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(७) अंतराय
के आशय में हो और अंतराय नहीं हो तो वह वस्तु बिना इच्छा के सामने आती है !
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जगत् में सभी वस्तुएँ हैं, पर मिलती क्यों नहीं? तब कहे, 'अंतराय बाधा डालता है।'
प्रश्नकर्ता ये अंतराय किस तरह डलते हैं?
दादाश्री : ये भाई नाश्ता दे रहे हों तो आप कहते हो कि, 'अब रहने दे न, बेकार बिगड़ेगा।' वह अंतराय डाला कहलाता है। कोई दान दे रहा हो वहाँ आप कहो कि, 'इसे कहाँ दे रहे हो? वे तो हड़प ले जाएँ वैसे हैं।' वह आपने दान का अंतराय डाला। फिर देनेवाला दे या नहीं दे वह चीज़ अलग रही, पर आपने अंतराय डाला। फिर आपको दुःख में भी कोई दाता नहीं मिलेगा।
प्रश्नकर्ता: वाणी से अंतराय नहीं डाले हों, परन्तु मन से अंतराय डाले हों तो ?
दादाश्री : वाणी से बोले हुए का इफेक्ट इस जन्म में आता है और मन से चित्रित किया हुआ दूसरे जन्म में रूपक में आएगा।
यानी ये सब खुद के ही डाले हुए अंतराय हैं, नहीं तो आत्मा पास क्या चीज़ नहीं होती? जगत् की तमाम वस्तुएँ उसके लिए तैयार ही हैं। वे तो 'हम आएँ? हम आएँ?' ऐसा पूछते हैं। फिर भी अंतराय कहते हैं, 'नहीं। नहीं आना है।' अंतराय उस चीज़ को मिलने ही नहीं देते। प्रश्नकर्ता : यानी खुद जागृति रखनी चाहिए कि उल्टा विचार नहीं
आए।
दादाश्री : ऐसा नहीं होगा, विचार तो उल्टे-सीधे आए बगैर रहेंगे ही नहीं। हमें उन्हें मिटा देना है, वह अपना काम ! आपको विचार आया कि, 'इसे नहीं देना चाहिए।' पर ज्ञान हाज़िर होता है कि यह बीच में कहाँ अंतराय डालना ? इसलिए तुरन्त मिटा देना चाहिए। ज्ञान नहीं हो तो क्या करेंगे? हम कहें कि, 'ऐसा विचार किसलिए किया?' तो वह ऊपर से
आप्तवाणी-४
कहेगा, 'करना ही चाहिए। आप इसमें क्या समझते हो?' वह उल्टा डबल कर देता है । पागल अहंकार क्या नहीं करे? खुद, खुद के ही पैर पर कुल्हाड़ी मारता है। अब हम इसे मिटा सकते हैं। मन में पश्चाताप करें, क्षमा माँगे और फिर निश्चित करें कि ऐसा नहीं बोलना चाहिए, तो मिटाया जा सकता है। पत्र पोस्ट में डालने से पहले बदला जा सकता है और यदि सोचे कि दान देना अच्छा है, तब पहले का कहा हुआ मिट जाएगा।
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प्रश्नकर्ता : अच्छे कार्य का अनुमोदन करें तो ?
दादाश्री : तो उस देनेवाले को लाभ होता है और खुद को भी लाभ होता है। हमने अनुमोदना नहीं की हो तो हमें अनुमोदना करनेवाला कोई नहीं मिलेगा। जब कि यह सब ज्ञानियों के लिए हेय (त्यागने योग्य) है। वह सब संसार बढ़ानेवाला है। फिर भी, जिसे आत्मा का ज्ञान नहीं हो उसके लिए तो रमणीय संसार का साधन है।
इस संसार में अंतराय किस तरह पड़ते हैं, वह आपको समझाऊँ। आप जिस ऑफिस में नौकरी करते हों, वहाँ आपके आसिस्टिन्ट को बेअक्कल कहा कि उससे आपकी अक्कल पर अंतराय पड़ा! बोलो, अब पूरे जगत् ने इन अंतरायों में फँस फँसकर, इस मनुष्य जन्म को यों ही खो डाला है! आपको राइट ही नहीं है, सामनेवाले को बेअक्कल कहने का। आप ऐसा बोलो तब सामनेवाला भी उल्टा बोलेगा, उससे उसे भी अंतराय पड़ेंगे ! बोलो अब, इन अंतरायों में पड़ने से जगत् किस तरह रुके? किसीको आप नालायक कहो तो आपकी कुशलता पर अंतराय पड़ता है! आप उसके तुरन्त ही प्रतिक्रमण करो तो वह अंतराय पड़ने से पहले धुल जाएगा।
इलायची महँगी, लौंग महँगे, सुपारी महँगी, इसलिए लोग खाते नहीं हैं। वह खाने को नहीं मिलता है, वह अंतराय पड़े हुए हैं इसलिए। घर में सात व्यक्ति श्रीखंड खा रहे हों और एक व्यक्ति बाजरे की रोटी और छाछ खाता है, डॉक्टर ने कहा होता है कि श्रीखंड खाओगे तो मर जाओगे ! वह अंतराय किसलिए पड़ता है? खाना सामने आया तब हमने उसका तिरस्कार किया होगा, इसलिए।