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________________ मानव धर्म मानवता का ध्येय प्रश्नकर्ता : मनुष्य जीवन का ध्येय क्या है? दादाश्री : मानवता के पचास प्रतिशत अंक मिलने चाहिए। जो मानव धर्म है, उसमें पचास प्रतिशत अंक आने चाहिए, यह मनुष्य जीवन का ध्येय है। और यदि उच्च ध्येय रखता हो तो नब्बे प्रतिशत अंक आने चाहिए। मानवता के गुण तो होने चाहिए न? यदि मानवता ही नहीं, तो मनुष्य जीवन का ध्येय ही कहाँ रहा? यह तो 'लाइफ़' (जीवन) सारी 'फैक्चर' (खंडित) हो गई है। किस लिए जी रहे हैं, उसकी भी समझ नहीं है। मनुष्यसार क्या है? जिस गति में जाना हो वह गति मिले अथवा मोक्ष पाना हो तो मोक्ष मिले। वह संत समागम से आए प्रश्नकर्ता : मनुष्य का जो ध्येय है उसे प्राप्त करने के लिए क्या करना अनिवार्य है और कितने समय तक ? दादाश्री : मानवता में कौन-कौन से गुण हैं और वे कैसे प्राप्त हों, यह सब जानना चाहिए। जो मानवता के गुणों से संपन्न हों, ऐसे संत पुरुष हों, उनके पास जाकर आपको बैठना चाहिए। मानव धर्म यह है सच्चा मानव धर्म अभी किस धर्म का पालन करते हो? प्रश्नकर्ता: मानव धर्म का पालन करता हूँ। दादाश्री : मानव धर्म किसे कहते हैं? प्रश्नकर्ता: बस, शांति ! दादाश्री : नहीं, शांति तो मानव धर्म पालें, उसका फल है। किन्तु मानव धर्म अर्थात् आप क्या पालन करते हैं? प्रश्नकर्ता : पालन करने जैसा कुछ नहीं। कोई गुटबंदी (संप्रदाय) नहीं रखना, बस । जाति का भेद नहीं रखना, वह मानव धर्म । दादाश्री : नहीं, वह मानव धर्म नहीं है। प्रश्नकर्ता: तो फिर मानव धर्म क्या है? दादाश्री : मानव धर्म यानी क्या, उसकी थोड़ी-बहुत बात करते हैं। पूरी बात तो बहुत बड़ी चीज़ है, किन्तु हम थोड़ी बात करते हैं। किसी मनुष्य को हमारे निमित्त से दुःख न हो; अन्य जीवों की बात तो जाने दो, मगर सिर्फ मनुष्यों को संभाल लें कि 'मेरे निमित्त से उनको दुःख होना ही नहीं चाहिए, वह मानव धर्म है। वास्तव में मानव धर्म किसे कहा जाता है? यदि आप सेठ हैं और नौकर को बहुत धमका रहे हैं, उस समय आपको ऐसा विचार आना चाहिए कि, 'अगर मैं नौकर होता तो क्या होता?' इतना विचार आए तो फिर आप उसे मर्यादा में रहकर धमकाएँगे, ज्यादा नहीं कहेंगे। यदि आप किसी का नुकसान करते हों तो उस समय आपको यह विचार आए कि 'मैं सामनेवाले का नुकसान करता हूँ, परंतु कोई मेरा नुकसान करे तो क्या होगा?"
SR No.009592
Book TitleManav Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size213 KB
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