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________________ ५. समझ से सोहे गृहसंसार ५६ क्लेश रहित जीवन दादाश्री : टकराव टालने का मतलब सहन करना नहीं है। सहन करोगे तो कितना करोगे? सहना करना और स्प्रिंग दबाना, वह दोनों एक जैसा है। स्प्रिंग दबाई हई कितने दिन रहेगी? इसलिए सहन करना तो सीखना ही मत, सोल्युशन लाना सीखो। अज्ञान दशा में तो सहन ही करना होता है। फिर एक दिन स्प्रिंग उछले वैसे सब गिरा दे, पर वह तो कुदरत का नियम ही ऐसा है। ऐसा जगत् का नियम ही नहीं कि किसी के कारण हमें सहन करना पड़े। जो कुछ सहन करना पड़ता है दूसरों के हिसाब से, वह अपना ही हिसाब होता है। परन्तु हमें पता नहीं चलता कि यह कौन-से खाते का, कहाँ का माल है? इसीलिए हम ऐसा समझते हैं कि इसने नया माल उधार देना शुरू किया। नया कोई देता ही नहीं, दिया हुआ ही वापिस आता है। अपने ज्ञान में सहन नहीं करना होता है। ज्ञान से जाँच लेना चाहिए कि सामनेवाला 'शुद्धात्मा' है। यह जो आया है वह मेरे ही कर्म के उदय से आया है, सामनेवाला तो निमित्त है। फिर हमें यह ज्ञान इटसेल्फ ही पजल सॉल्व कर देगा। प्रश्नकर्ता : उसका अर्थ ऐसा हुआ कि मन में समाधान करना चाहिए कि यह माल था वह वापिस आया ऐसा न? दादाश्री : वह खुद शुद्धात्मा है और उसकी प्रकृति है। प्रकृति यह फल देती है। हम शुद्धात्मा हैं, वह भी शुद्धात्मा हैं। अब दोनों को 'वायर' कहाँ लागू पड़ता है? वह प्रकृति और यह प्रकृति, दोनों आमने-सामने सब हिसाब चुका रहे हैं। उसमें इस प्रकृति के कर्म का उदय है इसलिए वह कुछ देता है। इसीलिए हमें कहना कि यह अपने ही कर्म का उदय है और सामनेवाला निमित्त है, वह दे गया इसलिए अपना हिसाब चोखा हो गया। यह सोल्युशन हो, वहाँ फिर सहन करने का रहता ही नहीं न? सहन करने से क्या होगा? ऐसा स्पष्ट नहीं समझाओगे तो एक दिन वह स्प्रिंग कूदेगी। कूदी हुई स्प्रिंग आपने देखी है? मेरी स्प्रिंग बहुत कूदती थी। कई दिनों तक मैं बहुत सहन कर लेता था और फिर एक दिन स्प्रिंग उछले तो सभी उड़ाकर रख दूं। यह सब अज्ञान दशा का, मुझे उसका खयाल है। वह मेरे लक्ष्य में है। इसलिए तो कह देता हूँ न कि सहन करना सीखना मत। वह अज्ञानदशा में सहन करने का होता है। अपने यहाँ तो विश्लेषण कर देना है कि इसका परिणाम क्या, उसका परिणाम क्या, खाते में नियम अनुसार का देख लेना चाहिए, कोई वस्तु खाते की बाहर की होती नहीं है। हिसाब चुके या कॉज़ेज़ पड़े? प्रश्नकर्ता : नया लेन-देन न हो वह किस तरह होगा? दादाश्री : नया लेन-देन किसे कहते हैं? कॉजेज को नया लेनदेन कहते हैं, यह तो इफेक्ट ही है सिर्फ! यहाँ जो-जो होता है वह सब इफेक्ट ही है और कॉजेज़ अदर्शनीय है। इन्द्रियों से कॉजेज़ दिखते नहीं है, जो दिखते हैं वे सब इफेक्ट है। इसलिए हमें समझना चाहिए कि हिसाब चुकते हो गया। नया जो होता है, वह तो अंदर हो रहा है, वह अभी नहीं दिखेगा, वह तो जब परिणाम आएगा तब। अभी वह तो हिसाब में लिखा नहीं गया है, नोंधबही में से अभी तो बहीखाते में आएगा। प्रश्नकर्ता : पिछलेवाले पक्की बही का अभी आता है? दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : यह टकराव होता है, वह 'व्यवस्थित' के आधार पर ही होता होगा न? दादाश्री : हाँ, टकराव है वह 'व्यवस्थित' के आधार पर है, परन्तु ऐसा कब कहलाएगा? टकराव हो जाने के बाद। हमें टकराव नहीं करना है', ऐसा अपना निश्चय हो। सामने खंभा दिखे, तब फिर हम समझ जाएँ कि खंभा आया है, घूमकर जाना पड़ेगा, टकराना तो नहीं है। पर इसके बावजूद भी टकरा जाएँ तब हमें कहना चाहिए कि व्यवस्थित है। पहले से ही 'व्यवस्थित है' मानकर चलें तब तो 'व्यवस्थित' का दुरुपयोग हुआ कहलाएगा।
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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