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(२१) तपश्चर्या का हेतु
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आप्तवाणी-४
दादाश्री : उपयोग कहीं भी रहा ही नहीं है। इसलिए उपयोग की कोई बात नहीं करता। उपयोग का उपयोग बंद हो गया है इसलिए उसे रख दिया है एक ओर। बाक़ी, उपयोग को समझाएँ तो वह आसान नहीं
नहीं कहा है भगवान ने। भगवान ने कहा है कि, 'उपवास करना, परन्तु उपवास के सार के रूप में आत्मा प्राप्त नहीं हो तो उपवास गए बेकार।' उपवास के सार के रूप में आत्मा नहीं मिला, आत्मा का कुछ समकित जैसा नहीं हुआ तो उपवास का फल संसारफल मिलेगा, उसका पुण्य मिलेगा। यह तो अनंत जन्मों से उपवास करता है, परन्तु भगवान ने उसे बिना समझे भूखों मरना कहा है। क्योंकि बिना उपयोग से किए गए सारे उपवास बेकार गए हैं !! यह तो तपवाले के साथ बैठें तो हमलोगों को भी तप करना अच्छा लगेगा ही। आत्मा तो आहारी है ही नहीं, यह देह ही आहारी है। यह तो एक बार आत्मा जानने के बाद ही स्पष्ट होता है। नहीं तो स्पष्ट होता ही नहीं।
भगवान ने कहा है कि उपयोगपूर्वक एक उपवास होगा तो काम हो जाएगा। यह आपको स्वरूपज्ञान प्राप्त हआ है, इसलिए आपसे तो शुद्धात्मा के उपयोगपूर्वक उपवास होगा, शुद्ध उपयोगपूर्वक होगा। आपके पास तो 'वस्तु' हाथ में आ गई है, पतंग की डोर आपके हाथ में है। अब उसे गोता नहीं खाने देना, वह आपके हाथ में है। एक उपवास हो सके तो एक करके तो देखो। फिर उसका 'टेस्ट' तो देखो! रविवार का दिन हो, कहीं भी जाना नहीं हो, तब करना। उसमें सोए रहना नहीं होता। सोने से उपयोग नहीं रहता न? और यह उपवास तो शुद्ध उपयोगपूर्वक करना है। उसमें पूरा दिन ये कविराज के पद पढ़ो तो बाहर भी शुद्ध और अंदर भी शुद्ध रहता है, नहीं तो हमारी पाँच आज्ञा का अवलंबन लेना चाहिए। उस तरह से पूरा दिन शुद्ध उपयोग में निकाल दो तो आपको उपवास किया हो वैसा लगेगा भी नहीं। भूख लगी है वैसा होता रहे, तो उपयोग चूक गए हों तभी वैसा होगा। भूख लगी ऐसा जानेंगे ज़रूर पर वेदेंगे नहीं। वेदें तो उपयोग चूक गए कहलाएगा। और जानें तो उपयोगपूर्वक का कहलाएगा। कुछ को तो उपवास के दिन तो बहुत अच्छा रहता है, शाता वेदनीय लगती है। यानी बिलीफ़ पर आधारित है।
प्रश्नकर्ता : 'दादा', उपयोग कहीं भी रहा नहीं, इसलिए उपयोग की कोई बात ही नहीं करता।
प्रश्नकर्ता : हाँ, समझाए तो आसान है!
दादाश्री : भगवान ने कहा है कि अशुभ में से शुभ करे तो वह भी उपयोगपूर्वक कर और शुद्ध में आए तब तू शुद्ध उपयोग-यानी परमात्म स्वरूप हो गया। यानी उपयोग रखने को कहा है। यों तो सबकुछ होता है, पर उसका अर्थ ही नहीं कोई। हालाँकि उसका फल मिलेगा, किसीका बेकार नहीं जानेवाला है। शुद्ध उपयोग 'हम' एक मिनिट भी नहीं चूके हैं कभी भी। केवल-शुद्ध उपयोग ही होता है हमारा। शुभ उपयोग तो हमारे काम का रहा नहीं।
'शुद्ध उपयोगी ने समताधारी, ज्ञान ध्यान मनोहारी, कर्म कलंक को दूर निवारी, जीव वरे शिवनारी।'
प्रश्नकर्ता : अपने 'स्वरूपज्ञान' प्राप्त किए हुए महात्मा उपवास करें तो?
दादाश्री : बहुत फायदा होगा। एक उपवास से पूरे वर्ष का फल मिलेगा, पर बहुत जागृति रखनी पड़ती है।
___ भगवान ने कहा है कि एक उपवास शुद्ध उपयोगपूर्वक हो तो पूरे वर्ष का शुद्ध उपयोग एक साथ हो जाता है। उपवास के लिए एक रात पहले ताला लगा देना चाहिए। रात को निश्चय करके सो जाएँ न कि कल शुद्ध उपयोगपूर्वक उपवास करना है। हमारी आज्ञा ले, उसके बाद 'मैं शुद्धात्मा हूँ, मैं शुद्धात्मा हूँ' के लक्ष्य में पूरा दिन रहे और हमारी पाँच आज्ञा में रहे। इस अनुसार छत्तीस घंटे मुँह पर ताला लगाकर उपवास करे तो पूरे वर्ष उसे शुद्ध उपयोग प्राप्त होगा। और भगवान ने कहा है कि यदि तुझे ज्ञान नहीं हो और उपवास करेगा तो तुझे भूखे रहने का फल मिलेगा,