SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पैसों का व्यवहार १५ अधर्म में पड़ने पर दुरुपयोग होगा और दुःखी होंगे, और इस धर्म में सदुपयोग होगा और सुखी होंगे और मोक्ष में जा सकोगे, वह मुनाफ़े में। बाक़ी पैसे तो उतने ही आनेवाले है। पैसों के लिए सोचना यह एक बुरी आदत है, वह कैसी बुरी आदत है ? कि एक आदमी को भारी बुखार चढ़ा होने पर हम उसे भाप देकर बुखार उतारे। भाप देने पर पसीना बहुत हो जाये ऐसा फिर हररोज भाप देकर पसीना निकाल निकाल करने पर स्थिति क्या होगी ? वह समझे कि इस प्रकार एक दिन मुझे बहुत फायदा हुआ था, मेरा बदन हलका हो गया था, इसलिए अब यह रोज की आदत डालनी है। रोजाना भाप लें और फिर पसीना निकाल निकाल करने पर क्या होगा? लक्ष्मी तो बाय-प्रोडक्ट है। जैसे, हमारा हाथ अच्छा रहेगा कि पैर अच्छा रहेगा क्या उसका रात-दिन विचार करना पड़ता है? नहीं, क्यों? क्या हमें हाथ-पैर की जरूरत नहीं है? पर उसका विचार नहीं करना पड़ता। इस तरह लक्ष्मी का विचार करने का नहीं। जैसे कि हमें हाथ दुःख रहा हो तब उसकी मरम्मत ( उसके इलाज ) जितना विचार करना पड़ता है, ऐसे ही कभी विचार करना पड़े तो तत्कालीन समय तक के लिए ही, बाद में विचार नहीं करने का, दूसरी झंझट में नहीं पड़ना । लक्ष्मी का स्वतंत्र ध्यान नहीं करते। लक्ष्मी का ध्यान एक ओर है तो दूसरी ओर दूसरा ध्यान चूक जाते हैं। स्वतंत्र ध्यान में तो, लक्ष्मी ही नहीं परंतु स्त्री के भी ध्यान में भी नहीं उतर सकतें। स्त्री के ध्यान में उतरने पर स्त्री के समान हो जाये ! लक्ष्मी के ध्यान में उतरने पर चंचल हो जाये। लक्ष्मी भटकती हो और ध्यान करनेवाला भी भटकता ! लक्ष्मी तो सब जगह भटकती रहे निरंतर, ऐसे वह भी खुद सब जगह भटकता रहे। लक्ष्मी का ध्यान ही नहीं कर सकते। वह तो बड़े से बड़ा रौद्रध्यान है, वह आर्तध्यान नहीं, रौद्रध्यान है! क्योंकि खुद के घर खाने-पीने का है, सबकुछ है, फिर भी लक्ष्मी की ओर ज्यादा आशा रखता है, अर्थात् उतना दूसरे के यहाँ कम होवे। दूसरे के यहाँ कम हो, ऐसा प्रमाण भंग मत करो। वरना आप गुनहगार हैं! अपने आप सहज आये उसके गुनहगार आप नहीं ! सहज तो १६ पैसों का व्यवहार पाँच लाख आये कि पचास लाख आये। लेकिन फिर आने के बाद लक्ष्मी को रोककर नहीं रख सकते। लक्ष्मी तो क्या कहती है? हमें रोकना नहीं, जितनी आये उतनी दे दो। धन के अंतराय कब तक? जहाँ तक कमाने की इच्छा हो तब तक । धन के प्रति दुर्लक्ष हुआ कि ढेरों आये। क्या खाने की जरूरत नहीं है? संडास जाने की क्या जरूरत नहीं है ? वैसे ही लक्ष्मी की भी जरूरत है। संडास, जैसे याद किये बिना होता है, वैसे लक्ष्मी भी याद किये बगैर आती है। एक जमींदार मेरे पास आया वह मुझ से पूछने लगा कि 'जीवन जीने के लिए कितना चाहिए? मेरे घर हजार बीघा जमीन है, बंगला है, दो कार है और बैंक बैलेंस भी काफी है। तो मुझे कितना रखना ? " मैंने कहा, 'देख भाई, प्रत्येक की जरूरत कितनी होनी चाहिए उसका अंदाज, उसके ( खुद के जन्म के समय क्या शान-शौकत थी, इसके अंदाज से सारी जिन्दगी के लिए तू प्रमाण निश्चित कर। वही दरअसल नियम है। यह तो सब एक्सेस में (अति) जाता है और एक्सेस तो जहर है, मर जायेगा !' प्रत्येक मनुष्य को अपने घर में आनंद आये। झोंपडेवाले को बंगले में आनंद नहीं आता और बंगलेवाले को झोंपडे में आनंद नहीं आता। उसका कारण है, उसकी बुद्धि का आशय । जो बुद्धि के आशय में जैसा भर लाया हो वैसा ही उसको मिले। बुद्धि के आशय में जो भरा हो उसके दो फोटोग्राफ्स निकले : (१) पापफल और (२) पुण्यफल। बुद्धि के आशय का प्रत्येक ने विभाजन किया तब १०० प्रतिशत में से अधिकांश प्रतिशत मोटर, बंगला, लडके-लड़कियाँ और बहू, इन सब के लिए भरे । तब वह सब प्राप्त करने में पुण्य खर्च हो गया और धर्म के लिए मुश्किल से एक या दो प्रतिशत ही बुद्धि के आशय में भरे । (कोई एक व्यक्ति) बुद्धि के आशय में लक्ष्मी प्राप्त करना, ऐसा
SR No.009597
Book TitlePaiso Ka Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size302 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy