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भावना से सुधरे जन्मोजन्म
भावना से सुधरे जन्मोजन्म
(नौ कलमें - सारांश, सभी शास्त्रों का)
उससे टूटे अंतराय तमाम मैं आपको एक पुस्तक पढ़ने के लिए देता हूँ। बड़ी पुस्तक नहीं, एक छोटी-सी! उसे पढ़ना जरा, यों ही!
प्रश्नकर्ता : ठीक है।
दादाश्री : एक बार इसे पढ़ लेना, पूरी पढ़ लेना। यह दवाई देता हूँ, यह पढ़ने की दवाई है। यह जो नौ कलमें हैं उसे सिर्फ पढ़ना ही है, यह कुछ करने की दवाई नहीं है। बाकी आप जो करते हैं वह सब सही है और यह तो भावना करने की दवाई है, इसलिए यह जो देते हैं उसे पढ़ते रहना। उससे तमाम प्रकार के अंतराय टूट जाते है।
पहले एक-दो मिनट यह नौ कलमें पढ़ लीजिए।
प्रश्नकर्ता : नौ कलमें... १. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र
भी अहम् न दुभे (दुःखे), न दुभाया (दु:खाया) जाये या दुभाने (दु:खाने) के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। मुझे किसी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे, ऐसी
स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम
शक्ति दो। २. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण
न दुभे, न दुभाया जाये या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाया जाये ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम
शक्ति दो। ३. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी उपदेशक साधु, साध्वी या
आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दो। ४. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र
भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाये, न करवाया जाये या कर्ता के प्रति न अनुमोदित किया जाये, ऐसी परम शक्ति दो। ५. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी
भी कठोर भाषा, तंतीली (हठीली) भाषा न बोली जाये, न बुलवाई जाये या बोलने के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोले तो मुझे मृदु-ऋजु भाषा बोलने
की शक्ति दो । ६. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति स्त्री,
पुरुष या नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किचिंतमात्र भी विषय-विकार संबंधी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किये जायें, न करवाये जायें या कर्ता के प्रति
अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। मुझे निरंतर निर्विकार रहने की परम शक्ति दो।। ७. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी रस में लुब्धता न हो ऐसी शक्ति दो।
समरसी आहार लेने की परम शक्ति दो।