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चमत्कार
चमत्कार
इन चोरों को ऐसी-ऐसी सिद्धियाँ होती हैं कि निश्चित करें कि आज मुझे इस जगह पर इस समय पर ही चोरी करनी है। उस समय एक्जेक्ट हो जाती है, वे सिद्धियाँ कम कहलाएँगी? उसमें वह नियम पालते हैं सारे। और नियम पालने से सिद्धि उत्पन्न होती है।
अब अपने लोग सिद्धि किसे कहते हैं, वह मैं आपको बताता हूँ। कोई शीलवान पुरुष हो, तो वह अंधेरे में मुहल्ले में प्रवेश करे, पूरा मुहल्ला साँप से ही भरा हुआ हो, ऐसे साँप ही चलते रहते हों और वह शीलवान नंगे पैर वहाँ उस मुहल्ले में प्रवेश करे, उस घड़ी अंधेरे में उसे पता नहीं चलेगा कि अंदर साँप थे या नहीं? क्या कारण होगा कहो? उसकी सिद्धि होगी? पूरे मुहल्ले में एक इंच भी बिना साँप की जगह नहीं है। पर यदि उस घड़ी वह प्रवेश करे तो साँप थे, ऐसा उसके रास्ते में नहीं होता। क्योंकि थोड़ा भी यदि साँप उसे छए तो साँप जल जाए। इसलिए साँप ऐसे एक-दूसरे पर चढ़ जाते हैं। अंधेरे में आगे से आगे एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं। वैसा तो उसका ताप लगता है। अब, वैसा कभी लोग देखें न, तो क्या कहेंगे? कि ओहोहो, कैसी सिद्धि है! यह तो उसका शील है। अज्ञानी हो तो भी शील उत्पन्न होता है, पर संपूर्ण शील उत्पन्न नहीं होता, अहंकार है न?
संतों की सिद्धि, संसारार्थ प्रश्नकर्ता : कुछ संत तो बरसात करवाते थे। तो वह सिद्धि है या नहीं?
सुनी है, उसने जिसके पास से सुनी थी, ऐसी प्रत्यक्ष दो-तीन पीढ़ियों से देखकर सुनाई गई बात है।
एक साल बड़ौदा में अकाल पड़ा था। तो राजा को एक व्यक्ति ने जाकर कहा कि, 'एक महाराज आए हैं। वे तो ऐसे ही बरसात कर दें वैसे हैं।' तब राजा ने कहा, 'नहीं हो सकता ऐसा. किस तरह से मनुष्य बरसात करवा सकता है?' तब उसने कहा, 'नहीं, वे महाराज ऐसे हैं कि बरसात करवा सकते हैं!' इसलिए फिर नगर के बड़े-बड़े सेठ थे, वे इकट्ठे हुए और गाँव के पटेल सब इकट्ठे हुए और आकर सभी नगरसेठों से बात की। नगरसेठ राजा से कहते हैं कि, 'हाँ, साहब, उन महाराज को बुलाइए। नहीं तो अकाल में तो यह पब्लिक मर जाएगी।' तब राजा ने कहा, 'हाँ, तो आने दो उन महाराज को!' इसलिए फिर सब उन महाराज के पास पहुँचे। तब वे महाराज भी क्या कहते हैं? 'ऐसे बारिश नहीं हो जाएगी। हमें गद्दी पर बिठाओ।' तो राजा खुद दूसरी जगह बैठे और उन महाराज को गद्दी पर बैठाया। लालच है न! राजा को भी लालच हो जाए तब क्या? सबकुछ ही सौंप दे! अब ये महाराज एक तरफ गद्दी पर पेशाब करें और बाहर मूसलाधार बारिश बरसे। इस तरह उत्पन्न हुई सिद्धियों का ये लोग उपयोग कर देते हैं ! इसलिए अज्ञानियों की तो ये सभी सिद्धियाँ खर्च हो जानेवाली हैं। वे कमाते भी हैं और खर्च भी हो जाती हैं बेचारों की। ज्ञानी सिद्धियों का उपयोग नहीं करते। भगवान भी सिद्धियों का उपयोग नहीं करते। नहीं तो महावीर भगवान ने एक ही सिद्धि का उपयोग किया होता न, तो दुनिया ऊँची-नीची हो जाती।
तीर्थंकरों की सिद्धियाँ, मोक्षार्थ भगवान महावीर के दो शिष्यों को गोशाला ने तेजोलेश्या छोड़कर भस्मीभूत कर दिया था। तब दूसरे शिष्यों ने भगवान से कहा, विनती की कि, 'भगवान आप तीर्थंकर भगवान होकर, यदि हमारा रक्षण नहीं कर सकेंगे तो दुनिया में फिर रक्षण ही कौन देगा?' तब क्या रक्षण दे सकें वैसे नहीं थे भगवान महावीर? इन सब सिद्धियोंवालों से तो वे कुछ कच्चे थे? कैसे भगवान, तीर्थंकर भगवान! क्या जवाब दिया जानते हो आप?
दादाश्री : फिर भी यह बरसात तो अपनी सरकार कुछ केमिकल छिड़कती है न, तब भी नहीं हो जाती? होती है! और खरी सिद्धियोंवाले तो ऐसी बरसात नहीं करवाते। ऐसी सिद्धि अज्ञानी को उत्पन्न होती है, पर लालच के मारे फिर उसका उपयोग कर देता है। यहाँ पर, बड़ौदा में बरसात नहीं हो रही थी। तब कोई महाराज आए थे। वे कहते हैं, 'मैं बरसात करवाऊँगा।' इसलिए यह तो एक घटना हुई थी उसकी बात कह रहा हूँ। हो चुकी मतलब मैंने खुद देखी नहीं पर मैंने जिसके पास से