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________________ २७० आप्तवाणी-४ दादाश्री : अनुमोदना दो प्रकार की है। एक तो अनुमोदना करनेवाले के आधार पर ही सारी क्रियाएँ होती हैं। और दूसरे प्रकार की अनुमोदना में वह सिर्फ हाँ, हाँ करता है, 'हाँ साहब, हाँ साहब' करता है। उसमें बहुत दोष नहीं है। ये सब कोई क्रिया कर रहे हों उसमें आप, 'हाँ भाई, मुझे अच्छा लगा, अच्छा है' कहा। परन्तु उसकी बहुत क़ीमत नहीं है। आप ऐसा नहीं कहते, फिर भी ये लोग करने ही वाले थे। और यदि अनुमोदना से ही क्रिया हो, वह नहीं हो तो नहीं होगा, उसका बहुत भारी दोष है। बहुत क़ीमती अनुमोदना किसकी कही जाती है कि जिसकी अनुमोदना से जगत् चल रहा है। (३५) कर्म की थियरी २६९ दादाश्री : ऐसा है कि अनुमोदन करनेवाले को भयंकर दोष लगता है। करवाता है, उसका सेकन्डरी दोष है और करनेवाले का थोड़ा-सा ही दोष है। करनेवाले का खास दोष नहीं है। ये कसाई बकरे को काटकर बेचता है, उसका उसे जो दोष लगता है, उसके बदले तो जो लोग कहते हैं कि, 'हमें माँसाहार करना चाहिए, नहीं करें तो अनाज कम पड़ जाएगा', वैसी ही प्ररूपणा करते हैं, उन्हें अधिक दोष लगता है। कसाई तो बेचारे खुद के पेट के लिए करते हैं। और ये कट्टर अहिंसा का धर्म पालनेवाले लोग बकरे( !) काटते हैं, वे किसलिए काटते हैं? प्रश्नकर्ता: वह समझ में नहीं आया। दादाश्री : ये बकरे काटनेवाले कसाई तो अच्छे हैं कि एक ही झटके में हलाल करके मार देते हैं, परन्तु हराम नहीं करते। और वे तो हराम करते हैं, घिस-घिसकर मारते हैं। पाँच सौ रुपये उधार दिए हों, तो बारह महीनों में चार सौ रुपये तो ब्याज ही हो गया होता है! फिर बुद्धि से मारते हैं। उन्हें बंदूक की ज़रूरत नहीं है। दुकान पर ग्राहक आए तो कहेंगे कि, 'इलाहाबाद का बहुत अच्छा माल आया है।' वह बेचारा भोला ग्राहक, सच्चा मानकर ले जाता है। वह सेठ समझता है कि यह बेवकूफ है तो थोपो न यहीं से। वह बुद्धि से गोली मारता है ! यह तो भयंकर रौद्रध्यान कहलाता है। इनकी क्या दशा होगी? ऐसी तो सेठ ट्रिक करता है, ऐसे तो तार डालता है कि पूरे डिस्ट्रिक्ट के किसान सेठ के घर पर रुपये लेकर आते हैं। ब्याज पर ब्याज और उसका भी ब्याज चुकाने में ही किसान मृतप्राय हो जाते हैं और सेठ डेढ़ सौ-डेढ़ सौ किलो का होकर फिरता है ! काल बदलेगा तब इसी किलो की चटनी बन जाएगी! कृपालुदेव क्या कहते हैं कि जो माँस बढ़ाने के लिए खाते हैं, वे सब माँसाहार करते हैं। भोजन जीवित रहने के लिए है। उसके बदले यहाँ से फूला, वहाँ से फूला और मोटे तरबूज जैसा हो जाता प्रश्नकर्ता : यानी अनुमोदना करनेवाले का ही गुनाह अधिक माना जाता है?
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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