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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
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हमें यह कहना पड़ता है। इन जीवों का ठिकाना ही नहीं न? यह ज्ञान पाकर उलटे विपरीत राह पर चले जाएँ। इसलिए हमें कहना पड़ता है और वह भी हमारा वचनबल हो तो फिर हर्ज नहीं है। हमारे वचन सहित करते हैं उसे कर्तापद की जोखिमदारी नहीं न! हम कहें कि 'आप ऐसा करें।' इसलिए आपकी जोखिमदारी नहीं और मेरी जिम्मेदारी इसमें नहीं रहती!
अब अनुपम पद को छोड़कर उपमावाला पद कौन ग्रहण करे? ज्ञान है तो फिर सारे संसार के कूड़े को कौन छूएगा? जगत् को जो विषय प्रिय है, वे ज्ञानी पुरुष को कूड़ा नज़र आते हैं। इस जगत् का न्याय कैसा है कि जिसे लक्ष्मी संबंधी विचार नहीं हों, विषय संबंधी विचार नहीं हों, जो देह से निरंतर अलग ही रहता हो, उसे संसार 'भगवान' कहे बगैर रहेगा नहीं !!!
१८. दादाजी दें पुष्टि, आप्तपुत्रियों को
संसार जानता ही नहीं है कि (इस शरीर में) यह सब रेशमी चद्दर में लपेटा हुआ है। खुद को जो पसंद नहीं है, वही सारा कूड़ा, इस रेशमी चद्दर (चमड़ी) में लपेटा है। ऐसा आपको लगता है कि नहीं लगता? इतना समझ जाएँ तो निरा बैराग ही आए न? इतना भान नहीं रहता, इसलिए यह संसार ऐसे चल रहा है न? इन बहनों में से ऐसी जागृति किसी को होगी ? कोई मनुष्य सुंदर दिखता हो, उसे काटें तो क्या निकलेगा? कोई लड़का अच्छे कपड़े पहनकर, नेकटाई लगाकर बाहर जा रहा हो, उसको काटें तो क्या निकले? तू फिजूल में क्यों नेकटाई पहना करता है? मोहवाले लोगों को पता नहीं है। इसलिए खूबसूरत देखकर उलझन में पड़ जाते हैं बेचारे! जबकि मुझे तो सब कुछ खुला (जैसा है वैसा) आरपार नज़र आता है।
इसी प्रकार स्त्री को पुरुषों को नहीं देखना चाहिए और पुरुष को स्त्रियों को नहीं देखना चाहिए, क्योंकि वे हमारे काम के नहीं हैं। दादाजी बता रहे थे कि यही कचरा है, फिर उसमें क्या देखने को रहा ?
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
अतः आकर्षण का नियम है कि किसी खास जगह पर ही आकर्षण होता है। हर किसी जगह आकर्षण नहीं होता। अब यह आकर्षण क्यों होता है यह आपको बतला दूँ।
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इस जन्म में आकर्षण नहीं होता हो फिर भी कभी किसी पुरुष को देखा और मन में हुआ कि 'अहा ! यह पुरुष कितना सुंदर है ! कितना खूबसूरत है!' ऐसा हमें हुआ कि होने के साथ ही अगले जन्म की गांठ पड़ गई। इससे अगले जन्म में आकर्षण होगा।
निश्चय वह है कि जो भूले ही नहीं। हमने शुद्धात्मा का निश्चय किया है, वह भूलाता नहीं न? थोड़ी देर के लिए भूल भी जाएँ मगर लक्ष्य में तो होता ही है, उसे निश्चय कहते है।
निदिध्यासन यानी 'यह स्त्री खूबसूरत है या यह पुरुष खूबसूरत है' ऐसा विचार किया, वह निदिध्यासन हुआ उतनी देर के लिए। विचार आते ही निदिध्यासन होता है, फिर खुद वैसा हो जाता है। इसलिए यदि हम उसको देखें तो दखल हो न? उसके बजाय आँखें नीची करके चलो, आँख मिलानी ही नहीं चाहिए। सारा संसार एक फँसाव है। फँसने के बाद तो छुटकारा ही नहीं है। कितनी ही जिंदगियाँ खतम हो जाएँ मगर उसका अंत ही नहीं है!
पति, पति जैसा हो कि वह चाहे कहीं भी जाए, मगर एक क्षण के लिए भी हमें नहीं भूले ऐसा हो तो ठीक है, पर ऐसा कभी होता नहीं है। तब फिर ऐसे पति का क्या करना ?
इस काल के मनुष्य प्रेम के भूखे नहीं हैं, विषय के भूखे हैं। प्रेम का भूखा हो उसे तो विषय नहीं मिले तो भी चले। ऐसे प्रेम भूखे मिले हों तो उसके दर्शन करें। लेकिन ये तो विषय के भूखे हैं। विषय के भूखे यानी क्या कि संडास। यह संडास वह विषय भूख है।
यदि कभी लगनवाला प्रेम हो तो संसार है, वर्ना फिर विषय, वह तो संडास है। वह फिर कुदरती हाजत में गया। उसे हाजतमंद कहते हैं