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मैं कौन हूँ ?
है ?
३५
रहता ।
दादाश्री : 'मैं शुद्धात्मा हूँ' यह भान आपको कितने समय रहता
प्रश्नकर्ता : एकांत में अकेले बैठे हों तब ।
दादाश्री : हाँ। फिर कौन सा भाव रहता है ? आपको 'मैं चन्दूभाई हूँ' ऐसा भाव होता है कभी ? आपको रियली 'मैं चन्दूभाई हूँ' ऐसा भाव किसी दिन हुआ था क्या ?
प्रश्नकर्ता: ज्ञान लेने के बाद नहीं हुआ।
दादाश्री : तब आप शुद्धात्मा ही हैं। मनुष्य को एक ही भाव रह सकता है। यानी 'मैं शुद्धात्मा हूँ' यह आपको निरंतर रहता ही है। प्रश्नकर्ता: पर कई बार व्यवहार में शुद्धात्मा का ख़याल नहीं
दादाश्री : तो 'मैं चन्दूभाई हूँ' वह ध्यान रहता है ? तीन घण्टे शुद्धात्मा का ध्यान नहीं रहा और तीन घण्टे के बाद पूछें, 'आप चन्दूभाई है या शुद्धात्मा हैं ? तब क्या कहेंगे ?
प्रश्नकर्ता: शुद्धात्मा ।
दादाश्री : यानी वह ध्यान था ही। एक सेठ हो, उसने शराब पी रखी हो, उस समय ध्यान सारा चला जाये, पर शराब का नशा उतरने पर... ?
प्रश्नकर्ता: फिर जागृत हो जाये।
दादाश्री : ऐसे यह भी दूसरा, बाहर का असर है।
मेरे पूछने पर कि वास्तव में 'चन्दूभाई' हैं कि 'शुद्धात्मा' हैं ? आप कहें कि शुद्धात्मा । दूसरे दिन आप से पूछता हूँ कि 'आप वास्तव में कौन हैं ?' तब आप कहें कि 'शुद्धात्मा'। पांच दिनों तक मैं पूछता रहूँ, इसके बाद मैं समझ जाऊँ कि आपके मोक्ष की चाबी मेरे पास है।
३६
आया अपूर्व भान !
श्रीमद् राजचंद्र जी क्या कहते हैं कि,
'सद्गुरु के उपदेश से आया अपूर्व भान, निजपद, निज मांही मिला, दूर भया अज्ञान ।'
मैं कौन हूँ ?
पहले देहाध्यास का ही भान था। पहले देहाध्यास रहित भान हमें
था नहीं। वह अपूर्व भान, वह आत्मा का भान हमें हुआ। जो 'खुद' का निजपद था कि 'मैं चन्दूभाई हूँ' ऐसा बोलता था, वह 'मैं' अब निज मांही बैठ गया। जो निज पद था, वह निज में बैठ गया और जो अज्ञान था, 'मैं चन्दूभाई हूँ' यह अज्ञान दूर हो गया ।
यह देहाध्यास कहलाये !
जगत देहाध्यास से मुक्त नहीं हो सकता और अपने स्वरूप में नहीं रह सकता। आप स्वरूप में रहे यानी अहंकार गया, ममता गयी। 'मैं चन्दूभाई हूँ' यह देहाध्यास कहलाये और 'मैं शुद्धात्मा हूँ' यह लक्ष्य बैठा, तब से किसी तरह का अध्यास नहीं रहा । अब कुछ रहा नहीं। फिर भी भूलचूक होने पर थोड़ी घुटन महसूस होगी।
शुद्धात्मा पद शुद्ध ही !
यह 'ज्ञान' लेने के बाद पहले जो भ्राँति थी कि 'मैं करता हूँ', वह भान टूट गया। इसलिए शुद्ध ही हूँ, यह भान रहने के लिए 'शुद्धात्मा' कहा। किसी के साथ कुछ भी हो जाये, 'चन्दूभाई' गालियाँ दे, फिर भी आप शुद्धात्मा हैं। फिर 'हमें' चन्द्रभाई से कहना चाहिए कि 'भैया, किसी को दुःख पहुँचे ऐसा अतिक्रमण क्यों करते हैं ? इसलिए प्रतिक्रमण करो।'
किसी को दुःख पहुँचे ऐसा कुछ कह दिया हो, वह 'अतिक्रमण किया' कहलाये । उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए।
प्रतिक्रमण, यानी आपकी समझ में आये, उस प्रकार उसकी