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________________ (४०) वाणी का स्वरूप ३०९ ३१० आप्तवाणी-४ पास से वचनबल की शक्ति माँगते रहना, तो उससे वह प्राप्त होगा। हमारा वचनबल और आपकी दृढ़ इच्छा होनी चाहिए। हमारा वचनबल आपके सर्व अंतराय दूर कर देगा। आपकी परीक्षा होगी, परन्तु पार उतर जाओगे। मौन तपोबल प्रश्नकर्ता : मौन को तपोबल कहते हैं, वह किस अर्थ में? दादाश्री : मौन तपोबल अर्थात् मनुष्य किसी जगह पर मौन नहीं रख सके, वहाँ पर यदि मौन रहे तो वह मौन तपोबल में जाता है। नौकर ने प्याला फोड़ दिया, वहाँ पर मौन रहे, तो वह तप माना जाएगा। इसलिए मौन जैसी सख्ती इस जगत् में कोई नहीं है। यदि बोले तो सारी सख्ती सारी बेकार चली जाती है। सबसे बड़ा तप मौन है। बाप के साथ झगड़ा हो, वहाँ पर मौन रखे तो तप होता है। उस तप में अंदर सबकुछ विलय हो जाता है और उसमें से साइन्स उभरकर आता है। आज तो लोग मौन रखते हैं और दूसरे दिन एकसाथ सारा उफ़ान निकालते हैं! मौन तपोबल तो बहुत काम निकाल देता है। पूरे जगत् का कल्याण कर देता है। इसलिए कवि ने लिखा है न, 'सत्पुरुषनुं मौन तपोबळ, निश्चय आखा जग ने तारे!' - नवनीत । इन दादा के पास सबकुछ बोलने की छूट है, फिर भी मौन रहते हैं, वह मौन तपोबल कहलाता है। प्रश्नकर्ता : मौन किसे कहते हैं? दादाश्री : आत्मार्थ जो-जो बोला जाता है, वह सब मौन ही माना जाता है। देता है। इस संसार का जंजाल ही शब्दों में से खड़ा हुआ है। मौन से तो शक्ति बहुत ही बढ़ जाती है और बाहर की वाणी से लोगों को दुःख होता है, वह पत्थर की तरह लगता है। मौन के दिन उतना तो बंद होगा न? मौन, वह संयम लाता है। यह स्थूल मौन भी संयम लाता है। वह अहंकार का मौन कहलाता है। और 'मैं शुद्धात्मा हूँ' उस प्रकार से जागृत रहे वह शुद्धात्मा का मौन कहलाता है। प्रश्नकर्ता : तो फिर मौन कैसा होना चाहिए? दादाश्री : मौन किसे कहा जाता है कि जिसमें नोकषाय नहीं होते, हास्य, शोक, जुगुप्सा वगैरह नहीं होते। भीतर सूक्ष्म वाणी भी नहीं होती। मौन के समय स्थूल तो बोलते ही नहीं और लिखते हैं वह भी वाणी ही है। मौन में लिखते भी नहीं हैं। मौन सभी चंचलता को बंद कर देता है। लिखकर कहना, इशारा करना, कुछ भी नहीं हो, तब वह सच्चा मौन कहलाता है। प्रश्नकर्ता : हमें अंदर क्रोध आ रहा हो और बाहर मौन हो, तब क्या करें? दादाश्री : इसलिए ही तो हम कहते हैं कि वाणी से चाहे जैसा बोले, आचरण पागलों जैसा करे, परन्तु अंत में 'तू' भगवान पक्ष में रहना। शैतान पक्ष में यह सब हो चुका हो, परन्तु मन को भगवान पक्ष में रखना। शैतान पक्ष में मत दे दिया तो खत्म हो गया। प्रश्नकर्ता : इन सभी बातों में मन ही अधिक काम करता है न? दादाश्री : मन के कारण यह संसार खड़ा हो गया है। एक मन से संसार अस्त होता रहता है और एक मन से उदय होता है। प्रश्नकर्ता : सामनेवाले का व्यू पोइन्ट समझ में नहीं आए तो क्या करें? दादाश्री : मौन रहो। मौन रहने से बुद्धिहीन मनुष्य भी समझदार माने जाते हैं। कभी कहते हैं कि 'तुझमें बरकत नहीं है।' तब मौन रहना। प्रश्नकर्ता : स्थल बोलना बंद करके मौन का पालन करना हितकारी दादाश्री : स्थूल मौन तो स्थूल अहंकार को बहुत छिन्न-भिन्न कर
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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