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________________ क्लेश रहित जीवन इस झंझट में हैं, ऐसे संसार भी फोजदारी ही है। इसलिए उसमें भी सरल हो जाना चाहिए। घर पर भोजन की थाली आती है या नहीं आती? प्रश्नकर्ता : आती है। दादाश्री : भोजन चाहिए तो मिलता है, पलंग चाहिए तो बिछा देते हैं, फिर क्या? और खटिया न बिछाकर दे तो वह भी हम बिछा लें और हल लाएँ। शांति से बात समझानी पड़ती है। आपके संसार के हिताहित की बात क्या गीता में लिखी होती है? वह तो खुद ही समझनी पड़ेगी न? ५. समझ से सोहे गृहसंसार तो उन्हें मारता। पर यहाँ क्या करे अब? यानी बिना काम के दखल करते हैं। बासमती के चावल अच्छे पकाते हैं और फिर अंदर कंकड़ डालकर खाते हैं ! उसमें क्या स्वाद आए? स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे को हेल्प करनी चाहिए। पति को चिंता-वरीज़ रहती हों, तो उसे किस प्रकार वह न हो, ऐसा स्त्री को बोलना चाहिए। वैसे ही पति को भी पत्नी मुश्किल में न पड़े ऐसा देखना चाहिए। पति को भी समझना चाहिए कि स्त्री को बच्चे घर पर कितना परेशान करते होंगे! घर में टूट-फूट हो तो पुरुष को चिल्लाना नहीं चाहिए। पर फिर भी लोग चिल्लाते हैं कि पिछली बार सबसे अच्छे एक दर्जन कप-रकाबी लेकर आया था, आपने वे सब क्यों फोड़ डाले? सब खतम कर दिया। इससे पत्नी के मन में लगता है कि मैंने तोड़ डाले? मुझे क्या वे खा जाने थे? टूट गए तो ट गए, उसमें मैं क्या करूँ? मी काय करूँ?' कहेगी। अब वहाँ भी लड़ाई-झगड़ा। जहाँ कुछ लेना नहीं और देना नहीं। जहाँ लड़ने का कोई कारण ही नहीं, वहाँ भी लड़ना? हमारे और हीराबा के बीच कोई मतभेद ही नहीं पड़ता था। हमें उनके काम में हाथ ही नहीं डालना कभी भी। उनके हाथ से पैसे गिर गए हों, हमने देखे हों, फिर भी हम ऐसा नहीं कहते कि आपके पैसे गिर गए। उन्होंने देखा या नहीं देखा? घर की किसी बात में हम हस्तक्षेप नहीं करते थे। वे भी हमारी किसी बात में दखल नहीं करती थीं। हम कितने बजे उठते हैं, कितने बजे नहाते हैं, कब आते हैं, कब जाते हैं, ऐसी हमारी किसी बात में कभी भी वे हमें नहीं पछती थी। और किसी दिन हमें कहें कि आज जल्दी नहा लेना। तो हम तुरन्त धोती मँगवाकर नहा लेते थे। अरे, अपने आप ही तौलिया लेकर नहा लेते थे। क्योंकि हम समझते थे कि ये 'लाल झंडी' दिखाते हैं, इसलिए कोई डर होगा। पानी नहीं आनेवाला हो या ऐसा कुछ हो तब ही वे हमें जल्दी नहा लेने का कहेंगी, इसीलिए हम समझ जाते। इसलिए थोड़ा-थोड़ा व्यवहार में आप भी समझ लो न, कि किसी के काम में हाथ डालने जैसा नहीं है। फोजदार पकड़कर हमें ले जाए फिर वह जैसा कहे वैसा हम नहीं करेंगे? जहाँ बिठाए वहाँ हम नहीं बैठेंगे? हम समझें कि यहाँ है तब तक __ हसबैन्ड मतलब वाइफ की भी वाइफ (पति यानी पत्नी की पत्नी) यह तो लोग पति ही बन बैठे हैं! अरे, वाइफ क्या पति बन बैठनेवाली है? हसबैन्ड यानी वाइफ की वाइफ। अपने घर में जोर से आवाज नहीं होनी चाहिए। यह क्या लाउड स्पीकर है? यह तो यहाँ चिल्लाता है तो गली के नुक्कड़ तक सुनाई देता है। घर में गेस्ट की तरह रहो। हम भी घर में गेस्ट की तरह रहते हैं। कुदरत के गेस्ट की तरह यदि आपको सुख न आए तो ससुराल में क्या सुख आनेवाला है? 'मार' का फिर बदला लेती है प्रश्नकर्ता : दादा, मेरा मिजाज़ हट जाता है, तब मेरा हाथ कितनी बार पत्नी पर उठ जाता है। दादाश्री : स्त्री को कभी भी मारना नहीं चाहिए। जब तक शरीर मज़बूत होगा आपका तब तक चुप रहेगी, फिर वह आप पर चढ़ बैठेगी। स्त्री को और मन को मारना वह तो संसार में भटकने के दो साधन है। इन दोनों को मारना नहीं चाहिए। उनके पास से तो समझाकर काम लेना पड़ता है। हमारा एक मित्र था। उसे मैं जब देखू तब पत्नी को एक तमाचा
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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