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________________ १३४ क्लेश रहित जीवन ६. व्यपार, धर्म समेत दादाश्री : आप ग्राहक को आकर्षित करनेवाले कौन? आपको तो दुकान जिस समय लोग खोलते हों, उसी समय खोलनी। लोग सात बजे खोलते हों, और हम साढ़े नौ बजे खोलें तो वह गलत कहलाएगा। लोग जब बंद करें तब हमें भी बंद करके घर जाना चाहिए। व्यवहार क्या कहता है कि लोग क्या करते हैं वह देखो। लोग सो जाएँ तब आप भी सो जाओ। रात को दो बजे तक अंदर घमासान मचाया करो, वह किसके जैसी बात! खाना खाने के बाद सोचते हो कि किस तरह पचेगा? उसका फल सुबह मिल ही जाता है न? ऐसा व्यापार में सब जगह है। तो नौकरों को सेठ धमकाते रहता है। तब हम उनकी जगह पर हो तो क्या होगा? वह बेचारा नौकरी करने आता है और आप उसे धमकाते हो, तो वह बैर बाँधकर सहन कर लेगा। नौकर को धमकाना मत, वह भी मनुष्यजाति है। उसे घर पर बेचारे को दु:ख और यहाँ आप सेठ होकर धमकाओ तब वह बेचारा कहाँ जाए? बेचारे पर जरा दयाभाव तो रखो! प्रश्नकर्ता : दादा, अभी दुकान में ग्राहकी बिलकुल नहीं है तो क्या करूँ? दादाश्री : यह 'इलेक्ट्रिसिटी' जाए, तब आप 'इलेक्ट्रिसिटी कब आएगी, कब आएगी' ऐसा करो तो जल्दी आती है? वहाँ आप क्या करते हो? यह तो ग्राहक आए तो शांति से और प्रेम से उसे माल देना। ग्राहक नहीं हों, तब भगवान का नाम लेना। यह तो ग्राहक नहीं हों, तब इधर देखता है और उधर देखता है। अंदर अकुलाया करता है, 'आज खर्च सिर पर पड़ेगा। इतना नुकसान हो गया', ऐसा चक्कर चलाता है, चिढ़ता है और नौकर को धमकाता भी है। ऐसे आर्तध्यान और रौद्रध्यान किया करता है ! ग्राहक आते हैं, वह 'व्यवस्थित' के हिसाब से जो ग्राहक आनेवाला हो वही आता है, उसमें अंदर चक्कर मत चलाना। दुकान में ग्राहक आए तो पैसे का लेन-देन करना, पर कषाय मत करना. पटाकर काम करना है। यदि पत्थर के नीचे हाथ आ जाए तो हथौडा मारते हो? ना, वहाँ तो दब जाए तो पटाकर निकाल लेना चाहिए। उसमें कषाय का उपयोग करें तो बैर बँधता है और एक बैर में से अनंत खडे होते हैं। यह बैर से ही जगत् खड़ा है, वही मूल कारण है। प्रामाणिकता, भगवान का लाइसन्स प्रश्नकर्ता : एक-दो बार फोन करते हैं या खुद कहने जाते हैं। दादाश्री : सौ बार फोन नहीं करते? प्रश्नकर्ता : ना। दादाश्री : यह लाइट गई तब हम तो चैन से गा रहे थे और फिर अपने आप ही आ गई न? प्रश्नकर्ता : मतलब हमें नि:स्पृह हो जाना है? दादाश्री : नि:स्पृह होना भी गुनाह है और सस्पृह होना भी गुनाह है। लाइट आए तो अच्छा, ऐसा हमें रखना है, सस्पृह-नि:स्पृह रहने का कहा है। ग्राहक आएँ तो अच्छा ऐसा रखना है, बेकार भाग-दौड़ मत करना। 'रेग्युलारिटी' और भाव नहीं बिगाड़ना, वह 'रिलेटिव' पुरुषार्थ है। ग्राहक नहीं आएँ तो अकुलाना नहीं और एक दिन ग्राहकों के अँड पर झुंड आएँ तब सबको संतोष देना। यह तो एक दिन ग्राहक नहीं आएँ प्रश्नकर्ता : आजकल प्रामाणिकता से व्यापार करने जाएँ तो ज्यादा मुश्किलें आती हैं, वह क्यों ऐसा? दादाश्री : प्रामाणिक प्रकार से काम किया तो एक ही मुश्किल आती है, परन्तु अप्रामाणिक रूप से काम करेंगे तो दो प्रकार की मुश्किलें आएँगी। प्रामाणिकता की मुश्किल में से तो छूटा जाएगा, परन्तु अप्रामाणिकता में से छूटना मुश्किल है। प्रामाणिकता, वह तो भगवान का बड़ा 'लाइसेन्स' है, उस पर कोई ऊँगली नहीं उठाता। आपको वह 'लाइसेन्स' फाड़ डालने का विचार आता है?
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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