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(३५) कर्म की थियरी
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दादाश्री : 'रिलेटिव' संबंध है।
प्रश्नकर्ता: कर्म आत्मा को फँसाते हैं या आत्मा कर्म को बाँधता
दादाश्री : कर्म आत्मा को फँसाते हैं । पुद्गल की इतनी अधिक शक्ति है कि देखो न अंदर परमात्मा कैसे फँस गए हैं!
प्रश्नकर्ता: आत्मा चाहे तो कर्म को खपा सकता है?
दादाश्री : खुद बंधा हुआ किस तरह से छूट सकता है? वह तो जब आत्मा स्वभाव में आए तो कर्म खपेंगे। स्वभाव में आने के बाद तो चाहे जैसे कर्म हों, फिर भी नष्ट कर देता है। 'ज्ञानी पुरुष' एक घंटे में तो कर्मों का कैसे धुँआ उड़ा देते हैं। तभी तो आपको आत्मा का निरंतर लक्ष्य बैठ जाता है, नहीं तो बैठे ही नहीं !
कर्म पुद्गल स्वभाव के हैं और वे उनके पर परिणाम बताते ही रहेंगे। हम 'शुद्धात्मा' हैं, वह स्व-परिणाम हैं। पर परिणाम ज्ञेय स्वरूप हैं और 'हम' ज्ञाता स्वरूप हैं।
कर्म और 'व्यवस्थित'
प्रश्नकर्ता: आप जिसे 'व्यवस्थित' कहते हैं, वह कर्म के अनुसार
दादाश्री : कर्म से जगत् नहीं चलता है। जगत् को 'व्यवस्थित' शक्ति चलाती है। आपको यहाँ पर कौन लेकर आया? कर्म? नहीं। आपको 'व्यवस्थित' ले आया। कर्म तो भीतर पड़ा हुआ ही था। वह कल तक क्यों लेकर नहीं आया और आज ही लाया? 'व्यवस्थित' काल इकट्ठा करता है, क्षेत्र इकट्ठा करता है, सारे संयोग इकट्ठे हो गए, तब आप यहाँ पर आए। कर्म तो 'व्यवस्थित' का एक अंश है।
भावबीज के सामने सावधान
भगवान ने कहा है, 'तू परमात्मा है। द्रव्य-भाव से स्वतंत्र है। संयोग
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आप्तवाणी-४
मात्र से स्वतंत्र है।' जब कि लोग संयोगों से अधिक चिपट गए। हमारे पास हाथ में बीज हो और दूसरा बीज नीचे जमीन में गिर गया हो तो उन दोनों में फर्क नहीं कहा जाएगा?
अर्थात् भगवान ने क्या कहा है कि हाथ का बीज हो उसे धीरे से इधर-उधर रख देना, परन्तु गिर चुके बीजों की खोज करना। क्योंकि दूसरे साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स उसे मिल जाएँ तो उग निकलेगा और बीज जमीन में गिरा अर्थात् उसे दूसरे एविडेन्स मिल जाएँगे, इसलिए वहाँ पर सावधान रहना। ज़रा-सी कोंपल उगी हो तो उसे तुरन्त ही उखाड़कर फेंक देना, नहीं तो वृक्ष रूप हो जाएगा।
अभी भीतर दूसरे आड़े- टेढ़े भाव आते हैं, वे जो पड़ चुके हैं वे बीज हैं। आपको अब जीवजंतु नहीं मारने हैं, फिर भी जंतु आपके पैर के नीचे कुचला जाए तो समझना कि यह पड़ चुका बीज है। वहाँ जागृत रहकर प्रतिक्रमण कर लेना ।
जगत् में यज्ञ चलता ही रहता है, उनमें सारे कर्म होम करते रहते हैं और नये कर्म बंधते हैं।
कर्म लय की प्रतीति
प्रश्नकर्ता: कर्मसंस्कार का विलय हो गया, वह किस तरह पता
चलेगा?
दादाश्री : जिनके संबंध में हमारा कर्म हो, वहाँ राग या द्वेष नहीं रहे, वहाँ समझना कि हमारा कर्म विलीन हो गया है और हमें पसंद या नापसंद रहता हो तो समझना कि कर्म की सत्ता अभी चल रही है।
पुद्गल के कर्मबंधन किस तरह?
प्रश्नकर्ता: परमाणु और कर्मबंधन उन दोनों का लिंक क्या है? कर्मबंधन किस तरह होते हैं?
दादाश्री आत्मा की चैतन्यशक्ति ऐसी है कि रोंग बिलीफ़ से