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________________ ५. समझ से सोहे गृहसंसार क्लेश रहित जीवन फँसाव लगता है। मुझे कोई हेल्पर मिले, संसार अच्छा चले, ऐसा कोई पार्टनर मिले इसलिए शादी करते हैं न? संसार ऐसे आकर्षक लगता है परन्तु अंदर घुसने के बाद उलझन होती है, फिर निकला नहीं जाता। लक्कड़ का लड्डू जो खाए वह भी पछताए, जो न खाए वह भी पछताए। शादी करके पछताते हैं, मगर पछताने से ज्ञान होता है। अनुभवज्ञान होना चाहिए न? यों ही किताब पढ़ें तो क्या अनुभवज्ञान होता है? किताब पढ़कर क्या वैराग आता है? वैराग तो पछतावा हो तब होता है। इस तरह शादी निश्चित होती है एक लड़की को शादी ही नहीं करनी थी, उसके घरवाले मेरे पास उसे लेकर आए। तब मैंने उसे समझाया, शादी किए बिना चले ऐसा नहीं है, और शादी करके पछताए बिना चले ऐसा नहीं है। इसलिए यह सब रोना-धोना रहने दे और मैं कहता हूँ उसके अनुसार तू शादी कर ले। जैसा वर मिले वैसा, परन्तु वर तो मिला न। किसी भी प्रकार का दुल्हा चाहिए, ताकि लोगों का उँगली उठाना टल जाए न! और किस आधार पर दुल्हा मिलता है वह मैंने उसे समझाया। वह लड़की समझ गई, और मेरे कहे अनुसार शादी कर ली। परन्तु फिर पति जरा देखने में अच्छा नहीं लगा। परन्तु उसने कहा कि मुझे दादाजी ने कहा है इसलिए शादी करनी ही है। उस लड़की को शादी करने से पहले ज्ञान दिया, और फिर तो उसने मेरे एक भी शब्द का उल्लंघन नहीं किया और वह लडकी एकदम सुखी हो गई। लड़के लड़की को पसंद करने से पहले बहुत मीनमेख निकालते है। बहुत ऊँची है, बहुत नीची है, बहुत मोटी है, बहुत पतली है, ज़रा काली है। घनचक्कर, यह क्या भैंस है? लड़कों को समझाओ कि शादी करने का तरीका क्या होता है ! तुझे जाकर लड़की को देख आना और आँख से आकर्षण हो वहाँ अपनी शादी निश्चित है और आकर्षण न हो तो हमें बंद रखना है। 'जगत्' बैर वसूलता ही है यह तो 'ऐसे फिर, वैसे फिर' करता है ! एक लड़का ऐसे बोल रहा था उसे मैंने तो बहुत डाँटा। मैंने कहा, 'तेरी मदर भी बहू बनी थी। तू किस तरह का मनुष्य है?' स्त्रियों का इतना अधिक घोर अपमान ! आज लड़कियाँ बढ़ गई हैं, इसलिए स्त्रियों का अपमान होता है। पहले तो इन बेवकूफों का घोर अपमान होता था। उसका ये बदला लेते हैं। पहले तो पाँच सौ बेवकूफ-राजा लाइन में खड़े रहते थे और एक राजकुमारी वरमाला पहनाने निकलती थी, और वे बेवकूफ गरदन आगे रखकर खड़े रहते थे! राजकुमारी आगे खिसक जाती कि उसे काटो तो खून भी न निकले! कितना घोर अपमान! अरे, रखो यह शादी करने का! उससे तो शादी नहीं करी हो वह अच्छा! और आजकल तो लडकियाँ भी कहने लगी हैं कि जरा ऐसे फिरों तो? आप जरा कैसे दिखते हो? देखो, हमने इस तरह देखने का सिस्टम निकाला तो यह हाल हो गया है अपना? इससे तो सिस्टम ही नहीं बनाते तो क्या बुरा था? यह हमने लफड़ा डाला तो हमें वह लफड़ा बढ़ा। इस काल में ही, पिछले पाँचेक हज़ार वर्षों से पुरुष कन्या लेने जाता हैं। उससे पहले तो बाप स्वयंवर रचाते थे और उसमें वे सौ बेवकूफ आए हुए होते थे! उसमें से कन्या एक बेवकूफ को पास करती थी ! इस तरह पास होकर शादी करनी हो, उससे तो शादी नहीं करना अच्छा। ये सभी बेवकूफ लाइन में खड़े रहते थे, उसमें से कन्या वरमाला लेकर निकलती थी। सब के मन में लाखों आशाएँ होतीं, वे गरदन आगे रखा करते! इस तरह अपनी पसंद की पत्नी लाएँ, उससे तो जन्म ही न लेना अच्छा! इसीसे आज वे बेवकूफ स्त्रियों का भयंकर अपमान करके बैर वसल रहे हैं! स्त्री को देखने जाता है तब कहता है, 'ऐसे फिर, वैसे फिर।' 'कॉमनसेन्स' से 'सोल्युशन' आता है मैं सबको ऐसा नहीं कहता कि आप सब मोक्ष में चलो। मैं तो ऐसा कहता हूँ कि जीवन जीने की कला सीखो। कॉमनसेन्स तो थोड़ा
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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