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आप्तवाणी-१
तोड़ डालना। चाहे जैसे उसका समाधान लाना चाहिए। बाहर तो चले ही नहीं। हम एक बार निश्चय कर लें कि बाह्याचार शुद्ध होना ही चाहिए। निश्चय नहीं करें, तो दुकानें चलती रहती हैं। यह तो भयंकर जोखिम है। इसके समान दुनिया में और कोई जोखिम नहीं है। संसार जोखिमवाले स्वभाव का नहीं है, पर बिगड़ा हुआ बाह्याचार जोखिमवाला है। सुंदर बाह्याचार से तो देवकृपा बनी रहती है, और वे मोक्ष तक हैल्प करते हैं।
बाह्याचार के बारें में हमें ज्ञात होना चाहिए कि यह तो भारी जोखिमवाली वस्तु है, इसलिए हम उसे ज्ञानी पुरुष को अर्पण कर दें। बाह्याचार क्यों बिगड़े हैं? क्योंकि सुख नहीं है, इसलिए। जलन अभी गई नहीं मगर हमारे भीतर अनंत सुख है, फिर ऐसा नहीं होना चाहिए। हम शुद्धात्मा हुए, इसलिए अहंकार करके भी उससे दूर रहना चाहिए।
बिगड़ा हुआ बाह्याचार किसे कहते हैं?
अभी त किसी की जेब से कुछ निकाल ले तो भीतर फड़फड़ाहट होती रहती है न? वह लोकनिंद्य कहलाता है। किसी को गाली देना, धौल जमाना, शराब, सट्टा सब बिगड़े हुए बाह्याचार में आता है, जो जोखिमी कहलाता है। यह जोखिम चला लें, पर उसमें फ़ायदा भी क्या है? पर मुख्य रूप से ब्रह्मचर्य के संबंध में बाह्याचार का बिगड़ना नहीं चला सकते
और दूसरे चोरी के संबंध। दुनिया का सबसे बड़ा बाह्याचार बह्मचर्य है। उससे तो देवता भी खुश हो जाते हैं। संसार बाधक नहीं है। तू एक के बजाय चार शादियाँ कर, पर बाह्याचार बिगड़ना नहीं चाहिए। इसे (शादी से बाहर के संबंध को) तो भगवान ने अनाचार कहा है। मोक्ष में जाना हो, तो नुकसानदायक वस्तुओं को एक ओर रखना ही चाहिए न?
उद्वेग उद्वेग अर्थात् आत्मा (प्रतिष्ठित आत्मा) का वेग ऊँचे, दिमाग़ में चढ़ना।
वेग के विचार आएँ, तो शांति ही रहती है और उद्वेग के विचार
आएँ, तो अशांति ही लाते हैं। उद्वेग के विचार आएँ, तो समझ लेना कि कुछ खराब होनेवाला है।
यह ट्रेन मोशन में चलती है या इमोशनल होकर चलती है? प्रश्नकर्ता : मोशन में ही होती है। दादाश्री : यदि ट्रेन इमोशनल हो जाए तो? प्रश्नकर्ता : एक्सिडन्ट हो जाए, हजारों लोग मर जाएँ।
दादाश्री : उसी प्रकार यह मनुष्य देह मोशन यानी वेग में जब तक चलती है, तब तक कोई एक्सिडेन्ट नहीं होता है और न कोई हिंसा होती है। मगर जब मनुष्य इमोशनल हो जाता है, तो देह के अंदर अनंत सूक्ष्म जीव होते हैं, वे मर जाते हैं। क्रोध-मान-माया-लोभ इमोशनल करवाते हैं। इसलिए जो-जो जीव मर जाते हैं, उनकी हिंसा होती है और उसका बाद में फल भुगतना पड़ता है। इसलिए ही ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि भैया तू मोशन में ही रहना, इमोशनल मत होना।
उद्वेग भी इमोशनल अवस्था है। उद्वेग की अवस्था में गाँठे फटती हैं। एक साथ फूटने से चित्त उसी अवस्था में तन्मयाकार हो जाता है। असंख्य परमाणु उड़ने से भारी आवरण आ जाता है। जैसे बादल सूरज के प्रकाश को ढंक देते हैं, वैसे उद्वेग की अवस्था में ज्ञानप्रकाश जबरदस्त रूप से आवृत हो जाता है। इसलिए खुद की गज़ब की शक्ति भी आवृत हो जाती है। उद्वेग में देह या मन की स्थिरता नहीं रहती। भाला चुभे वैसा लगता है। उद्वेग सबसे बड़ा आवरण है। उसे अगर जीत लिया जाए, तो फिर क्लियर भूमिका आती है। यदि बड़े उद्वेग में से पार हो गए, तो फिर छोटों की तो क्या बिसात? मगर जहाँ स्वरूप का भान है, वहीं उद्वेग जीता जा सकता है। यदि ज्ञान नहीं हो, तो उद्वेग लाखों जन्मों तक न आए तो अच्छा, क्योंकि उसमें भयंकर परमाण खिंचते हैं और वे फिर फल तो देनेवाले ही हैं न?
उद्वेग में अधोगति में जाने के बीज बोये होने के कारण उसकी