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निजदोष दर्शन से... निर्दोष!
निजदोष दर्शन से... निर्दोष!
१३३ दर्शन में, और अनुभव में आया है कि निर्दोष ही है। फिर भी वर्तन जो है, वह छूटता नहीं है अभी भी!!
अभी कोई फलाने संत की उल्टी बात आई। वे चाहे जैसे हों, फिर भी आपको तो वे निर्दोष ही दिखने चाहिए। फिर भी हम वैसा बोलते हैं कि यह ऐसे हैं, ऐसे हैं, वैसा नहीं बोलना चाहिए। हमारी श्रद्धा में वे निर्दोष हैं. ज्ञान में आ गया है कि निर्दोष हैं, फिर भी बोल निकल जाता है। वर्तन में बोल निकल जाता है। इसीलिए ये टेपरिकॉर्ड कहते हैं उसे!! टेप रिकॉर्ड हो गया, उसका क्या हो? पर टेपरिकॉर्ड इफेक्टिव है न सारी, इसीलिए उसे तो ऐसा ही होता है कि अभी ये दादा ही बोले।
प्रश्नकर्ता : और वह बोलते समय, यह भूल है, ऐसा अंदर होता है क्या?
दादाश्री : हाँ, बोलते समय, ऑन द मॉमेन्ट (तत्क्षण) पता होता है। यह गलत हो रहा है, यह गलत बोला जा रहा है।
प्रश्नकर्ता : अब ऐसा यदि जैसा है वैसा न बोलो, तो सुननेवाले सब गलत रास्ते पर जाएँगे, ऐसा हो सकता है न?
दादाश्री : सुननेवाले? पर वह बुद्धि की दख़ल ही है न! वीतरागता को दख़ल नहीं है कोई भी!!
प्रश्नकर्ता : पर सुननेवाले तो बुद्धि के अधीन ही होते हैं न?
दादाश्री : हाँ। पर मेरी बुद्धि में आया कि इसे सुननेवाले को नुकसान होगा इसलिए नुकसान और फ़ायदा, प्रॉफिट और लॉस देखा न? प्रॉफिट एन्ड लॉस तो बुद्धि दिखाती है कि सामनेवाले को नुकसान होगा! फिर भी अभी हम इन संत का बोले पर आज यह काम का नहीं है। पर उस समय हम ऐसा नहीं मानते थे कि यह जगत् पूरा निर्दोष है।
प्रश्नकर्ता : उस समय बुद्धि की दख़ल थी ऐसा हुआ न?
दादाश्री : हाँ, उस समय बुद्धि की दख़ल थी। इसीलिए यह दखल जाती नहीं है न जल्दी?
प्रश्नकर्ता : इसीलिए पूरा वर्तन पहले के ही ज्ञान को लेकर है न?
दादाश्री : पहले बुद्धि जब तक थी न, तब तक ये कोंचा था। पर बुद्धि के जाने के बाद कोंचते नहीं हैं न! नहीं तो बद्धि हर एक को कोंचती ही रहती है। बुद्धि हमेशा ही जब तक है, तब तक कम्पेयर और कोन्ट्रास्ट चलता ही रहता है।
प्रश्नकर्ता : और सिद्धांत रखा है न कि यह निर्दोष है।
दादाश्री : इसीलिए है निर्दोष और किसलिए ऐसा होता है? हम यह खुला कह देते हैं कि जगत् पूरा निर्दोष है। और एक तरफ ये शब्द ऐसे निकले हैं।
आश्चर्यकारी, अद्भुत, अक्रम ज्ञानी का पद यह तो सब साइन्स है। यह धर्म नहीं है। धर्म तो, सब बाहर चलते
प्रश्नकर्ता : वह ठीक है पर उस संत की यह भूल है, ऐसा जो बोला जा रहा है, उस समय ऐसा पता होता है न कि उनकी इस अपेक्षा से ऐसी भूल कहलाती है?
दादाश्री : हाँ, किस अपेक्षा से उनकी भूल कहलाती है वह जानते हैं, पर वह मान्यता तो पहले की थी न! यह सब, उससे पहले का ज्ञान था। इसलिए आज का टेपरिकॉर्ड नहीं है यह।
प्रश्नकर्ता : इसीलिए पहले का ज्ञान इस टेप में, बोलने में हेल्प करता है?
दादाश्री : हाँ, और अभी तो वह इस समय बोल ही रहा है। पर लोग तो ऐसा ही समझते हैं न कि आज दादा बोले, अभी दादा बोले पर मैं जानता हूँ कि यह पहले का है। इसलिए फिर भी हमें खेद तो हुआ करता है न! ऐसा नहीं निकलना चाहिए। एक अक्षर भी निकलना नहीं चाहिए।