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हुआ सो न्याय और हुआ वही का वही फिर । आखिरकार वही का वही आया हो । तो फिर हम पहले मे क्याँ न समझ जायें । यह तो केवल अहंकार की दखल (अड़चन)
हुआ सो न्याय मैं ने इसका क्या बिगाड़ा है जो यह मेरा बिगाड़ता है ।
प्रश्नकर्ता : ऐसा होता है । हम किसीका नाम नहीं लेते फिर भी लोग हमें क्यों डंडे मारते है ?
दादाश्री: हाँ, इसलिए तो इन अदालतों, वकील सभी का चलता है। ऐसा नहीं होने पर अदालतों का कैसे निर्वाह होता । वकील का कोई ग्राहक ही नहीं होता न ! लेकिन वकील भी कैसे पुण्यशाली. कि मुवक्किल भी सुबह उठकर जल्दी जलदी आये तब वकील साहब हज़ामत बनाते हो, तो वह बैठा रहे कुछ देर । साहब को घर बैठे रूपया देने आये । साहब पुण्यशाली है न! नोटिस लिखवा जाय और पचास रूपये दे जाये, अर्थात न्याय नहीं खोजोगे तो व्यवहार ढंग से चल निकलेगा । आप न्याय खोजते है यही उपाधी (तकलीफ) है।
प्रश्रकर्ता : लेकिन दादा, वक्त ऐसा आया है कि किसी का भला करते हो तो वही डंडे मारे ।
दादाश्री : उसका भला किया और वह फिर डंडे मारता है, उसका नाम ही न्याय । और वह मुँह पर नहीं करना, मुँह पर कहें तो फिर उसके मन में ऐसा होगा कि ये चींकच हो गये है ।
प्रश्नकर्ता : हम किसी के साथ बिलकुल सीधे चलते हो फिर भी हम पर लाठी चलाये ।
दादाश्री : लाठी चलाई वही न्याय ! शांति से जीने नहीं देते ।
प्रश्रकर्ता : बुशकोट पहना हो तो कहेंगे, बुशकोट क्यों पहना है ? और (20) यह टीशर्ट पहना, तो बोलेंगे टीशर्ट क्यों पहना ? उसे उतार दें तब भी कहें, क्याँ उतार दिया ?
दादाश्री : वही न्याय, हम कहते है न । और उसमें न्याय खोजने गयें, उसकी मार पडती है यह सब । अर्थात न्याय मत खोजना । यह हमनें सादीसीधी खोज की है । न्याय खोजने की वजह से तो इन सभी को सोट पड़े हैं।
हुआ सो न्याय । इसलिए न्याय खोजने मत जाना । तेरे फाधर (पिताजी) फादर कहे "तू ऐसा है, वैसा है ।" वह हुआ और वही न्याय है । उसकी फ़रियाद (शिकायत) मत करना कि आप ऐसा क्यों कर बोले ? यह बात अनुभव की है। और वह आखिर थक कर भी न्याय तो करना ही पड़ेगा न! स्वीकार करते होंगे कि नहीं लोग ? अर्थात ऐसे मिथ्या प्रयत्न करें लेकिन रहेगा वही का वही ही । तब स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया होता तो क्या गलत होता ? हाँ उन्हे मुंह पर मत कहना, वर्ना फिर वे उलटी राह चलने लगें। मन ही मन समझ लेना कि हुआ सो नही न्याय ।
अब बुद्धि का प्रयोग मत करो. जो होता है उसे न्याय कहो । यह तो कहेगा "तुम्हे किस ने कहा था जो जाकर पानी गरम रखा ?""अबे, हुआ सो ही न्याय ।" यह न्याय समझ में आ जाये तो."अब में फ़रियाद नहीं करूँगा।" कहेगा । कहेगा कि नहीं कहेगा?
हम किसी को भोजन करने बिठा यें, भखें हो इसलिए । और बाद में वे कहें, "तुम्हें किस ने कहा था जिमाने को । हमे व्यर्थ मुशीबत में डाला, हमारा समय बिगाड़ा!" ऐसा बोलें तब हमें क्या करना ? विरोध खड़ा करना? यह हुआ सो ही न्याय है ।
घर में दो में से एक बुद्धि चलाना बंद कर दे न, तो सब ढंग से चलने लगे । वह उसकी बुद्धि चलाये तो फिर क्या होगा ? रात को खाना भी नहीं भायेगा फिर ।
(21) बरसात नहीं बरसती वह न्याय है । तब किसान क्या कहेंगा ? भगवान अन्याय करता है । वह अपनी नासमझी से बोलता है, इसमें क्या बरसात होने लगेगी ? अच्छा बरसती हो तो बरसात का उसमें क्या नुकशान होनेवाला था ? एक जगह कुदरत ने सब व्यवस्थित किया हुआ है । आपको