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आप्तवाणी-१
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आप्तवाणी-१
उसे मैंने पहले से समझा दिया था कि यह तो कलियुग है। कलियुग का असर बेटी पर भी होता है, इसलिए सावधान रहना। यह बात वह अच्छी तरह समझ गया और जब उसकी बेटी घर छोड़कर किसी के साथ भाग गई, तब उस आदमी ने मुझे याद किया। मेरे पास आकर मुझसे कहने लगा, 'जो बात आपने कही थी वह सही थी, यदि आपने मुझे सावधान नहीं किया होता, तो मुझे जहर ही पीना पडता।' ऐसा है यह संसार! पोलंपोल। जो हो उसका स्वीकार करना पड़ता है। तब जहर थोडे पीया जाता है? ऐसा करने पर लोग तुझे पागल कहेंगे। यह लोग तो कपड़े पहनकर आबरू ढंकते हैं और कहते हैं कि हम खानदानी हैं!
जब कि ज्ञानी पुरुष बड़े सयाने होते हैं। पूरा सड़े, उससे पहले ही काट डालते है। इस संसार को कम्प्लीटली पोलंपोल देखना (अनुभव करना) कोई ऐसी-वैसी बात है?
ये चरवाहे क्या करते हैं? भेड़ों को पुचकारकर बाड़े में बाँधते हैं, एक भी भेड़ को छटकने नहीं देते। भेड़ें समझती हैं कि बाघ से हमारी रक्षा करते हैं और चरवाहा कहता भी है कि मैं भेड़ों की रक्षा करता हूँ। पर चरवाहे उन भेड़ों का क्या-क्या उपयोग कर लेते हैं, यह भेड़ों की समझ में कैसे आए? रोज़ाना दुह लेते है। भेड़ों के बाल, जो ठंड से उनकी रक्षा करते हैं, उन्हें उतार लेते हैं और आखिर में कोई मेहमान आएँ, तो उसका साग बनाकर खा जाते है! इसका नाम पोलंपोल!
मनुष्यों की निराश्रितता इस कलियुग के सभी मनुष्य निराश्रित कहलाते है। ये सारे जानवर आश्रित कहलाते हैं। इन मनुष्यों को तो किसी का आसरा तक नहीं है। जिस किसी का आसरा लिया हो, वह खुद ही निराश्रित होता है। तब फिर तेरा क्या भला होगा? अब निराश्रित किस प्रकार, वह मैं तुम्हें भगवान की भाषा में समझाता हूँ।
एक सेठ, एक साधु और उनका पालतू कुत्ता तीनों प्रवास पर निकले। रास्ते में एक घना जंगल आया और चार लुटेरे बरछे-बंदूक के
साथ सामने आ गए। इसका तीनों पर क्या असर होता है? सेठ सोचता है, 'मेरे पास दस हजार की गठरी है जो ये मुए ले लेंगे, तो मेरा क्या होगा? यदि मुझे मार डालेंगे तो क्या होगा' साध को होता है, 'हमारे पास से तो उन्हें कुछ मिलनेवाला नहीं है। यह लोटा-वोटा है उसे ले लिया, तो देखा जाएगा। पर मुए टॅगड़ी तोड़ देंगे, तो मेरा क्या होगा? मेरी सेवा कौन करेगा? सदा के लिए लंगड़ा हो गया, तो मेरा क्या होगा?' जब कि वह कुत्ता एक बार लुटेरो पर भौंकेगा। यदि लटेरों ने उसे डंडा जमाया, तो क्याऊँ-क्यांऊँ करते हुए, अपने मालिक को मार पड़ते हुए देखता रहेगा। पर उसे ऐसा नहीं होता कि मेरा क्या होगा? क्योंकि वह आश्रित है और बाकी दोनों निराश्रित हैं। 'अब मेरा क्या होगा?' ऐसा एक बार भी विचार में आए, तो वह निराश्रित है। भगवान क्या कहते हैं? 'जब तक प्रकट के दर्शन नहीं किए, तब तक तुम निराश्रित हो, और प्रकट के दर्शन हो गए, तो तुम आश्रित हो।'
प्रकट के दर्शन हो जाने के बाद बाहर के या अंदर के, कैसे भी संयोग आने पर, मेरा क्या होगा, ऐसा नहीं होता।
हमारा आसरा जिसने लिया, उसकी अनंतकाल की निराश्रितता खतम हो जाती है।
चाहे कैसे भी विपरीत संयोग क्यों नहीं हों, मगर ज्ञानी पुरुष के आश्रित को, मेरा क्या होगा, ऐसा नहीं होता। क्योंकि वहाँ 'हम' और 'हमारा ज्ञान' दोनों ही हाज़िर हो ही जाते हैं और आपका हर तरह से रक्षण करते हैं!
कुदरती तंत्र संचालन-भौतिक विज्ञान आज फ़ॉरेन में सब जगह भौतिक साइंस आवश्यकता से अधिक हो गया है, अबव नॉर्मल हो गया है। उसमें नॉर्मेलिटी चाहिए, वस्तु में नॉर्मेलिटी होगी, तो ही तू सुखी होगा। सत्तानवे फरेनहाइट इज़ बिलो नॉर्मल फ़ीवर, और निन्नानवे इज़ अबव नॉर्मल फ़ीवर। अट्ठानवे इज़ दी नॉर्मालिटी। अमरिका और अन्य फ़ॉरेन के देश अबव नॉर्मल फीवर के