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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
प्रश्नकर्ता : इसे जरा विस्तार से समझाइए।
दादाश्री : ये सारे जितने विषय हैं, वे पिछले जन्म के परिणाम हैं। इसलिए हम डाँटते नहीं कि मोक्ष चाहते हैं तो जाइए अकेले पड़े रहिए, घर से हाँककर बाहर नहीं करते। पर हमने अपने ज्ञान में देखा कि विषय तो पिछले जन्म का परिणाम है। इसलिए कहा कि जाइए. घर जाकर सो जाइए, आराम से फाइलों का निकाल कीजिए। हम अगले जन्म का कारण तोड़ देते हैं पर जो पिछले जन्म का परिणाम है, इसका हम छेद नहीं कर सकते। किसी से छेदा नहीं जा सकता। महावीर भगवान से भी नहीं छेदा जा सकता, क्योंकि भगवान को भी तीस साल तक संसार में रहना पड़ा था और बेटी हुई थी। विषय और कषाय का अर्थ यही होता है, पर लोगों को इसका पता ही नहीं चलता न! यह तो भगवान महावीर अकेले ही जानें कि इसका क्या अर्थ है।
प्रश्नकर्ता : पर विषय आए तो कषाय खड़े होते हैं न?
दादाश्री : नहीं, सभी विषय तो विषय ही हैं, परंतु विषय में अज्ञानता हो तब कषाय खड़े होते हैं और ज्ञान हो तब कषाय नहीं होते। कषाय कहाँ से जन्मे? तब कहें, विषय में से। ये सारे कषाय जो उत्पन्न हुए हैं, वे सारे विषय में से हए हैं। पर इसमें विषय का दोष नहीं है, अज्ञानता का दोष है। मूल कारण क्या है? अज्ञानता।
६. आत्मा, अकर्ता-अभोक्ता विषय का स्वभाव अलग है, आत्मा का स्वभाव अलग है। आत्मा ने पाँच इन्द्रियों के विषय में से कुछ भी. कभी भी भोगा ही नहीं है। तब लोग कहते हैं कि मेरे आत्मा ने विषय भोगा! अरे, आत्मा कहीं भुगतता होगा? इसलिए कृष्ण भगवान ने कहा, 'विषय विषय में बरतते हैं।' ऐसा कहा, फिर भी लोगों की समझ में नहीं आया। और ये तो कहते हैं कि 'मैं ही भोगता हूँ।' वर्ना लोग तो ऐसा कहेंगे कि 'विषय विषय में बरतते हैं, आत्मा तो सूक्ष्म है।' इसलिए भोगो! ऐसा उसका भी दुरुपयोग कर डालें।
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य ७. आकर्षण-विकर्षण का सिद्धांत यह सब आकर्षण के कारण ही टिका हुआ है ! छोटे-बड़े आकर्षण की वजह से यह सारा संसार खड़ा रहा है। इसमें भगवान को कुछ करने की ज़रूरत ही पैदा नहीं हुई है। केवल आकर्षण ही है। यह स्त्री-पुरुष को लेकर जो है, वह भी केवल आकर्षण ही है। पिन और चुंबक में जैसा आकर्षण है, वैसा यह स्त्री-पुरुष का आकर्षण है। सभी स्त्रियों की ओर आकर्षण नहीं होता। परमाणु मेल खाते हों, उस स्त्री की ओर आकर्षण होता है। आकर्षण होने के बाद खुद तय करे कि मुझे नहीं खिंचना है, फिर भी खिंच जाएगा।
प्रश्नकर्ता : वह पूर्व का ऋणानुबंध हुआ न?
दादाश्री : ऋणानुबंध कहे तो यह सारा संसार ऋणानुबंध ही कहलाता है। परंतु खिंचाव होना वह ऐसी वस्तु है कि उनका परमाणु का आमने-सामने हिसाब है, इसलिए खिंचते हैं। अभी जो राग उत्पन्न होता है, वह वास्तव में राग नहीं है। ये चुंबक और पिन होते हैं, तब चुंबक ऐसे घुमाएँ तो पिन ऊपर-नीचे होगी। दोनों में जीव नहीं है फिर भी चुंबक के गुण के कारण दोनों को केवल आकर्षण रहता है। इसी प्रकार इस देह के समान परमाणु होते हैं, तब उसीके साथ आकर्षण होता है। उसमें चुंबक है, इसमें इलेक्ट्रिकल बोडी (तेजस शरीर) है! जैसे चुंबक लोहे को खींचता है, दूसरी किसी धातु को नहीं खींचता।
यह तो इलेक्ट्रिसिटी की वजह से परमाणु प्रभावित होते हैं और इसलिए परमाणु खिंचते हैं। जैसे पिन और चुंबक के बीच में आता है कोई अंदर? पिन को हमने सिखाया था कि तू ऊपर-नीचे होना?
अत: यह देह सारी विज्ञान है। विज्ञान से यह सब चलता है। अब आकर्षण हुआ उसे लोग कहें कि मुझे राग हुआ। अरे ! आत्मा को राग होता होगा कहीं? आत्मा तो वीतराग है! आत्मा को राग भी नहीं होता और द्वेष भी नहीं होता है। यह तो दोनों स्व-कल्पित है। वह भ्रांति है।