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२. योग-उपयोग परोपकाराय
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इस जगत् का कुदरती नियम क्या है कि आप अपने फल दूसरों को देंगे तो कुदरत आपका चला लेगी। यही गुह्य साइन्स है । यह परोक्ष धर्म है। बाद में प्रत्यक्ष धर्म आता है, आत्मधर्म अंत में आता है। मनुष्य जीवन का हिसाब इतना ही है! अर्क इतना ही है कि मन-वचन-काया दूसरों के लिए वापरो ।
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३. दुःख वास्तव में है?
'राइट बिलीफ़' वहाँ दुःख नहीं प्रश्नकर्ता: दादा, दुःख के विषय में कुछ कहिए। यह दुःख किसमें से उत्पन्न होता है?
दादाश्री : आप यदि आत्मा हो तो आत्मा को दुःख होता ही नहीं कभी भी और आप चंदूलाल हो तो दुःख होता है। आप आत्मा हो तो दुःख होता नहीं, उल्टे दुःख हो, वह खतम हो जाता है। 'मैं चंदूलाल हूँ' वह ' रोंग बिलीफ़' है। यह मेरी वाइफ है, ये मेरी मदर हैं, फादर हैं, चाचा हैं, या मैं एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का व्यापारी हूँ, ये सभी तरह-तरह की रोंग बिलीफ़ हैं। इन सभी रोंग बिलीफ़ों के कारण दुःख उत्पन्न होता है। यदि रोंग बिलीफ़ चली जाए और राइट बिलीफ़ बैठ जाए तो जगत् में कोई दुःख है ही नहीं। और आपके जैसे (खाते-पीते सुखी घर के) को दुःख होता नहीं है। यह तो सब बिना काम के नासमझी के दुःख है ।
दुःख तो कब माना जाता है?
दुःख किसे कहते हैं? इस शरीर को भूख लगे, तब फिर खाने का आठ घंटे- बारह घंटे न मिले तब दुःख माना जाता है। प्यास लगने के बाद दो-तीन घंटे पानी नहीं मिले तो वह दुःख जैसा लगता है। संडास लगने के बाद संडास में जाने नहीं दे, तो फिर उसे दुःख होगा कि नहीं होगा ? संडास से भी अधिक, ये पेशाबघर हैं. वे सब बंद कर दें न तो लोग सभी शोर मचाकर रख दें। इन पेशाबघरों का तो महान दुःख है लोगों को । इन सभी दुःखों को दुःख कहा जाता है।
प्रश्नकर्ता : यह सब ठीक है, परन्तु अभी संसार में देखें तो दस