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निजदोष दर्शन से... निर्दोष!
यह ज्ञान होने से पहले तो मैं खुद अपने को गालियाँ देता था, क्योंकि मुझे कोई गालियाँ देता नहीं था न! तब मोल कहाँ से लाएँ हम? और मोल कौन दे? हम कहें कि तू मुझे गाली दे. तो भी कहेगा कि नहीं आपको गाली नहीं दे सकता। यानी पैसे दें फिर भी कोई गाली नहीं देता है। इसलिए फिर मझे खुद गालियाँ देनी पड़ती थीं. 'आपमें अक्ल नहीं है, मरख हो आप, गधे हो, ऐसे हो, किस तरह के मनुष्य हो? मोक्ष धर्म कोई कठिन है कि अपने इतना सब ऊधम मचाया है?' ऐसी गालियाँ खुद देता था। कोई गालियाँ देनेवाला नहीं हो तब फिर क्या करें? आपको तो घर बैठे कोई गालियाँ देनेवाला मिलता है, फ्री ऑफ कॉस्ट मिलता है, तब क्या उसका लाभ नहीं उठाना चाहिए?!
लुटेरा भी दूर रहे शीलवान से शील का प्रभाव ऐसा है, जगत् में कोई नाम नहीं ले उसका। लुटेरों के बीच रहता हो, सभी उँगलियों में सोने की अंगूठियाँ पहनी हों। यहाँ पूरे शरीर पर सोने के आभूषण पहने हों और लुटेरे मिल जाएँ। लुटेरे देखते जरूर हैं, पर छू नहीं सकते, छू ही नहीं सकते। बिलकुल घबराने जैसा जगत् ही नहीं है। जो कुछ घबराहट है वह आपकी ही भूल का फल है, ऐसा हम कहने आए हैं। लोग तो ऐसा ही समझते हैं कि जगत् अनियमवाला
निजदोष दर्शन से... निर्दोष! गाली उधार दी थी, वह लौटाने आया था, वह हमें जमा कर लेनी थी, उसके बजाय पाँच आपने उधार दी। और फिर एक तो सहन होती नहीं, तब फिर दूसरी पाँच उधार दी। अब इसमें मनुष्यों की किस तरह बुद्धि पहुँचे! इसलिए उधार दे-देकर और गुत्थियाँ उलझाते रहते हैं। उलझनें सब खड़ी करते हैं।
यह हम पंद्रह बरस से उधार देते नहीं है, इसलिए कितने हिसाब साफ हो गए हैं सभी! उधार देना ही बंद कर दिया है न! जमा ही कर। 'इनसे' कह दिया है न, जमा कर देना। आसान है न, रास्ता आसान है न? अब यह शास्त्रों में लिखा हुआ नहीं होता है?
कोई कुछ कर सकता नहीं है। आप स्वतंत्र हो। आपका ऊपरी ही कोई नहीं है। भगवान भी ऊपरी नहीं है वहाँ पर फिर? भगवान की ओट में आप आश्वासन लेते हो कि भगवान हैं हम पर दया करेंगे! 'देखा जाएगा' ऐसा करके उल्टा करते हो, जिम्मेदारी मोल लेते हो!
नहीं रहा भुगतना ज्ञानी को किसीको हमसे किंचित् मात्र दुःख हो तो समझना कि अपनी भूल है। अपने भीतर परिणाम ऊपर-नीचे हों तो भल अपनी है ऐसा समझ में आता है। सामनेवाला व्यक्ति भुगत रहा है. इसलिए उसकी भल तो प्रत्यक्ष है, पर निमित्त हम बने, हमने उसे डाँटा, इसलिए हमारी भी भूल। क्यों दादा को भुगतना नहीं आता? क्योंकि उनकी एक भी भल रही नहीं है। अपनी भूल से सामनेवाले को कोई भी असर हो और जो कुछ उधार हो जाए तो तुरन्त ही मन से माफ़ी माँगकर जमा कर लेना चाहिए। अपने में क्रोध-मान-माया-लोभ के कषाय हैं, वे उधार हए बगैर रहते ही नहीं हैं। इसलिए उनके सामने जमा कर लेना चाहिए। अपनी भूल हुई हो, तब उधार होता है, पर तुरन्त ही केश-नक़द प्रतिक्रमण कर डालना चाहिए। हमारे कारण किसीको अतिक्रमण हो जाए, तो हमें जमा कर लेना चाहिए, और आगे के लिए उधार नहीं रखना चाहिए। और यदि किसीसे हमें अतिक्रमण हो तो हमें आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान कर लेना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : समझदारी की इतनी कमी!
दादाश्री : उस समझ की कमी की वजह से ही जगत् खड़ा रहा है। हम ऐसा कहना चाहते हैं कि जगत् में भय रखने जैसा है ही नहीं। जो भय आता है, वह आपका हिसाब है। चक जाने दो। यहाँ से फिर नये सिरे से उधार मत देना।
आपको कोई उल्टा कहे, तब आपको है तो मन में ऐसा होता है कि यह मुझे क्यों उल्टा बोलता है? इसलिए आप उसे फिर पाँच गालियाँ दे देते हो। इसका मतलब, जो आपका हिसाब था, उसे चुकाते समय आपने फिर नया हिसाब का बहीखाता शुरू किया। अर्थात् एक