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________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ जाते हैं उतनी ही शुद्धात्मा की ज्ञान शक्ति बढ़ती जाती है। मन को जहाँ-जहाँ कीचड़ लगा है, वहाँ-वहाँ हमारा ज्ञान-वाक्यों रूपी साबुन इस्तेमाल करोगे, तो मैल धुल जाएगा। मन यदि पकौड़े की माँग करे, तो तुरंत जागृति में आ जाना कि यह व्यवस्थित की माँग है या फिर लबाड़ों की माँग है? यदि तीन बार विचार फूटें, तो समझ लेना कि यह व्यवस्थित है। शरीर को ज़रूरत के अनुसार ही यदि भोजन मिलता रहे, तो मन-बुद्धि ठिकाने रहेंगे। यद्यपि हमारे ज्ञान में ग्रहण-त्याग नहीं है, 'व्यवस्थित' आपका मार्ग दर्शन करेगा। मन को हमेशा खुराक चाहिए, प्रेशर चाहिए। भीड़ में ही एकांत होता है, एकांत में तो उलटे मन बहकता है। हमारा ज्ञान प्राप्त किए हुए महात्मा तो संसार में निर्लेप रहते हैं और भारी भीड़ में एकांत का अनुभव करते हैं। भारी भीड़ हो, तब मन को अपनी खुराक मिल जाती है और मन उसके कार्य में मग्न हो जाता है, तभी 'शुद्धात्मा' अकेले पड़ते हैं और परमानंद में रहते हैं। किसी का मन जरा ढीला पड़ गया हो, तो अज्ञानी भी कहता है किस सोच में डूबे हो? चलो बाहर निकलो। मन तो हर तरह की बात बताता है। क्या मृत्यु का विचार हर किसी को नहीं आता? आता ही है। हर किसी को मृत्यु का विचार आता है। पर लोग क्या करते हैं? विचार आते ही उसे भगा देते हैं। तो फिर सभी विचारों का भगा दो न? पर नहीं, दूसरा अच्छा लगनेवाला विचार आया तो नहीं भगाते। हमारा ज्ञान ही ऐसा है, मृत्यु का पल आए तब 'स्वयं' संपूर्ण प्रकट हो ही जाता है। उस समय 'स्वयं' की गुफा में ही चला जाता है। मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार सभी चुप। बम गिरनेवाला हो, तब मुआ कैसा चुप हो जाता है? वैसे ये सभी चुप हो जाते हैं। इसलिए मृत्यु के समय समाधि हो जाती है। हमारे ज्ञानिओं (स्वरूपज्ञान प्राप्त महात्माओं) को समाधि मरण होता है। मन फिज़िकल है मन तो कम्पलीट फिज़िकल है, मैकेनिकल है। उदाहरणतया, कोई एक मनुष्य कोई मशीनरी बनाता है। वह बनाता है तब उसका आत्मा मशीनरी के साथ एकाकार हो जाता है और मशीनरी चलती है, तब अहंकार करता है कि मैंने कैसी सुंदर बनाई? पर यदि उस मशीन को बंद करने का साधन उसमें नहीं किया हो, तो वह आदमी उसे बंद कैसे करेगा? और यदि भूल से भी उसके द्वारा ही निर्मित मशीन के किसी गीयर में उसकी उँगली फँस गई, तो क्या मशीन उसकी शर्म रखेगी? नहीं रखेगी। फट् से उँगली काट देगी, क्योंकि मशीन फिज़िकल है। उस पर बनानेवाले की सत्ता नहीं चलती। ऐसा ही मन का हाल है। बॉडी के परमाणु से, हलके परमाणु से, वाणी बँधती है और उनसे भी हलके परमाणु से मन बँधता है। मन के प्रकार मन के दो प्रकार हैं, स्थूल मन और सूक्ष्म मन। अन्य शब्दों में, सूक्ष्म मन को 'भाव मन' और स्थूल मन को 'द्रव्य मन' कहते हैं, कारण मन और कार्य मन। भाव मन का स्थान कपाल में, सेन्टर में, भ्रमर से ढाई इंच की दूरी पर रहा है। जब कि स्थूल मन हृदय में है। स्थूल मन पंखुड़ियोंवाला है। इसलिए ही, कई लोग कहते हैं कि मेरा दिल कबूल नहीं करता। कुछ दहशत हो, तब दिल में खलबली मच जाती है। वह द्रव्य मन है। द्रव्य मन कम्पलीट इफेक्ट है, डिस्चार्ज स्वरूप में है। जब कि भाव मन कॉज़ेज़ उत्पन्न करता है, वह चार्ज करता है। भाव मन सहेतुक है। इसलिए नये बीज पडते हैं। हेत पर से भाव मन पकड़ में आता है। पर उस हेतु को देखनेवाली दृष्टि खुद में होती नहीं है न? जब 'खुद' शुद्धात्मा हो जाए और पूर्णरूप से निष्पक्षता उत्पन्न हो और मन को कम्पलीटली, अलग फिल्म की तरह देख सके, तभी भाव मन क्या है, यह समझ में आएगा। भाव मन तक तो बिना सर्वज्ञ के कोई पहुँच ही नहीं सकता। ज्ञानी पुरुष जो सर्वज्ञ हैं, वे आपके भाव
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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