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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य संख्या भी कम होगी, तो इस बारे में आपका क्या अभिप्राय है?
दादाश्री : इतने सारे (कुटुंब नियोजन के) ओपरेशन करवाने पर भी जन-संख्या कम नहीं हुई है तो ब्रह्मचर्य पालन से क्या कम होगा? यह जन-संख्या घटाने के लिए तो ओपरेशन करते हैं पर फिर भी कम नहीं होता न! ब्रह्मचर्य तो (मोक्षमार्ग में) बड़ा साधन है।
प्रश्नकर्ता : यह जो नेचुरल प्रोसेस (नैसर्गिक प्रक्रिया) है, उसके प्रति हम तिरस्कार करते हैं ऐसा नहीं कहलाए?
दादाश्री : यह नेचुरल प्रोसेस नहीं है, यह तो पाशवता है। मनुष्य में यदि नेचुरल प्रोसेस रहता तो ब्रह्मचर्य पालने का रहता ही नहीं न! ये जानवर बेचारे ब्रह्मचर्य पालते हैं, सीज़न (ऋत) में कुछ समय ही पंद्रहबीस दिन ही विषय, फिर कुछ भी नहीं!
८. ब्रह्मचर्य की क़ीमत, स्पष्ट वेदन-आत्मसुख
प्रश्नकर्ता : दादाजी से ज्ञान प्राप्ति के बाद ब्रह्मचर्य की आवश्यकता है कि नहीं?
दादाश्री : ब्रह्मचर्य की आवश्यकता तो जो पालन कर सके उसके लिए है और जो पालन नहीं कर सके उसके लिए नहीं है। यदि अनिवार्य होता तो ब्रह्मचर्य नहीं पालनेवालों को सारी रात नींद ही नहीं आती कि अब हमारा मोक्ष चला जाएगा। अब्रह्मचर्य गलत है, इतना समझें तो भी बहुत हो गया।
प्रश्नकर्ता : फिलासफ़र (तत्वज्ञ) ऐसा बताते हैं कि सेक्स को दबाने से विकृति आती है। स्वास्थ्य के लिए सेक्स (विषयभोग) ज़रूरी
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य यह विषय ऐसी वस्तु है कि एक दिन का विषय तीन दिनों तक किसी भी प्रकार की एकाग्रता नहीं होने देता। एकाग्रता डाँवाँडोल होती रहती है। जब कि महीना भर विषय का सेवन नहीं करें तो, उसकी एकाग्रता डाँवाँडोल नहीं होती। ___ अब्रह्मचर्य और शराब, दोनों इस ज्ञान पर बहुत आवरण लानेवाली चीजें हैं। इसलिए बहुत जागृत रहना। शराब का तो ऐसा है कि 'मैं चंदूभाई हूँ' यह भान ही भूल जाता है! तब फिर आत्मा तो भूल ही जाएगा न! इसलिए भगवान ने (विषय से) डरने को कहा है। जिसे पूर्णतया अनुभव ज्ञान हो जाए, उसे नहीं छुए, फिर भी भगवान के ज्ञान को भी उखाड़कर बाहर फेंक दे इतना भारी इसमें जोखिम है!
जिसे संपूर्ण होना है उसे तो विषय होना ही नहीं चाहिए, फिर भी ऐसा नियम नहीं है। वह तो आख़िरी जन्म में आखिरी पंद्रह साल विषय छूट गया हो, तो बस हो गया। इसकी जन्मों तक कसरत करने की आवश्यकता नहीं है कि त्याग करने की भी ज़रूरत नहीं है। त्याग सहज होना चाहिए कि अपने आप ही छूट जाए। निश्चय भाव ऐसा रखना कि मोक्ष में जाने से पहले जो दो-चार जन्म हों, वे बिन-ब्याहे जाएँ तो बेहतर। उसके जैसा एक भी नहीं।
अब आत्मा का स्पष्टवेदन कब तक नहीं होता? जब तक ये विषय विकार नहीं जाते, तब तक स्पष्टवेदन नहीं होता। अत: यह आत्मा का सुख है या और कोई सुख है, यह 'एग्ज़ैक्ट' (यथार्थ) समझ में नहीं आता है। ब्रह्मचर्य हो तो 'ओन द मोमेन्ट' समझ में आ जाता है। स्पष्टवेदन हो तो वह परमात्मा ही हो गया कहलाता है।
९. लीजिए व्रत का ट्रायल
दादाश्री : उनकी बात सही है, परंतु अज्ञानियों को सेक्स की जरूरत है। वर्ना शरीर को आघात पहुँचेगा। जो ब्रह्मचर्य की बात समझता है उसे सेक्स की जरूरत नहीं है और अज्ञानी मनुष्य को यदि इसका बंधन करें तो उसका शरीर टूट जाएगा, खतम हो जाएगा।
हम आपको बार-बार सावधान करते हैं, मगर सावधान रहना इतना आसान नहीं है न! फिर भी यों ही प्रयोग करते हों कि महीने में तीन दिन अथवा पाँच दिन और यदि सप्ताह भर के लिए (विषय में संयम) करें