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क्लेश रहित जीवन शोर मचाएँ कि कढ़ी खारी हो गई, खारी हो गई, तो सब बिना समझ का
५. समझ से सोहे गृहसंसार हाथीभाई आए और मुर्गाभाई आए! यह तो लोगों को राम होना नहीं है
और घर में सीताजी को खोजते हैं। पगले. राम तो तझे नौकरी पर भी नहीं रखें। इसमें इनका भी दोष नहीं है। आपको स्त्रियों के साथ डीलिंग करना नहीं आता है। आपको व्यापारियों को ग्राहकों के साथ डीलिंग करना नहीं आएगा तो वह आपके पास नहीं आएंगे। इसलिए अपने लोग नहीं कहते कि सेल्समेन अच्छा रखो? अच्छा, दर्शनीय, होशियार सेल्समेन हो तो लोग थोड़ा भाव भी ज्यादा दे देते हैं। उसी प्रकार हमें स्त्री के साथ डीलिंग करते आना चाहिए।
स्त्री को तो एक आँख से देवी की तरह देखो और दूसरी आँख से उसका स्त्री चरित्र देखो। एक आँख में प्रेम और दसरी आँख में कड़काई रखो तभी बेलेन्स रह पाएगा। अकेली देवी की तरह देखोगे और आरती उतारोगे तो वह उलटी पटरी पर चढ़ जाएगी, इसलिए बेलेन्स में रखना।
'व्यवहार' को 'इस' तरह से समझने जैसा है।
पुरुष को स्त्री की बात में हाथ नहीं डालना चाहिए और स्त्री को परुष की बात में हाथ नहीं डालना चाहिए। हरएक को अपने-अपने डिपार्टमेन्ट में ही रहना चाहिए।।
प्रश्नकर्ता : स्त्री का डिपार्टमेन्ट कौन-सा? किस-किसमें पुरुषों को हाथ नहीं डालना चाहिए?
दादाश्री: ऐसा है, खाने का क्या करना, घर कैसे चलाना, वह सब स्त्री का डिपार्टमेन्ट है। गेहूँ कहाँ से लाती है, कहाँ से नहीं लाती वह हमें जानने की क्या जरूरत है? वह यदि हमें कहती हों कि गेहँ लाने में मझे अड़चन पड़ रही है तो वह बात अलग है। परन्तु हमें वह कहती न हों, राशन बताती नहीं हों, तो हमें उस डिपार्टमेन्ट में हाथ डालने की जरूरत ही क्या है? आज दूधपाक बनाना, आज जलेबी बनाना, वह भी हमें कहने की ज़रूरत क्या है? टाइम आएगा तब वह रखेगी। उनका डिपार्टमेन्ट वह उनका स्वतंत्र है। कभी बहुत इच्छा हुई हो तो कहना कि, 'आज लड्डू बनाना।' कहने के लिए मना नहीं करता परन्तु दूसरी टेढ़ी-मेढ़ी, बेकार का
यह रेलवेलाइन चलती है, उसमें कितनी सारी कार्यवाही होती है! कितनी जगहों से नोंध आती हैं, खबरें आती हैं, उनका पूरा डिपार्टमेन्ट ही अलग। अब उसमें भी खामी तो आती ही है न? वैसे ही वाइफ के डिपार्टमेन्ट में कभी खामी भी आ जाती है। अब हम यदि उनकी खामी निकालने जाएँ तो फिर वे हमारी खामी निकालेंगी, आप ऐसा नहीं करते. आप वैसा नहीं करते। ऐसा खत आया और वैसा किया आपने। यानी कि वह बैर वसूलती है। मैं आपकी कमी निकालें तो आप भी मेरी कमी निकालने के लिए बेताब होते हैं। इसलिए खरा मनुष्य तो घर की बातों में हाथ ही न डाले। वह पुरुष कहलाता है। नहीं तो स्त्री जैसा होता है। कुछ मनुष्य तो घर में जाकर मिर्ची के डिब्बे में देखते हैं कि दो महीने हुए मिर्ची लाए थे, वह इतनी ही देर में पूरी हो गई? अरे, मिर्ची देखता है तो कब पार आएगा? वह जिसका डिपार्टमेन्ट हो उसे चिंता नहीं होती? क्योंकि वस्तु तो खर्च होती रहती है और खरीदी भी जाती है। पर यह तो बिना काम के ज्यादा अक्लमंद बनने जाता है। फिर पत्नी भी समझती है कि इनकी चवन्नी गिर गई है। माल कैसा है, वह स्त्री समझ जाती है। घोड़ी समझ जाती है कि ऊपर बैठनेवाला कैसा है, वैसे ही स्त्री सब समझ जाती है। इसके बदले तो 'भाभो भारमां तो वह लाजमां' पुरुष गरिमा में नहीं रहे तो बहू किस तरह लाज में रहे? नियम और मर्यादा से ही व्यवहार शोभा देगा। मर्यादा पार मत करना और निर्मल रहना।
प्रश्नकर्ता : स्त्री को पुरुष की किस बात में हाथ नहीं डालना चाहिए?
दादाश्री : पुरुष की किसी भी बात में दखल नहीं डालना चाहिए। दुकान में कितना माल लाए? कितना गया? आज देर से क्यों आए? उसे फिर कहना पड़ता है कि आज नौ बजे की गाड़ी चूक गया। तब पत्नी कहेगी कि ऐसे कैसे घूमते हो कि गाड़ी चूक जाते हो? इसलिए फिर पति चिढ़ जाता है। उसके मन में होता है कि ऐसे भगवान भी पछनेवाले होते