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आत्महत्या के कारण और परिणाम क्या हैं? प्रेतयोनि क्या होती होगी? भतयोनि है? क्षेत्र परिवर्तन के नियम क्या हैं? भिन्न-भिन्न गतियों का आधार क्या है? गतियों में से मुक्ति कैसे मिलती है? मोक्षगति प्राप्त करनेवाला आत्मा कहाँ जाता है? सिद्धगति क्या है? ये सभी बातें यहाँ स्पष्ट होती हैं।
दान, गरुड़ पुराण आदि, उनकी सत्यता कितनी? मरनेवाले को क्या क्या पहुँचता है? यह सब करना चाहिए या नहीं? मृत्यु के बाद की गति की स्थिति आदि सभी खुलासे यहाँ स्पष्ट होते हैं।
ऐसी, भयभीत करनेवाली मृत्यु के रहस्य जब पता चलते हैं, तब मनुष्य को ऐसे अवसर पर उसके जीवन काल के समय के व्यवहार में ऐसे अवसरों पर निश्चय ही सांत्वना प्राप्त होती है।
'ज्ञानी पुरुष' वे, जो देह से, देह की सभी अवस्थाओं से, जन्म से, मृत्यु से अलग ही रहे हैं। उनके निरंतर ज्ञाता-दृष्टा रहते हैं, और अजन्म-अमर आत्मा की अनुभव दशा में बरतते हैं वे! जीवन से पर्व की, जीवन के पश्चात् की और देह की अंतिम अवस्था में अजन्म-अमर, ऐसे आत्मा की स्थिति की हक़ीक़त क्या है, यह ज्ञानी पुरुष ज्ञान दृष्टि से खुल्लमखुल्ला कह देते हैं।
आत्म-स्वरूप और अहंकार-स्वरूप की सूक्ष्म समझ ज्ञानी के सिवाय कोई नहीं समझा सकता।
मृत्यु के बाद फिर से मरना नहीं पड़े, फिर से जन्म नहीं लेना पड़े, उस दशा को प्राप्त करने संबंधी सभी स्पष्टताएँ, यहाँ सूक्ष्म रूप से संकलित हुई हैं, जो पाठक को संसार व्यवहार और अध्यात्मिक प्रगति के लिए हितकारी होकर रहेंगी।
- डॉ. नीरुबहन अमीन के जय सच्चिदानंद
आत्मा तो सदैव जन्म-मृत्यु से परे ही है, वह तो केवलज्ञान स्वरूप ही है। केवल ज्ञाता-दृष्टा ही है। जन्म-मृत्यु आत्मा को हैं ही नहीं। फिर भी बुद्धि से जन्म-मृत्यु की परंपरा का सर्जन होता है, जो मनुष्य के अनुभव में आता है। तब स्वाभाविक रूप से मूल प्रश्न सामने आता है कि जन्म-मृत्यु किस प्रकार होते हैं? उस समय आत्मा और साथ-साथ क्या-क्या वस्तुएँ होती है? उन सभी का क्या होता है? पुनर्जन्म किस का होता है? कैसे होता है? आवागमन किस का है? कार्य में से कारण और कारण में से कार्य की परंपरा का सर्जन कैसे होता है? वह कैसे रुक सकता है? आयुष्य के बंध किस प्रकार पड़ते हैं? आयुष्य किस आधार पर निश्चित होता है? ऐसे सनातन प्रश्नों की सचोट-समाधानकारी, वैज्ञानिक समझ ज्ञानी पुरुष के सिवाय कौन दे सकता है?
और उससे भी आगे, गतियों में प्रवेश के कानून क्या होंगे?