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मैं कौन हूँ?
मैं कौन हूँ?
यह अक्रम विज्ञान लॉटरी के समान है। लॉटरी में इनाम मिले, उसमें उसने कोई मेहनत की थी? रुपया उसने भी दिया था और औरों ने भी रुपया दिया था, पर उसका चल निकला। ऐसे यह अक्रम विज्ञान, तुरंत ही मोक्ष दे देता है, नक़द ही!
अक्रम से आमूल परिवर्तन ! अक्रम विज्ञान तो बहुत बड़ा अजूबा कहलाता है। यहाँ आत्मज्ञान' लेने के बाद दूसरे दिन से मनुष्य में परिवर्तन हो जाता है। यह सुनते ही लोगों को यह विज्ञान स्वीकार हो जाता है और यहाँ खिंचे चले आते हैं।
अक्रम मार्ग, विश्वभर में ! यह संयोग तो बहुत उच्च कोटि का बना है। ऐसा अन्य किसी जगह हुआ नहीं है। एक ही मनुष्य, 'दादाजी' अकेले ही कार्य कर सकें, दूसरा कोई नहीं कर सकता।
प्रश्नकर्ता : बाद में भी दादाजी की कृपा रहेगी न ? आपके बाद क्या होगा?
दादाश्री : यह मार्ग तो चलता रहेगा। मेरी इच्छा है कि कोई भी तैयार हो जाये, पीछे मार्ग चलानेवाला चाहिए न ?
बोलती है। सच बात का अमल देर से होता है और झूठी बात का अमल जल्दी होता है।
अक्रम द्वारा स्त्री का भी मोक्ष ! लोग कहते हैं कि मोक्ष पुरुष का ही होता है, स्त्रियों का मोक्ष नहीं। इस पर मैं उनसे कहता हूँ कि स्त्रियों का भी मोक्ष होता है। क्यों नहीं होगा? तब कहते है, उसकी कपट की और मोह की ग्रंथि बहुत बड़ी है। पुरुष की छोटी गाँठ होती है, तो उनकी उतनी बड़ी सूरन (ज़मीकंद) जितनी होती है।
स्त्री भी मोक्ष में जायेगी। भले ही सभी मना करते हों, पर स्त्री मोक्ष के लिए लायक है। क्योंकि वह आत्मा है और पुरुषों के साथ संपर्क में आयी है, इसलिए उसका भी हल निकलेगा, पर स्त्री प्रकृति में मोह बलवान होने से ज्यादा वक्त लगेगा।
_काम निकाल लें !
प्रश्रकर्ता : चाहिए।
दादाश्री : मेरी इच्छा पूर्ण हो जायेगी।
प्रश्नकर्ता : 'अक्रम विज्ञान' यदि चालू रहेगा, तो वह निमित्त से चालू रहेगा!
दादाश्री : 'अक्रम विज्ञान' चालू ही रहेगा। अक्रम विज्ञान सालदो साल ऐसे ही चलता रहा तो सारी दुनिया में इसकी ही बातें चलेंगी
और पहँच जायेगा चरम तक (फैल जायेगा सभी जगह)। क्योंकि जैसे झूठी बात सिर चढ़कर बोलती है, उसी तरह सच बात भी सिर चढ़कर
अपना काम निकाल लेना, जब ज़रूरत हो तब। ऐसा भी नहीं है कि आप अवश्य आना ही। आपको ठीक लगे तो आना। और संसार पसंद हो, पुसाता हो (अँचता हो), तब तक वह व्यापार चलाते रहना। हमें ऐसा नहीं है कि आप ऐसा ही कीजिए। और हम आपको खत भी लिखने वाले नहीं। यहाँ पर आये हों तो आपसे कहेंगे कि, 'भाई, लाभ उठाइए।' इतना ही कहेंगे आपको। हजारों सालों से ऐसा विज्ञान प्रकट नहीं हुआ है। इसलिए मैं कहता हूँ कि पीछे जो भी होना हो सो हो, पर यह काम निकाल लेने जैसा है।
(९) 'ज्ञानी पुरुष' कौन ?
संत पुरुष : ज्ञानी पुरुष ! प्रश्नकर्ता : ये जो संत हो गये सभी, उनमें और ज्ञानी में कितना अंतर?