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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
थे ! इस संसार में स्त्री के साथ रहने में तो बहुत परेशानियाँ है। जोड़ी बनी कि परेशानी बढ़ी। दोनों के मन कैसे एक हों? कितनी बार मन एक होते हैं? मान लें कि कढ़ी दोनों को समान रूप से अच्छी लगी, पर फिर सब्ज़ी का क्या? वहाँ मन एक होते नहीं और काम बनता नहीं। मतभेद हो, वहाँ सुख नहीं होता।
ज्ञानी पुरुष को तो 'ओपन टु स्काइ' (आसमान की तरह खुला ) ही होता हैं। रात को किसी भी समय उनके वहाँ जाओ तब भी 'ओपन टु स्काइ'। हमें तो ब्रह्मचर्य पालना पड़े ऐसा नहीं होता ! हमें तो विषय याद ही नहीं आता ! इस शरीर में वे परमाणु ही नहीं होते ! इसलिए ऐसी ब्रह्मचर्य संबंधी वाणी निकलती है! विषय के सामने तो कोई बोला ही नहीं है। लोग खुद विषयी हैं, इसलिए उन लोगों ने विषय पर उपदेश ही नहीं दिया है और हम तो यहाँ सारी पुस्तक बने उतना ब्रह्मचर्य के संबंध में बोले हैं। उसमें अंत तक की बात बतलाई है, क्योंकि हम में तो वे परमाणु ही खतम हो गए हैं। देह से बाहर (आत्मा में) हम रहते हैं। बाहर अर्थात् पड़ोसी की तरह निरंतर रहते हैं वर्ना ऐसा आश्चर्य मिले ही नहीं न कभी भी !
अब फल खाएँ पर पछतावे के साथ खाएँ, तब उस फल में से फिर बीज नहीं पड़ते और खुशी से खाएँ कि 'हाँ, आज तो बड़ा मज़ा आया' तो फिर बीज पड़ता है।
इस विषय के मामले में लटपटा हो जाता है। ज़रा ढील दी कि हो गया लटपटा । इसलिए ढीला मत रखना । सख़्ती से रहना। मर जाऊँ तो भी यह विषय नहीं चाहिए ऐसे सख्ती से रहना चाहिए।
हमें तो बचपन से ही यह पसंद नहीं है कि लोगों ने इसमें सुख कैसे माना है? तब मुझे ऐसा होता था कि यह किस तरह का है? हमें तो बचपन से ही इस थ्री विज़न की प्रेक्टिस (अभ्यास) हो गई थी। इसलिए हमें तो बहुत वैराग्य आता रहता था, इस पर बहुत ही चिढ़ होती थी। ऐसी वस्तु में ही इन लोगों को आराधन रहता है। यह तो कैसा कहलाए ?
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हैं?
है।
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य प्रश्नकर्ता: यह जो पिछला घाटा है, उसे निश्चय के द्वारा मिटा सकते
दादाश्री : हाँ, सभी घाटे पूरे कर सकते हैं। निश्चय सब काम करता
उदयकर्म भारी आए तब हमें हिला देता है। अब भारी उदय का अर्थ क्या? कि हम स्ट्रोंग रूम में बैठे हों और बाहर कोई शोर मचा रहा हो। फिर चाहे पाँच लाख मनुष्य शोर मचा रहे हों कि 'हम मार डालेंगे' ऐसे बाहर से ही चिल्ला रहे हों, तो हमें क्या करनेवाले हैं? वे भले ही शोर मचाएँ। उसी प्रकार यदि इसमें भी स्थिरता हो तो कुछ हो ऐसा नहीं है, पर स्थिरता डिगे तो फिर वह आ चिपकेगा। अर्थात् चाहे कैसे भी (उदय) कर्म आ पड़े तब स्थिरता के साथ 'यह मेरा नहीं है, मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसा करके स्ट्रोंग (मज़बूत) रहना होगा। फिर दुबारा आएगा भी और थोड़ी देर उलझाएगा, पर अपनी स्थिरता हो तो कुछ नहीं होता।
ये लड़के ब्रह्मचर्य पालते हैं, वे मन-वचन-काया से पालते हैं। बाहर के लोग तो मन से पाल ही नहीं सकते। वाणी और देह से सभी पालते हैं। हमारा यह ज्ञान है इसलिए मन से पाल सकते हैं। यदि मन-वचनकाया से ब्रह्मचर्य पाले तो उसके समान महान शक्ति दूसरी कोई उत्पन्न हो ऐसी नहीं है। उसी शक्ति से हमारी आज्ञा का पालन होता है वर्ना उस ब्रह्मचर्य की शक्ति के बिना तो आज्ञा कैसे पाली जाएँ? ब्रह्मचर्य की शक्ति की तो बात ही अलग होती है न!
ये ब्रह्मचारी तैयार हो रहे हैं और ये ब्रह्मचारीणियाँ भी तैयार हो रही हैं। उनके चेहरे पर नूर आएगा फिर लिपस्टिक और पावडर लगाने की ज़रूरत नहीं रहेगी। शेर का बच्चा बैठा हो वैसा लगे, तब लगे कि नहीं! कुछ बात है! वीतराग विज्ञान कैसा है कि यदि पच गया तो शेरनी का दूध पचने के बराबर है! तभी शेर के बच्चे जैसा वह लगता है, वर्ना मेमने जैसा दिखे !