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________________ ४. फ़ैमिलि आर्गेनाइजेशन क्लेश रहित जीवन मारेगा। यह तो रिलेटिव सगाईयाँ हैं, इसमें से कषाय खड़े होते हैं। इस राग कषाय में से द्वेष कषाय खड़ा होता है। खुशी में उछलना ही नहीं है। यह खीर उफने, तब चूले में से लकड़ा निकाल लेना पड़ता है, उसके जैसा है। .... फिर भी उचित व्यवहार कितना? प्रश्नकर्ता : बच्चों के बारे में क्या उचित है और क्या अनुचित, वह समझ में नहीं आता। भला किया, न खुद का भला किया। जो मनुष्य खुद का भला करे वही दूसरों का भला कर सकता है। सच्ची सगाई या परायी पीड़ा? बेटा बीमार हो तो हम इलाज सब करवाएँ, पर सबकुछ उपलक अपने बच्चों को कैसे मानने चाहिए? सौतेले। बच्चों को मेरे बच्चे कहा और बच्चा भी मेरी माँ कहता है, पर अंदर लम्बा संबंध नहीं है। इसीलिए इस काल में सौतेले संबंध रखना, नहीं तो मारे गए समझना। बच्चे किसी को मोक्ष में ले जानेवाले नहीं है। यदि आप समझदार होओगे तो बच्चे समझदार होंगे। बच्चों के साथ लाड़-प्यार तो किया जाता होगा? यह लाड़-प्यार तो गोली मारता है। लाड़-प्यार द्वेष में बदल जाता है। खींच-तानकर प्रीत करके चला लेना चाहिए। बाहर 'अच्छा लगता है ऐसा कहना चाहिए। पर अंदर समझें कि जबरदस्ती प्रीति कर रहे हैं. यह नहीं है सच्चा संबंध। बेटे के संबंध का कब पता चलता है? कि जब हम एक घंटा उसे मारे, गालियाँ दें, तब वह कलदार है या नहीं, उसका पता चलता है। यदि आपका सच्चा बेटा हो, तो आपके मारने के बाद भी वह आपको आपके पैर छूकर कहेगा कि बापूजी, आपका हाथ बहुत दु:ख रहा होगा! ऐसा कहनेवाला हो तो सच्चे संबंध रखें। पर यह तो एक घंटा बेटे को डाँटें तो बेटा मारने दौड़ेगा! यह तो मोह को लेकर आसक्ति होती है। 'रियल बेटा' किसे कहा जाता है? कि बाप मर जाए तो बेटा भी शमशान में जाकर कहे कि 'मुझे मर जाना है।' कोई बेटा बाप के साथ मर जाता है आपके मुंबई में? यह तो सब परायी पीड़ा है। बेटा ऐसा नहीं कहता कि मुझ पर सब लुटा दो, पर यह तो बाप ही बेटे पर सब लटा देता है। यह अपनी ही भूल है। हमें बाप की तरह सभी फ़र्ज़ निभाने हैं। जितने उचित हों उतने सभी फ़र्ज़ निभाने हैं। एक बाप अपने बेटे को छाती से लगाकर ऐसे दबा रहा था, उसने खूब दबाया इसलिए बेटे ने बाप को काट लिया! कोई आत्मा किसी का पिता-पुत्र हो सकता ही नहीं है। इस कलियुग में तो माँगनेवाले, लेनदार ही बेटे बनकर आए होते हैं! हम ग्राहक से कहें कि मुझे तेरे बिना अच्छा नहीं लगता, तेरे बिना अच्छा नहीं लगता तो ग्राहक क्या करेगा? दादाश्री: जितना सामने चलकर करते हैं वह सब जरूरत से ज्यादा अक्लमंदी है। वह पाँच वर्ष तक ही करने का होता है। फिर तो बेटा कहे कि बापूजी मुझे फ़ीस दो। तब हम कहें कि भाई पैसा यहाँ नल में नहीं आता है। हमें दो दिन पहले से कहना चाहिए। हमें उधार लेकर आने पडते हैं। ऐसा कहकर दूसरे दिन देने चाहिए। बच्चे तो ऐसा समझ बैठे होते हैं कि नल में पानी आता है वैसे बापूजी पानी ही देते हैं। इसलिए बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार रखना कि उनसे सगाई बनी रहे और वे सिर पर न चढ़ बैठे, बिगड़ें नहीं। यह तो बेटे को इतना अधिक लाड़ करते हैं कि बेटा बिगड़ जाता है। अतिशय लाड़ तो होता होगा? इस बकरी के ऊपर प्यार आता है? बकरी में और बच्चों में क्या फर्क है? दोनों ही आत्मा हैं। अतिशय लाड़ नहीं और नि:स्पृह भी नहीं हो जाना चाहिए। बेटे से कहना चाहिए कि कोई कामकाज हो तो पछना। मैं बैठा हूँ तब तक कोई अडचन हो तो पूछना। अड़चन हो तभी. नहीं तो हाथ डालें नहीं। यह तो बेटे की जेब में से पैसे नीचे गिर रहे हों तो बाप शोर मचा देता है, 'अरे चंदू, अरे चंदू ।' हम किसलिए शोर मचाएँ? अपने आप पूछेगा तब पता चलेगा। इसमें हम कलह कहाँ करे? और हम नहीं होते तो क्या होता? 'व्यवस्थित' के ताबे में है। और बिना काम के दखल करते हैं। संडास भी व्यवस्थित के ताबे है, और आपका आपके पास है। खुद के स्वरूप में खुद हो, वहाँ पुरुषार्थ है। और खुद की स्वसत्ता है। इस पुद्गल में पुरुषार्थ है ही नहीं। पुद्गल प्रकृति के अधीन है। बच्चों का अहंकार जागे उसके बाद उसे कुछ कह नहीं सकते और
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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