होते। क्योंकि ये मज़दूर ही ज्यादा मेहनत करते हैं न! और पैसे बुद्धि से कमाते होते तो ये सभी पंडित हैं ही न! लेकिन उनकी तो पीछे से आधी चप्पल भी घीस गई होती है ! पैसे कमाना यह बुद्धि के खेल नहीं और ना ही मेहनत का परिणाम है। वह तो आपने पिछले जन्म में पुण्य किया है, उसके फल स्वरूप आपको प्राप्त होता है। और नुकसान,
SR No.009597
Book TitlePaiso Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size302 KB
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