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निजदोष दर्शन से... निर्दोष!
प्रश्नकर्ता : दो-चार-पाँच हो जाती हैं।
दादाश्री : कौन न्याय करनेवाला? यह भूल है, ऐसा न्याय करनेवाला कौन?
प्रश्नकर्ता : नुकसान होता है तब पता चलता है कि भल की है।
दादाश्री : तब पता चलता है, नहीं? पर न्याय करनेवाला कौन इसमें? भूल करनेवाला मनुष्य भूल कबूल नहीं करता एकदम। न्याय करनेवाला मनुष्य कहे कि यह तुम्हारी भूल है, तब फिर समझ में आता है। तब कबूल करता है, नहीं तो कबूल नहीं करता है। अपनी भूल कोई कबूल नहीं करता इस दुनिया में। और यदि समझ में आए तो कबूल करता है। उसे शूट ऑन साइट (देखते ही ठाँय) करना चाहिए। नहीं तो भूल घटती ही नहीं। आपके गाँव में कोई भूल कबूल करते हैं क्या?
निजदोष दर्शन से... निर्दोष! वाइफ को अच्छा नहीं लगता है।
दादाश्री : अच्छा नहीं लगे तो वही भुगते। जो भुगते, उसकी भूल। यदि नहीं भुगतते हों तो कोई उनकी भूल नहीं है। यदि वे भुगतती हों, तो उनकी ही भूल है।
प्रश्नकर्ता : वाइफ कहती है, 'मैं भुगतती ही नहीं हूँ।' जब कि पति को ऐसा लगता है कि वह भुगतती है।
दादाश्री : पर वह खुद कहती है कि मैं नहीं भुगतती हूँ, इसलिए फिर हो गया, छूट गया ! इस ज्ञान से पहले भुगतती होंगी! बाद में तो समझे न! क्योंकि कोई न कोई आदत तो होती है। तो कोई उसे और हमें लेनादेना नहीं है। वह तो माल भरकर आए हैं। खुद को छोड़ना हो, तब भी नहीं छूटे। वह आदत उसे नहीं छोड़ती फिर! अब उसे हम डॉटें तो वह अपनी भूल है। उसका बुरा मानें, वह भी भूल है। क्योंकि वह आदत उसे छोड़ती नहीं है।
प्रश्नकर्ता : पर दादा, उसका कोई रास्ता तो होता है या नहीं? उस आदत को छोड़ने का कोई रास्ता तो होना चाहिए न?
प्रश्नकर्ता : कबूल नहीं करते।
दादाश्री : हाँ, कोई कबूल नहीं करता। अगर अक्कल के बोरे, बेचने जाएँ तो चार आने भी नहीं आएँ। अक्कल के बोरों को बेचने जाएँ तो आएँगे पैसे? सभी अक्लमंद, हिन्दुस्तान देश में सभी अक्लमंद, फिर कौन पैसे दे? कोई भूल कबूल नहीं करता न आपके यहाँ? और तू भूल कबूल कर लेता है तुरन्त?
प्रश्नकर्ता : हाँ, तुरन्त मेरी एक भूल बताऊँ? दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : मैं पत्ते खेलने का बहुत शौकीन हूँ।
दादाश्री : ऐसा?! पत्ते खेलना तो हिसाब है। भीतर हिसाब किया था खुद ने, जो डिसाइड किया हुआ है, वही हम खुद भुगतते हैं यह।
प्रश्नकर्ता : अब यह पत्ते खेलता है और खुश होता है, पर उसकी
दादाश्री: रास्ता उसका एक ही है कि ये भाई पत्ते खेलते हों. तब उन्हें निरंतर अंदर रहना चाहिए कि यह गलत चीज़ है। यह गलत चीज़ है. यह गलत चीज़ है। निरंतर ऐसा रहना चाहिए। और ऐसे रोज गलत चीज़ है बोलें और एक दिन कोई आकर कहे कि, 'यह ताश खेलना बहुत बुरी आदत है।' वहाँ आप कहो कि, 'नहीं, अच्छी चीज़ है' कि फिर बिगड़ा। उस घड़ी आपको ऐसा कह देना चाहिए कि गलत चीज़ है। पर कोई उकसाए तब जीवित रखते हैं लोग! इसलिए लोग कहते हैं, 'हमारी आदतें क्यों छूटतीं नहीं?' पर जीवित किसलिए रखते हो? फिर से पानी मत पिलाना उस दिन। लोग तो उल्टा बोलते हैं। आपको समझ में आया न? ऐसा होता है कि नहीं होता?
प्रश्नकर्ता : होता है।