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त्रिमंत्र
समर्पण चैन कहीं ना मिले इस कलिकाल में, आगमन लक्ष्मी का, बेचैनी दिन-रात में। पेट्रोल नहीं पर आर.डी.एक्स की ज्वाला में, पानी नहीं, उबल रहा लहु संसार में। धर्म में लक्ष्मी का हो गया व्यापार है, हर ओर चल रहा काला बाज़ार है। उबाल चहुँ ओर, काल यह विकराल है, बचाओ, बचाओ, सर्वत्र यह पुकार है। ज्ञानीपुरुष की सम्यक् समझ ही उबार है, निर्लेप रखती सभी को, पैसों के व्यवहार में। संक्षिप्त समझ यहाँ हुई शब्दस्थ है, आदर्श धन व्यवहार की सौरभ बहे संसार में। अद्भूत बोधकला 'दादा' के व्यवहार में, समर्पित है जग तुझ चरण-कमल में।
-डॉ. नीरूबहन अमीन