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पैसों का व्यवहार
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पैसों का व्यवहार
धन भी, खरी मेहनत की कमाई भी रहती नहीं, तब खोटा धन कैसे रहेगा? अर्थात् पुण्य का धन चाहिए, जिसमें अप्रामाणिकता नहीं हो, नियत साफ़ हो, ऐसा धन होगा तो वही सुख देगा। वरना अभी दुषमकाल का धन, वह भी पुण्य का ही कहलाता है, मगर पापानबंधी पुण्य का, जो निरे पाप ही बंधाये!
एक मिनट भी जहाँ न रह पाये, ऐसा यह संसार। जबरदस्त पुण्य होने के बावजूद भीतर अंतरदाह शान्त नहीं होता, अंतरदाह निरंतर जलता ही रहता है। चहुँ ओर से सभी फर्स्ट क्लास संयोग होने पर भी अंतरदाह चलता हो, वह अब कैसे मिटे? पुण्य भी आखिर खतम हो जाये। दुनिया का कानून है कि पुण्य के खतम होने पर पाप का उदय होगा। यह तो अंतरदाह है। पाप के उदय समय जब बाहर का दाह पैदा होगा उस समय तेरी क्या दशा होगी? इसलिए सँभलो, ऐसा भगवान कहते हैं।
यह तो पूरण-गलन स्वभाव का है। जितना पूरण हुआ उतना फिर गलन होनेवाला है। और गलन नहीं होता न तब भी मुसीबत हो जाती। पर गलन होता है (उस समय) उतना फिर खाया जाता है। यह साँस ली वह पूरण किया और उच्छवास निकाला वह गलन है। सब पूरण-गलन स्वभाव का है, इसलिए हमने खोजबीन की है कि 'तंगी नहीं और भराव भी नहीं! हमारे सदैव लक्ष्मी की तंगी भी नहीं और भराव भी नहीं!' तंगीवाला, सूख जाये और भराववाले को सूजन हो जाये। भराव माने क्या? कि लक्ष्मीजी दो-तीन साल तक खिसके ही नहीं। लक्ष्मीजी तो चलती भली, वरना दुःखदायी हो जाये।
मेरे कभी भी तंगी नहीं आई और न ही भराव हुआ। लाख आने से पहले तो कहीं न कहीं से बम आये और उसमें खर्च हो जाये इसलिए भराव तो होता ही नहीं कभी, और तंगी भी नहीं आयी।
प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी क्यों कम हो जाती है?
दादाश्री : चोरियों से। जहाँ मन-वचन-काया से चोरी नहीं होती वहाँ लक्ष्मीजी कृपा करें। लक्ष्मी का अंतराय चोरी से है। ट्रिक (चालाकी)
और लक्ष्मी को बैर है। स्थूल चोरी बंद होने पर तो ऊँची ज्ञाति में जन्म होगा, पर सूक्ष्म चोरी अर्थात् ट्रिक करें वह तो हार्ड (भारी) रौद्रध्यान है
और उसका फल नर्कगति है। यह कपड़ा खींचकर देते हैं वह हार्ड रौद्रध्यान है। ट्रिकें तो होनी ही नहीं चाहिए। ट्रिकें करना किसे कहलाये?
__'बहत चोखा माल है' कहकर मिलावटवाला माल देकर खुश हो। और अगर हम कहें कि, क्या कोई ऐसा करता है भला? तब वह कहेगा कि, 'वह तो ऐसा ही करना पड़े।' लेकिन प्रामाणिकता की इच्छावाले को क्या कहना चाहिए कि 'मेरी इच्छा तो अच्छा माल देने की है, लेकिन माल ऐसा है वह ले जाओ।' इतना कहने पर जिम्मेवारी हमारी नहीं।
अर्थात् ये सभी कहाँ तक प्रामाणिक हैं? कि जहाँ तक कालेबाज़ार का अधिकार उन्हें प्राप्त नहीं हुआ।
प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी कितनी मात्रा में कमानी चाहिए?
दादाश्री: ऐसा कुछ नहीं। सबेरे रोजाना नहाना पड़ता है न? तब क्या कोई सोचता है कि एक लोटा (पानी) ही मिलेगा तो क्या करूँगा? इस तरह लक्ष्मी का विचार नहीं आना चाहिए। डेढ़ बालटी मिलेगा उतना निश्चित ही है और दो लोटे यह भी निश्चित ही है। उसमें कोई कम-ज्यादा नहीं कर सकता इसलिए मन-वचन-काया से लक्ष्मी के लिए त प्रयत्न करना, इच्छा मत करना, यह लक्ष्मीजी तो बैंक-बैलेन्स है, इसलिए बैंक में जमा होगी तो मिलेगी न? कोई लक्ष्मी की इच्छा करे तब लक्ष्मीजी कहे कि 'तेरे इस जलाई में पैसे आनेवाले थे. पर अब वे अगले जलाई में मिलेंगे।' और यदि कहे कि, 'मुझे पैसे नहीं चाहिए' तब वह भी बड़ा गुनाह है। लक्ष्मीजी का तिरस्कार भी नहीं और इच्छा भी नहीं करनी चाहिए। उन्हें तो नमस्कार करने चाहिए। उनकी तो विनय करनी चाहिए. क्योंकि वह तो हेड आफ़िस में है। लक्ष्मीजी तो उसका (व्यक्ति का) टाइम, काल पकने पर आनेवाली ही है। यह तो इच्छा से अंतराय पड़ता है। लक्ष्मीजी कहती हैं कि, 'जिस टाइम पर जिस मोहल्ले में रहना हो उस टाइम पर ही रहना चाहिए, और हम टाइम-टाइम पर भेज ही देते