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________________ मैं कौन हैं? मैं कौन हूँ? उसे मोक्ष कहते ही नहीं ! छोटा बच्चा हो वह भी कहता है कि, 'भगवान ने बनाया'। बड़े संत हो वे भी कहते हैं कि 'भगवान ने बनाया'। यह बात लौकिक है, अलौकिक (रीयल) नहीं है। भगवान यदि क्रियेटर होता तो वह सदा के लिए हमारा ऊपरी ठहरता और मोक्ष जैसी चीज नहीं होती। पर मोक्ष है। भगवान क्रियेटर नहीं है। मोक्ष को समझने वाले लोग भगवान को क्रियेटर नहीं मानते। 'मोक्ष' और 'भगवान क्रियेटर' ये दोनों विरोधाभासी बातें हैं। क्रियेटर तो हमेशा का उपकारी हुआ और उपकारी हुआ इसलिए आखिर तक ऊपरी का ऊपरी ही रहा। तो भगवान को किसने बनाया ? भगवान ने बनाया, यदि ऐसा हम अलौकिक तौर पर कहेंगे तो 'लोजिक' वाले हमें पूछेगे कि, 'भगवान को किसने बनाया ?' इसलिए प्रश्न खड़े होते हैं। लोग मुझे कहते हैं, 'हमें लगता है कि भगवान ही दुनिया के कर्ता हैं। आप तो इन्कार करते हैं, पर आपकी बात मानने में नहीं आती है। तब मैं पूछता हूँ कि यदि मैं स्वीकार करूँ कि भगवान कर्ता है, तो उस भगवान को किसने बनाया है ? यह आप मुझे बतायें। और उस बनाने वाले को किसने बनाया ? कोई भी कर्ता हुआ तो उसका कर्ता होना चाहिए, यह 'लोजिक' है। पर फिर उसका एन्ड(अंत) ही नहीं आयेगा, इसलिए वह बात गलत है। न आदि, न ही अंत, जगत का ! प्रमाणित करने के लिए आप मेरे साथ थोड़ी बातचीत कीजिए। यदि वह क्रियेटर है तो उसने किस साल में क्रियेट किया यह बताइए। तब वे कहते हैं, 'साल हमें मालूम नहीं है।' मैंने पूछा, 'पर उसकी बिगिनिंग हुई कि नहीं हुई?' तब कहें, 'हाँ, बिगिनिंग हुई। क्रियेटर कहा, माने बिगिनिंग होगी ही !' जिसकी बिगिनिंग होगी, उसका अंत होगा। पर यह तो बिना एन्ड का जगत है। बिगिनिंग नहीं हुई फिर एन्ड कहाँ से होगा? यह तो अनादि अनंत है। जिसकी बिगिनिंग नहीं हुई हो, उसका बनानेवाला नहीं हो सकता, ऐसा नहीं लगता ? भगवान का सही पता ! तब इन फोरिन के सायंटिस्टों ने पूछा कि, 'तो भगवान नहीं है, क्या?' तब मैंने कहा, 'भगवान नहीं होते तो इस जगत में जो भावनाएँ है, सुख और दुःख का जो अनुभव होता है, उसका कोई अनुभव ही नहीं होता। इसलिए भगवान अवश्य हैं।' उन्होंने मुझसे पछा कि, 'भगवान कहाँ रहते है ?' मैंने कहा, 'आपको कहाँ लगते हैं ?' तब वे कहें, 'ऊपर'। मैंने पूछा, 'वे ऊपर कहाँ रहते हैं ? उनकी गली का नंबर क्या ? कौन सी गली, जानते हैं आप ? खत पहुँचे ऐसा सही एड्रेस है आपके पास?' ऊपर तो कोई बाप भी नहीं है। सब जगह मैं घूम आया। सब लोग कहते थे कि ऊपर है, ऊपर उँगली उठाते रहे। इससे मेरे मन में हुआ कि सभी लोग बता रहें हैं, इसलिए कुछ होना चाहिए। इसलिए मैं ऊपर सब जगह तलाश कर आया तो ऊपर तो खाली आकाश ही है. ऊपर कोई नहीं मिला। ऊपर तो कोई रहता नहीं है। अब उन फोरिन के सायंटिस्टों ने मुझसे कहा कि, 'भगवान का सही एड्रेस बतायेंगे ?' मैंने कहा, 'लिख लीजिए। गॉड इज इन एवरी क्रियेचर, व्हेदर 'विज़िबल' और 'इनविज़िबल', नोट इन क्रियेशन।' (भगवान, आँखों से दिखाई देनेवाले या नहीं दिखाई देनेवाले, हर एक जीव में विद्यमान हैं, पर मानव निर्मित किसी चीज़ में नहीं।') यानी किसी के बनाये बगैर बना है, किसी ने बनाया नहीं इसे। किसी ने बनाया नहीं है, इसलिए अब किससे पूछेगे इसके बारे में हम? मैं भी ढूँढता था कि कौन इसका जिम्मेवार है, जिसने यह सारा झमेला किया ! मैंने सब जगह तलाश किया, पर कहीं नहीं मिला। मैंने 'फोरीन' के सायन्टिस्टों से कहा कि, 'गोड क्रियेटर है, इसे यह टेपरिकार्डर 'क्रियेशन' कहलाता है। जितनी मैनमेड (मानव
SR No.009591
Book TitleMai Kaun Hun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2005
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size271 KB
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