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निजदोष दर्शन से... निर्दोष!
प्रश्नकर्ता : हम संसार में उलझे पड़े हैं, यानी रोजमर्रा के कार्यों में रत हो गए हैं, इसलिए नहीं दिखते हैं।
दादाश्री : नहीं, देखने में कोई भूल हो रही है। खुद जज है, आरोपी भी खुद है। गुनाह करनेवाला भी खुद है, पर साथ में वकील खड़ा किया है। खुद ही वकील बनता है फिर।
प्रश्नकर्ता : यानी खुद का गलत ढंग से बचाव ही करता है?
दादाश्री : हाँ, सारा बचाव ही किया है। हाँ, बस दूसरा कुछ किया ही नहीं। गलत ढंग से सारे बचाव किए हैं।
जगत् खुली आँखों सो रहा है, इसलिए फिर दोष कैसे मालूम होंगे? तेरे दोष तुझे दिखते नहीं हैं। किस तरह मनुष्य दोष देख सकता है खुद के?
प्रश्नकर्ता : स्थूल थोड़े दिखते हैं, सूक्ष्म नहीं दिखते।
दादाश्री : दोष क्यों नहीं दिखते? तब कहते हैं 'भीतर आत्मा नहीं है?' तब कहते हैं, 'आत्मा है, यानी कि जज है, जज।' अहंकार आरोपी है। अहंकार और जज (आत्मा) दो ही होते न, तो सारे दोष दिखते, काफी कुछ दोष दिखते, पर यह तो भीतर वकील (बुद्धि) रखा है इसलिए वकील कहता है कि. 'ये सब भी तो ऐसा ही करते हैं न!' सारा दोष उड़ गया। आप जानते हो, वकील रखते हैं ऐसा? सभी वकील रखते हैं। खुद जज, खुद आरोपी और खुद ही वकील, बोलो, कल्याण होगा क्या?
प्रश्नकर्ता : नहीं होगा।
दादाश्री : ऐसा-वैसा करके वकील फिर सुलटा देता है। होता है या नहीं होता ऐसा?
निजदोष दर्शन से... निर्दोष! भूलों का स्टेटमेन्ट (विवरण) दे देगा?
प्रश्नकर्ता : फिर वह स्टेटमेन्ट क्या देगा?
दादाश्री : ये सिर के बाल हैं न, उतनी भूलें हैं। पर खुद जज और खुद वकील और खुद आरोपी, किस तरह भूलें मिलें? निष्पक्षपाती वातावरण उत्पन्न नहीं होता है न! निष्पक्षपाती वातावरण उत्पन्न हो, तो मोक्ष सरल हैं। मोक्ष कोई दूर नहीं है। यह तो पक्षपात बहुत है।
यदि दूसरों की भूलें निकालनी हों तो निकाल देगा, उनके लिए न्यायाधीश है वह, थोड़ा-बहुत, अल्पांश में, पर खुद की भूलें निकालने के लिए जरा-सा भी न्यायाधीश नहीं है। यानी खुद जज, खुद ही वकील
और आरोपी खुद, फिर कैसा जजमेन्ट आएगा? खुद के लाभवाला ही होगा।
प्रश्नकर्ता : सहूलियातवाला, बस! खुद को जैसी सहूलियत होती है न, वैसा लाकर रख देता है!
दादाश्री : इसलिए फिर संसार छूटता नहीं न कभी भी! ऐसे आप सहूलियतवाला करते रहो और निर्दोष होना है, होगा नहीं न! वकील नहीं हो, तब ही खुद की भूलें पता चलती हैं। पर आज के लोग वकील रखे बगैर रहते नहीं न! वकील रखते हैं या नहीं रखते लोग?
यह ज्ञान प्राप्त होने के बाद तुरन्त ही पता चलता है कि यह भूल हुई। क्योंकि बीच में वकील नहीं है अब। वकील अपने घर गए, रिटायर हो गए। गुनहगार अभी रहे हैं पर वकील नहीं रहे।
ये भूलें जाएँ न तो खुद का भगवान पद प्राप्त हो ऐसा है। इन भूलों को लेकर ही जीवपद है और भूलें जाएँ तो शिवपद प्राप्त होता है।
इस जगत् के लोगों ने खुद के दोष देखे नहीं हैं, इसलिए ही वे दोष रहते हैं, मुकाम करते हैं आराम से! यों तो कहेगा कि मुझे दोष निकालने हैं, पर तब दोष हैं तो एक ओर नींव डालकर अंदर रहने के लिए मकान बनवा रहे होते हैं। नींव सीमेन्ट डालकर भर रहे होते हैं। वे
प्रश्नकर्ता : होता हैं।
दादाश्री : सारा दिन यही का यही तूफ़ान और उसके दुःख हैं ये सारे। बोलो, अब कितनी खुद की भूलें बाहर निकलेंगी? खुद की कितनी