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निजदोष दर्शन से... निर्दोष!
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निजदोष दर्शन से... निर्दोष उसकी गारन्टी देता हूँ। मैं ही उन्हें भजता हूँ न! और आपको भी कहता हँ कि, 'भाई, आप दर्शन कर जाओ। 'दादा भगवान' ३६० डिग्री और मुझे ३५६ डिग्री हैं। इसीलिए हम दोनों अलग हैं, वह प्रमाणित हो गया या नहीं?
प्रश्नकर्ता : हाँ, वैसा ही है न!
दादाश्री : हम दोनों अलग हैं। भीतर प्रकट हुए हैं, वे दादा भगवान हैं। वे संपूर्ण प्रकट हो गए हैं, परम ज्योति स्वरूप!
दोषों की आपको परिभाषा हूँ। स्थूल भूल यानी क्या? मेरी कोई भूल होती हो, तो जो जागृत मनुष्य हो, वह समझ जाए कि इनसे कोई भूल हो गई। सूक्ष्म भूल यानी कि यहाँ पच्चीस हज़ार लोग बैठे हों, तो मैं समझ जाऊँगा कि दोष हुआ। पर उन पच्चीस हज़ार में से मुश्किल से पाँचेक ही सूक्ष्म भूल को समझ सकेंगे। सूक्ष्म दोष तो बुद्धि से भी देख सकते हैं, जब कि सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम भूलें, वे ज्ञान से ही दिखती हैं। सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम दोष मनुष्य को नहीं दिखते हैं। देवी-देवताओं को भी, अवधिज्ञान से देखें तभी दिखते हैं। फिर भी वे दोष किसीको नुकसान नहीं करते हैं, वैसे सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम दोष हममें रहे हुए हैं। और वे भी इस कलिकाल की विचित्रता के कारण!
__'ज्ञानी पुरुष' खुद देहधारी रूप में परमात्मा ही कहलाते हैं। जिनमें एक भी स्थूल भूल नहीं है और एक भी सूक्ष्म भूल नहीं है।
भीतरवाले भगवान दिखाएँ दोष... जगत् दो तरह की भूलें देख सकता है, एक स्थूल और एक सूक्ष्म। स्थूल भूलें बाहर की पब्लिक भी देख सकती है और सूक्ष्म भूलें बुद्धिजीवी देख सकते हैं। ये दो भूलें 'ज्ञानी पुरुष' में नहीं होती है ! फिर सूक्ष्मतर दोष वे ज्ञानियों को ही दिखते हैं। और हम सूक्ष्मतम में बैठे हुए हैं।
मेरी जो सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम भूलें होती हैं, वे केवलज्ञान को रोकती हैं, केवलज्ञान को रोकें, ऐसी भूलें होती हैं, वे भूल 'भगवान' 'मुझे' दिखाते हैं। तब 'मैं' जानूँ न, कि 'मेरा ऊपरी है यह।' ऐसा पता नहीं चलता? अपनी भूलें दिखाए, वह भगवान ऊपरी है या नहीं?
प्रश्नकर्ता : हाँ, ठीक है।
दादाश्री : इसलिए हम कहते हैं न कि, यह भूल जो हमें दिखाते हैं, वे चौदह लोकों का नाथ है। उन चौदह लोकों के नाथ के दर्शन करो। भूल दिखानेवाला कौन है? चौदह लोकों का नाथ!
और वे 'दादा भगवान' तो मैंने देखे हैं, संपूर्ण दशा में है अंदर!