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अनुक्रमणिका
[१] जागृति जागृति हो, अचल स्वभाव की १ देते भावनिद्रा में से जागो १ जागृति, जागृत की आराधना पौद्गलिक जागृति : स्वरूप
से ही जागृति
२
भावनिद्रा टालो केवलज्ञान अर्थात्...
सच्ची समाधि, जागृति सहित संसार जागृति - दुःख का 'मैं' कौन? जानने से, उपार्जन
२
जागृति खुलती है खिलौनों की रमणता
अकर्त्तापद, वहाँ संपूर्ण जागृति जागृति ही परिणमित मोक्ष में ४ उपयोग क्या? जागृति क्या? १६ इन्द्रियज्ञान : जागृति
अक्रमविज्ञान के कारण जागृति १६ निजदोष दर्शन
आग्रह मात्र भावनिद्रा ही! 'टॉपमोस्ट' जागृति
हिताहित का विवेक, वह भाव जागृति-स्वभाव जागृति ८ भी जागृति जागृति की शुरूआत...
ज्ञानी जागृत वहाँ जगत्... 'योग-क्रियाकांड' जागृति नहीं चंचलता ही दु:ख का कारण १९
[२] ध्यान ध्यान का स्वरूप
२२ क्रिया में ध्यान : ध्येय, ध्याता का संधान २३ ध्यान के परिणाम अहंकार-ध्यान में नहीं, पर आत्मध्यान से ही समाधि
[३] प्रारब्ध-पुरुषार्थ पुरुषार्थ किसे कहते हैं? ३० पुरुषार्थ यानी उपयोगमय जीवन ४३ पाचन में पुरुषार्थ कितना? ३१ 'व्यवस्थित' की यथार्थ समझ ४४ जीवों का ऊर्ध्वगमन किस तरह? ३३ भाग्य बड़ा या पुरुषार्थ? ४८ तो सच्चा पुरुषार्थ कौन-सा? ३५ क्रमिक मार्ग, भ्रांत पुरुषार्थाधीन ५० प्रारब्ध कर्म क्या? संचित कर्म प्रारब्ध, किस तरह उदय में क्या?
३६ आता है? भ्रांत पुरुषार्थ और प्रारब्ध कर्म ३७ सफल हो वह पुरुषार्थ पुरुषार्थ कौन-सा करें?
[४] श्रद्धा अंधश्रद्धा-अज्ञश्रद्धा
५५ श्रद्धा-ज्ञान आत्मश्रद्धा-प्रभुश्रद्धा
[५] अभिप्राय अभिप्रायों का अंधापन ५७ स्वागत योग्य अभिप्राय अभिप्राय और इन्द्रियाँ ५८ अभिप्राय का स्वरूप अभिप्राय में से अटकण ५८ मिश्रचेतन के प्रति अभिप्राय अभिप्राय किस तरह छूटें? ५८
[६] कुशलता का अँधापन कुशलता, एक्सपर्ट होने से रोके ६४ सार (बेलेन्स) का खाता ६६
[७] अंतराय अंतराय किस तरह पड़ते हैं? ६८ ज्ञानांतराय-दर्शनांतराय किससे? ७१ मोक्षमार्ग में अंतराय ७१
[८] तिरस्कार-तरछोड़ जिसका तिरस्कार, उससे ही भय७४ तरछोड़ का उपाय क्या? ७६ तरछोड़, कितना जोखिमवाला? ७५
[९] व्यक्तित्व सौरभ वीतरागता से बरतते हैं 'ये' प्रेम और भक्ति 'ज्ञानी'
७८ निर्दोष दृष्टि, वहाँ जग निर्दोष ८७ १९५८ का वह अद्भुत दर्शन ७९ कर्ता हुआ तो बीज पड़ेंगे ८८ ज्ञान का तरीका नहीं होता ८० आत्मज्ञान मिला या प्रकट हुआ? ८८ 'ज्ञानी', मोक्ष का प्रमाण देते हैं ८१ ...तब वाणी विज्ञान कह जाती है८९ निमित्त की महत्ता
८४ ...वह कैसा अद्भुत सुख ९० पुण्य का संबंध कब तक? ८५ 'ज्ञानी' विकसित करें स्व-शक्ति ९० धर्मध्यान
८६ 'ज्ञानी' की उपमा? ९० शुक्लध्यान
८६ 'ज्ञानी' की परख मन और आत्मा
८६ आप्तवाणी-कैसी क्रियाकारी
[१०] अक्रम मार्ग 'ज्ञानी' कृपा से ही 'प्राप्ति' ९४ अक्रम में पात्रता ...अपूर्व और अविरोधाभास ९५ अहो! ऐसा ग़ज़ब का ज्ञान! ९७
[११] आत्मा और अहंकार सनातन चेतन
९९ धर्म : भेद स्वरूप से - अभेद कुदरत अर्थात्...
९९ स्वरूप से किसका किस पर क़ाबू? ९९ तरणतारण ही तारें अहंकार का स्वरूप १०१
[१२] व्यवस्था 'व्यवस्थित' की 'व्यवस्थित शक्ति' १०४ सेवा में समर्पणता कालचक्र के अनुसार... १०४ क्या नई ही समाज-रचना? १०६
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