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________________ ५. समझ से सोहे गृहसंसार इस जगत् को चुकता करने के बाद अरथी में जाते हैं। इस भव के तो चुकता कर डालता है ही चाहे जिस रास्ते, फिर नये बाँधे वे अलग। अब हम नये बाँधते नहीं है और पुराने इस भव में चुकता हो ही जानेवाले हैं। सारा हिसाब चुकता हो गया इसलिए भाई चले अरथी लेकर! जहाँ किसी भी खाते में बाकी रहा हो, वहाँ थोड़े दिन अधिक रहना पड़ेगा। इस भव का इस देह के आधार पर सब चुकता ही हो जाता है। फिर यहाँ जितनी गाँठें डाली हों, वे साथ में ले जाता है और फिर वापिस नया हिसाब शुरू होता है। क्लेश रहित जीवन है कि टकराव टालना है। अपने मन पर असर बिलकुल हो नहीं फिर भी कुछ असर अचानक हो गया, तब हम समझें कि सामनेवाले के मन का असर अपने ऊपर पड़ा, इसीलिए हमें खिसक जाना चाहिए। वे सब टकराव हैं। वह जैसे-जैसे समझते जाओगे, वैसे-वैसे टकराव को टालते जाओगे, टकराव टाले उससे मोक्ष होता है। यह जगत् टकराव ही है, स्पंदन स्वरूप है। एक व्यक्ति को सन् इक्यावन में यह एक शब्द दिया था। टकराव टाल' कहा था और ऐसे उसको समझाया था। मैं शास्त्र पढ़ रहा था, तब उसने मुझे आकर कहा कि दादा, मुझे कुछ दीजिए। वह मेरे वहाँ नौकरी करता था, तब मैंने उससे कहा, 'तुझे क्या दें? तू सारी दुनिया के साथ लड़कर आता है, मारपीट करके आता है।' रेल्वे में भी लडाई-झगड़ा करता है, यों तो पैसों का पानी करता है और रेल्वे में जो नियमानुसार भरना है, वह नहीं भरता और ऊपर से झगड़ा करता है, यह सब मैं जानता था। इसलिए मैंने उसे कहा कि तू टकराव टाल। दसरा कुछ तुझे सीखने की जरूरत नहीं है। वह आज तक अभी भी पालन कर रहा है। अभी आप उसके साथ टकराव करने के नये-नये तरीके ढूँढ निकालो, तरह-तरह की गालियाँ दो, फिर भी वह ऐसे खिसक जाएगा। ...इसलिए टकराव टालो इसलिए जहाँ हो वहाँ से टकराव को टालो। यह टकराव करके इस लोक का तो बिगाड़ते हैं परन्तु परलोक भी बिगाड़ते हैं ! जो इस लोक का बिगाड़ता है, वह परलोक का बिगाड़े बिना रहता ही नहीं! यह लोक सुधरे, उसका परलोक सुधरता है। इस भव में हमें किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं आई तो समझना कि परभव में भी अडचन है ही नहीं और यहाँ अड़चन खड़ी की तो वे सब वहाँ पर ही आनेवाली हैं। प्रश्नकर्ता : टकराव में टकराव करें तो क्या होता है? दादाश्री : सिर फूट जाता है! एक व्यक्ति मुझे संसार पार करने का रास्ता पूछ रहा था। उसे मैंने कहा कि टकराव टालना। मुझे पूछा कि टकराव टालना मतलब क्या? तब मैंने कहा कि हम सीधे चल रहे हों और बीच में खंभा आए तो हमें घूमकर जाना चाहिए या खंभे के साथ टकराना चाहिए? तब उसने कहा, 'ना! टकराएँगे तो सिर फूट जाएगा।' यह पत्थर ऐसे बीच में पड़ा हुआ हो तो हमें क्या करना चाहिए? घूमकर जाना चाहिए। यह भैंस का भाई रास्ते में बीच में आए तो क्या करोगे? भैंस के भाई को पहचानते हो न आप? वह आता हो तो घूमकर जाना पड़ता है, नहीं तो सिर मारे तो तोड डाले सब। वैसे ही मनुष्य भी कुछ ऐसे आ रहे हों तो घूमकर जाना पड़ता है। वैसा ही टकराव का है। कोई मनुष्य डाँटने आए, शब्द बमगोले जैसे आते हों तब हमें समझ जाना इसलिए टकराव टालो, टकराव से यह जगत् खड़ा हुआ है। उसे भगवान ने बैर से खड़ा हुआ है, ऐसा कहा है। हरएक मनुष्य, अरे जीव मात्र बैर रखता है। ज्यादा कुछ हुआ कि बैर रखे बगैर रहता नहीं है। वह फिर साँप हो, बिच्छू हो, बैल हो या भैंसा हो, कोई भी हो, परन्तु बैर रखता है। क्योंकि सबमें आत्मा है। आत्मशक्ति सभी में एक-सी है। क्योंकि यह पुद्गल की कमजोरी के कारण सहन करना पड़ता है। परन्तु सहन करने के साथ ही वह बैर रखे बगैर रहता नहीं है और अगले जन्म में वह उनका बैर वसूलता है वापिस! सहन? नहीं, सोल्युशन लाओ प्रश्नकर्ता : दादा, टकराव टालना आपने जो कहा है, मतलब सहन करना ऐसा अर्थ होता है न?
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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