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मैं कौन हूँ?
मैं कौन हूँ?
दादाश्री : क्योंकि मुझे तो चार डिग्री पूरी करनी है। मुझे पूरी तो करनी पड़ेगी न? चार डिग्री कम रही, नापास हुआ पर पास हुए बगैर छुटकारा है ?
प्रश्नकर्ता : आपको भगवान होने का मोह है क्या ?
दादाश्री : मुझे तो भगवान होना बहुत बोझरूप लगता है। मैं तो लघुतम पुरुष हूँ। इस दुनिया में मुझ से कोई लघु नहीं है ऐसा लघतम हूँ। अर्थात भगवान होना मुझे बोझ सा लगे, उलटे शरम आती है।
प्रश्नकर्ता : भगवान नहीं होना हो तो फिर यह चार डिग्री पूरी करने का पुरुषार्थ किस लिए करना है ?
दादाश्री : वह तो मोक्ष में जाने के लिए। मुझे भगवान होकर क्या करना है ? भगवान तो, भगवत् गुण धारण करते हों, वे सभी भगवान होते हैं। 'भगवान' शब्द विशेषण है। कोई भी मनुष्य उसके योग्य हो, तो लोग उसे भगवान कहते ही हैं।
यहाँ प्रकट हुए, चौदह लोक के नाथ ! प्रश्नकर्ता : 'दादा भगवान' शब्द प्रयोग किस के लिए किया गया
नहीं आयेगा। आपकी समझ में आया, 'दादा भगवान' क्या हैं ?
यह दिखाई देते हैं, वे 'दादा भगवान' नहीं हैं। आप, यह जो दिखाई देते हैं, उन्हें 'दादा भगवान' समझते होंगे, नहीं ? पर यह दिखाई देने वाले तो भादरण के पटेल हैं। मैं 'ज्ञानी पुरुष' हूँ और 'दादा भगवान' तो भीतर बैठे हैं, भीतर प्रकट हुए हैं, वे हैं। चौदह लोक के नाथ प्रकट हुए हैं, उन्हें मैंने खुद देखा है, खुद अनुभव किया है। इसलिए मैं गारन्टी से कहता हूँ कि वे भीतर प्रकट हुए हैं।
और यह बात कौन कर रहा है ? 'टेपरिकार्डर' बात कर रहा है। क्योंकि 'दादा भगवान' में बोलने की शक्ति नहीं है और यह 'पटेल' तो टेपरिकार्डर के आधार पर बोलते हैं। क्योंकि 'भगवान'
और 'पटेल' दोनों अलग हुए, इसलिए वहाँ पर अहंकार कर नहीं सकते। यह टेपरिकार्डर बोलता है, उसका मैं ज्ञाता-द्रष्टा रहता हूँ। आपका भी टेपरिकार्डर बोलता है, पर आपके मन में 'मैं बोला' ऐसा गर्वरस (अहंकार) आपको उत्पन्न होता है। बाकी, हमें भी दादा भगवान को नमस्कार करने पड़ते हैं। हमारा दादा भगवान के साथ जुदापन (भिन्नता) का व्यवहार ही है। व्यवहार ही जुदापन का है। पर लोग ऐसा समझते हैं कि ये खुद ही दादा भगवान हैं। नहीं, खुद दादा भगवान कैसे हो सकते हैं ? ये तो पटेल हैं, भादरण के।
(११) सीमंधर स्वामी कौन ?
तीर्थंकर भगवान श्री सीमंधर स्वामी ! प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी कौन हैं, यह समझाने की कृपा करेंगे?
दादाश्री : सीमंधर स्वामी वर्तमान में तीर्थंकर साहिब हैं। वे दूसरे क्षेत्र में हैं। जैसे ऋषभदेव भगवान हुए, महावीर भगवान हुए ऐसे ही सीमंधर स्वामी तीर्थंकर हैं। जो आज भी महाविदेह क्षेत्र में विचरते हैं।
बाकी, महावीर भगवान तो सब बता कर गये हैं। पर लोगों की समझ टेढ़ी है तो क्या हो सकता है ? इसलिए फल प्राप्त नहीं होता है न?
दादाश्री : 'दादा भगवान' के लिए। मेरे लिए नहीं, मैं तो ज्ञानी पुरुष हूँ।
प्रश्नकर्ता : कौन से भगवान ?
दादाश्री : 'दादा भगवान', जो चौदह लोक के नाथ हैं। वह आप में भी हैं, पर आप में प्रकट नहीं हुए। आप में अव्यक्त रूप से रहे हैं और यहाँ व्यक्त हुए हैं। व्यक्त हुए, वे फल दें, ऐसे हैं। एक बार भी उनका नाम लें तो भी काम निकल जाये ऐसा है। पर पहचान कर बोलने पर तो कल्याण हो जाये और सांसारिक चीज़ों की यदि अड़चन हो तो वह भी दूर हो जाये। पर उनमें लोभ मत करना और लोभ करने गये तो अंत ही