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(१) जागृति
आप्तवाणी-४
चंचलता ही दुःख का कारण मनुष्य की दो प्रकार की जागृति है, एक स्थिरता की जागृति और एक चंचलता की जागृति। मनुष्य चंचलता की जागृति में आगे बढ़ गया है, स्थिरता की जागृति में एक प्रतिशत भी जागृत नहीं हुआ। और चंचलता की जागृति में कोई १० प्रतिशत, कोई १५ प्रतिशत, कोई २० प्रतिशत, कोई ३० प्रतिशत जागृत हुआ होता है। चंचलता की जागृति जानवर बनाती है
और स्थिरता की जागृति मोक्ष में ले जाती है। जिस जागृति से स्थिरता बढ़ती है, वह जागृति सच्ची। ये अमरीकन बेहद चंचल हो गए हैं, वे महान दुःख में फँस गए हैं। उनके दु:ख तो रोने से भी नहीं जाएँगे। आत्महत्या करोगे तो भी नहीं जाएँगे, वैसे दुःख खड़े हो रहे हैं। खुद, अपने ही जाल में फँस गए हैं। थोड़े समय बाद वहाँ पर चीख-पुकार मच जाएगी। अभी तो इगोइजम कर रहे हैं। चंचलता बढ़ी यानी फँसते हैं। चंचलता बढ़े तब क्या करते हैं? हाई-वे पर ६७ वें मील पर, दूसरे फलांग पर वहाँ से फोन करने का कोई साधन नहीं हो तो वहीं से फोन करने का साधन रखो ऐसा कहते हैं, 'अरे, क्यों दूसरे फलांग पर ही लगाना है?' तब कहते हैं कि, 'पहले फलांग पर है, तीसरे फलांग पर है, पर दूसरे फलांग पर फोन करने का साधन नहीं है!' देखो तो सही, कितनी अधिक चंचलता हो गई है! यह मेडनेस है! इतना सारा खाने-पीने का है, फिर भी परा वर्ल्ड मेडनेस में पड़ा है। लोग दुःखी, दु:खी और दु:खी! परमानेन्ट दु:खी !! एक क्षण के लिए भी सुखी नहीं!! जब तक स्थिरता की शक्ति उत्पन्न नहीं होती, तब तक सुखी किस तरह से हो सकते हैं?
प्रश्नकर्ता : दो विचारों के बीच में स्थिरता होती है क्या?
दादाश्री : ऐसा है न, वह स्थिरता सब बेकार है। वह 'पेकिंग' की स्थिरता, किसी काम की नहीं है। वह स्थिरता तो. स्थिरता नहीं कहलाती न? स्थिरता तो अडिग होनी चाहिए। ऊपर से एटमबोम्ब गिरनेवाला हो, तब भी स्थिरता नहीं टूटे, वह स्थिरता कहलाती है, जगत् का मन चंचल है। हमारा मन स्थिर गति से घूमता रहता है, यानी कि जैसे यहाँ पर दो हजार लोग हों और हमें उनसे शेकहेन्ड करना हो तो वे शेकहेन्ड करते
जाएँगे और आगे बढ़ते जाएँगे। उसी तरह हमारे मन के विचार शेकहेन्ड करते-करते जाते हैं। कोई विचार खड़ा नहीं रहता। एक सेकन्ड के लिए भी खड़ा नहीं रहता! और आपका एक विचार पंद्रह मिनिट तक खड़ा रहता है, आधे घंटे तक खड़ा रहता है। खडा रहता है या नहीं रहता?
प्रश्नकर्ता : हाँ, खड़ा रहता है।
दादाश्री : हमारा भी मन तो है। मन नहीं हो तब तो 'एबसन्ट माइन्डेड' कहलाएँगे। हमारा मन बहुत प्रखर है। ऊपर एटमबोम्ब पड़े वैसा लग रहा हो, तो भी वह हिलता-करता नहीं है, चंचलता नाम मात्र को भी नहीं होती। मन स्थिर वेग से घूमता रहता है। और आपका तो जैसे यह गुड़ का टुकड़ा पड़ा हो न और मक्खियाँ उसके आसपास चक्कर लगाती ही रहती हैं, वैसे ही आपका मन किसी चीज़ को देखे तो फिरता ही रहता है उसके पीछे।
प्रश्नकर्ता : वह चंचलता निकालें किस तरह से?
दादाश्री : अब ज्ञान के बाद आपको चंचलता निकालने की ज़रूरत ही नहीं है न? आपको तो देखते रहना है। मैंने तो आपको ज्ञान दिया है। अब वह चंचलता क्या करती है, 'आपको' वह 'देखते' ही रहना है। बाक़ी जगत् के लोग तो, मन के साथ खुद भी खेलने लगते हैं। मन नाचे तब वे भी नाचते हैं। अरे, मन नाच रहा है। 'तू' उसके नाच देखता रह न ! यह तो 'आप' भी उसके साथ नाचते हो। मनचाहा विचार आए तब 'आप' नाचने लग जाते हो और नापसंद आए तो उसके साथ झगड़ते हो कि 'तू कहाँ आया? तू कहाँ आया?' नापसंद विचार आएँ तब तो पता चल जाता है न कि मन खराब है, वह खराब विचार कर रहा है। खराब विचार आए उस घड़ी 'डिप्रेशन' आ जाता है और अच्छे विचार आएँ तब 'एलिवेट' (उत्साहित) हो जाता है । मैं तो आपको ऐसा तैयार करना चाहता हूँ कि वर्ल्ड में कोई मनुष्य आपको डिप्रेस कर ही नहीं सके। आपको डिप्रेस करने आया हो, वह खुद ही डिप्रेस होकर चला जाए!
प्रश्नकर्ता : सुषुप्ति में स्थिरता जैसी स्थिति होती है?