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४. फैमिलि आर्गेनाइजेशन हों तब तक। फिर छोड़ देने का। ये गाय-भैंस भी छोड़ देते हैं न? बच्चों को पाँच वर्ष तक टोकना पड़ता है, फिर टोकना भी नहीं चाहिए और बीस साल के बाद तो उसकी पत्नी ही उसे सुधारेगी। हमें सुधारना नहीं होता
क्लेश रहित जीवन सलाह देनी, परन्तु देनी ही पड़े तब
हमारी तरह 'अबध' हो गया तो काम ही हो गया। बद्धि काम में ली तो संसार खड़ा हो गया वापिस। घर के लोग पूछे, तभी जवाब देना चाहिए हमें, और उस समय मन में हो कि यह नहीं पूछे तो अच्छा, ऐसी हमें मन्नत माननी चाहिए। क्योंकि न पछे तो हमें यह दिमाग चलाना नहीं पड़ेगा। ऐसा है न, कि हमारे ये पुराने संस्कार सब खतम हो गए हैं। यह दुषमकाल जबरदस्त फैला हुआ है, संस्कारमात्र खतम हो गए हैं। मनुष्य को किसी को समझाना आता नहीं है। बाप बेटे को कुछ कहे तो बेटा कहेगा कि मझे आपकी सलाह नहीं सननी है। तब सलाह देनेवाला कैसा
और लेनेवाला कैसा? किस तरह के लोग इकट्ठे हुए हो? ये लोग आपकी बात क्यों नहीं सुनते? सच्ची नहीं, इसलिए। सच्ची हो, तो सुनेंगे या नहीं सुनेंगे? ये लोग किसलिए कहते हैं? आसक्ति के कारण कहते हैं। इस आसक्ति के लिए तो लोग खुद के जन्म बिगाड़ते हैं।
अब, इस भव में तो संभाल ले
बच्चों के साथ उपलक (सतही, ऊपर ऊपर से, सुपरफ्लअस) रहना है। असल में तो खुद का कोई है ही नहीं। इस देह के आधार पर मेरे हैं। देह जल जाए तो कोई साथ में आता है? यह तो जो मेरा कहकर छाती से चिपकाते हैं, उनको बहुत उपाधी है। बहुत भावुकता के विचार काम लगते नहीं। बेटा व्यवहार से है। बेटा जल जाए तो इलाज करवाएँ, पर हमने कोई रोने की शर्त रखी है?
सौतेले बच्चे हों तो गोद में बिठाकर दूध पिलाते हैं? ना! वैसा रखना। यह कलियुग है। रिलेटिव' संबंध है। रिलेटिव को रिलेटिव रखना चाहिए, 'रियल' नहीं करना चाहिए। यह रियल संबंध होता तो बच्चे से कहें कि तू सुधरे नहीं तब तक अलग रह। पर यह तो रिलेटिव संबंध है इसलिए - एडजस्ट एवरीव्हेर। यह आप सुधारने नहीं आए हो, आप कर्मों के शिकंजे में से छूटने के लिए आए हो। सुधारने के बदले तो अच्छी भावना करो। बाकी कोई किसी को सुधार नहीं सकता। वह तो ज्ञानी पुरुष सुधरे हुए होते हैं, वे दूसरों को सुधार सकते हैं। इसलिए उनके पास ले जाओ। यह बिगड़ते हैं किसलिए? उकसाने से। सारे वर्ल्ड का काम उकसाने से बिगड़ा है। इस कुत्ते को भी छेड़ो तो काट खाता है, काट लेता है। इसलिए लोग कुत्ते को छेड़ते नहीं है। इन मनुष्यों को छेड़े तो क्या होगा? वे भी काट खाएँगे। इसीलिए मत छेड़ना।
यह हमारे एक-एक शब्द में अनंत-अनंत शास्त्र समाए हुए हैं! ये समझे और सीधा चले तो काम ही निकाल दे! एकावतारी हुआ जाए, ऐसा यह विज्ञान है ! लाखों जन्म कम हो जाएँगे! इस विज्ञान से तो राग भी उड़ जाता है और द्वेष भी उड़ जाता है और वीतराग हुआ जाता है। अगुरुलघु स्वभाव का हो जाता है, इसलिए इस विज्ञान का जितना लाभ उठाया जाए उतना कम है।
सब 'व्यवस्थित' चलाता है, कुछ भी बोलने जैसा नहीं है। 'खुद का' धर्म कर लेने जैसा है। पहले तो ऐसा समझते थे कि हम चलाते हैं, इसलिए हमें बुझाना पड़ता है। अब तो चलाना हमें नहीं है न? अब तो यह भी लट्ट और वह भी लट्ट! रखो न पीडा यहीं से। प्याला फटे. कढ़ी ढुल जाए, पत्नी बच्चे को डाँटती हो, तब भी हम इस तरह टेढ़े फिरकर आराम से बैठ जाएँ। हम देखें तब वे कहें न कि आप देख रहे थे और क्यों नहीं बोले? और न हो तो हाथ में माला लेकर फेरने लगें. तब वह कहेगी कि ये तो माला में है। छोड़ो न! हमें क्या लेना-देना? शमशान में नहीं जाना हो तो कच-कच करो! इसलिए कुछ बोलने जैसा नहीं है। यह तो गायें-भैंसें भी उनके बच्चों के साथ उनके तरीके से भोंभों करते हैं, अधिक नहीं बोलते! और ये मनुष्य तो ठेठ तक बोलते ही रहते हैं। बोले वह मूर्ख कहलाता है, सारे घर को खतम कर डालता है। उसका कब पार आए? अनंत जन्मों से संसार में भटके हैं। न किसी का