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मैं कौन हूँ?
मैं कौन हूँ?
पर आखिर क्या बचेगा ? 'My' को एक ओर रखें तो आखिर क्या बचा?
प्रश्नकर्ता : II
दादाश्री : वह 'I' ही आप हैं। बस, उसी 'I' को रीयलाइज़ करना
प्रश्नकर्ता : तो सेपरेट करके यह समझना है कि जो बाकी बचा वह 'मैं' हूँ ?
दादाश्री : हाँ, सेपरेट करने पर जो बाकी बचा, वह आप 'खुद हैं', 'I' आप खुद ही हैं। उसकी तलाश तो करनी होगी न ? अर्थात यह आसान रास्ता है न ? 'I' और 'My' अलग करें तो?
प्रश्नकर्ता : वैसे रास्ता तो आसान है, पर वो सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम भी अलग हो तब न ? वह बिना ज्ञानी के नहीं होगा न ?
दादाश्री : हाँ, वह ज्ञानी पुरुष बता देंगे। इसीलिए हम कहते हैं न, Separate 'T' and 'My' with Gnani's separator. उस सेपरेटर को शास्त्रकार क्या कहते हैं ? भेदज्ञान कहते हैं। बिना भेदज्ञान के आप कैसे अलग करेंगे? क्या-क्या चीज़ आपकी है और क्या-क्या आपकी नहीं है, इन दोनों का आपको भेदज्ञान नहीं है। भेदज्ञान माने यह सब 'मेरा' है और 'मैं' अलग हूँ इनसे। इसलिए ज्ञानी पुरुष के पास, उनके सानिध्य में रहें तो भेदज्ञान प्राप्त हो जाये और फिर हमको ('I' और माइ) सेपरेट हो जायेगा।
दादाश्री : हाँ, ज़रूरत होगी। पर ज्ञानी पुरुष तो अधिक होते नहीं न! पर जब कभी हों, तब हम अपना काम निकाल लें। ज्ञानी पुरुष का 'सेपरेटर' ले लेना एकाध घण्टे के लिए, उसका भाडा-वाड़ा (किराया) नहीं होता! उससे सेपरेट कर लेना। इससे 'I' अलग हो जायेगा, वर्ना नहीं होगा न! 'I' अलग होने पर सारा काम हो जायेगा। सभी शास्त्रों का सार इतना ही है।
आत्मा होना है तो 'मेरा'(माइ) सब कुछ समर्पित कर देना पड़ेगा। ज्ञानी पुरुष को 'My' सौंप दिया तो अकेला 'I' आपके पास रहेगा। 'I' विद 'My' उसका नाम जीवात्मा। 'मैं हूँ और यह सब मेरा है' वह जीवात्म दशा और 'मैं ही हूँ और मेरा कुछ नहीं' वह परमात्म दशा। अर्थात 'My' की वजह से मोक्ष नहीं होता है। मैं कौन हूँ' का ज्ञान होने पर 'My' छूट जाता है। 'My' छूट गया तो सब छूट गया।
'My' इज़ रिलेटीव डिपार्टमेन्ट एन्ड 'I' इज़ रीयल। अर्थात 'I' टेम्पररी नहीं होता, 'T' इज़ परमानेन्ट। 'My' इज़ टेम्पररी। याने आपको 'I' ढूँढ निकालना है।
(४) संसार में ऊपरी कौन ?
ज्ञानी ही पहचान कराये 'मैं' की ! प्रश्नकर्ता : 'मैं कौन हूँ' यह जानने की जो बात है, वह इस संसार में रहकर कैसे संभव हो सकती है ?
दादाश्री : तब कहाँ रहकर जान सकें उसे ? संसार के अलावा और कोई जगह है जहाँ रह सकें ? इस जगत में सभी संसारी ही हैं और सभी संसार में रहते हैं। यहाँ 'मैं कौन हूँ' यह जानने को मिले, ऐसा है। 'आप कौन हैं' यह समझने का विज्ञान ही है यहाँ पर। यहाँ आना, हम आपको पहचान करा देंगे।
और यह हम आपसे जितना पूछते हैं, वह हम आपसे ऐसा नहीं कहते कि आप ऐसा करें। आपसे हो सके, ऐसा नहीं है। अर्थात हम
'I' और 'My' का भेद करें तो बहुत आसान है न यह ? मैंने यह तरीका बताया, इसके अनुसार अध्यात्म सरल है कि कठिन है ? वर्ना इस काल के जीवों का तो शास्त्र पढ़ते पढ़ते दम निकल जायेगा।
प्रश्नकर्ता : आप जैसों की ज़रूरत होगी न, समझने के लिए
तो?