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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
(संक्षिप्त रूप में)
खंड : १ परिणीतों के लिए ब्रह्मचर्य की चाबियाँ
१. विषय नहीं परंतु निडरता विष यह विज्ञान किसी को भी, परिणीतों को भी मोक्ष में ले जाएगा। परंतु ज्ञानी की आज्ञा अनुसार चलना चाहिए। कोई दिमाग की खुमारीवाला हो, वह कहे, 'साहब, मैं दूसरी ब्याहना चाहता हूँ।' तो मै कहूं कि तेरी ताकत चाहिए। पहले क्या नहीं ब्याहते थे? राजा भरत को तेरह सौ रानियाँ थीं, फिर भी मोक्ष में गए! यदि रानियाँ बाधक होती तो मोक्ष में जाते क्या? तब क्या बाधक है? अज्ञान बाधक है।
विषय विष नहीं हैं, विषय में निडरता विष है। इसलिए घबराना नहीं। सभी शास्त्रों ने जोर देकर कहा है कि सारे विषय विष हैं। कैसे विष है? विषय कहीं विष होता होगा? विषय में निडरता विष है। यदि विषय विष होता, तब फिर आप सभी घर में रहते हो और आपको मोक्ष में जाना हो तो मुझे आपको हाँकना पड़ता कि 'जाओ उपाश्रय में, यहाँ घर पर मत पड़े रहो।' पर मुझे किसी को हाँकना पड़ता है?
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य भगवान महावीर को भी बेटी थी। अतः विषयों में निडरता विष है। अब मुझे कुछ बाधा नहीं करेगा, ऐसा सोचें वह विष है।
निडरता शब्द मैंने इसलिए दिया है कि विषय में डर रखें, विवशता हो तभी विषय में पड़ें। इसलिए विषय से डरिए, ऐसा कहते हैं, क्योंकि भगवान भी विषय से डरते थे। बड़े-बड़े ज्ञानी भी विषय से डरते थे। तब आप ऐसे कैसे हैं कि विषय से नहीं डरते? जैसे स्वादिष्ट भोजन आया हो, आमरस-रोटी वह सब मज़े से खाओ मगर डरकर खाओ। डरकर किस लिए कि अधिक खाओगे तो परेशानी होगी, इसलिए डरो।
प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा स्वरूप होने के बाद संसार में पत्नी के साथ संसार व्यवहार करना या नहीं? और वह किस भाव से? यहाँ समभाव से निकाल (निपटारा) कैसे करें?
दादाश्री : व्यवहार तो आपकी पत्नी हो तो उसके साथ दोनों को समाधानकारी हो ऐसा व्यवहार रखना। आपका समाधान और उसका समाधान होता हो ऐसा व्यवहार रखना। उसका असमाधान होता हो और आपका समाधान हो ऐसा व्यवहार बंद करना। आपसे पत्नी को कोई दुःख नहीं होना चाहिए। __मैं आपसे कहता हूँ कि यह जो 'दवाई' (विषय संबंध) है, वह मिठासवाली दवाई है। इसलिए दवाई हमेशा जिस प्रकार प्रमाण से लेते हैं, उस तरह यह भी प्रमाण से लेना। वैवाहिक जीवन कब शोभा देगा कि जब दोनों को बुखार चढ़े तब दवाई पीएँ तो। बिना बखार के दवाई पीते हैं या नहीं? एक को बुख़ार नहीं हो और दवाई लें, ऐसा वैवाहिक जीवन शोभायमान नहीं हो। दोनों को बुखार चढ़े तब ही दवाई लें। दिस इज
ओन्ली मेडिसिन (केवल यह दवाई ही है।) यदि मेडिसिन (दवाई) मीठी हो, तो रोज़ पीने जैसी नहीं होती।
पहले राम-सीता आदि जो हो गए, वे सभी संयमवाले थे ! स्त्री के साथ संयमी! तब यह असंयम क्या दैवी गुण है? नहीं, वह पाशवी गुण है। मनुष्य में यह नहीं होता। मनुष्य असंयमी नहीं होना चाहिए। जगत् को
भगवान ने जीवों के दो भेद किए; एक संसारी और दूसरे सिद्ध। जो मोक्ष में गए हैं वे सिद्ध कहलाते हैं और अन्य सभी संसारी। इसलिए यदि आप त्यागी हैं तब भी संसारी हैं और यह गृहस्थ भी संसारी ही है। इसलिए आप मन में कुछ मत रखना। संसार बाधा नहीं डालता, विषय बाधा नहीं डालते, कुछ बाधा नहीं करता, अज्ञान बाधा डालता है। इसलिए मैंने पुस्तक में लिखा है कि 'विषय विष नहीं हैं. विषयों में निडरता विष है।'
यदि विषय विष होते तो भगवान महावीर तीर्थंकर ही नहीं हो पाते।