________________
समर्पण इस विकराल कलिकाल के संसार सागर में उठे अशांति के झंझावात में जागृतिक मानव-मन नैया को किनारे लगाने हेतु, मनशांति - बंदरगाह की खोज कर रहे जन सामान्य के लिए,
संसार कल्याण की भावना से प्रेरित, वात्सल्य मूर्ति ज्ञानी पुरुष 'दादा भगवान' के श्री मुख से प्रवाहित हुई यह ज्ञान सरिता रूपी आप्तवाणी,
निश्चय ही अलौकिक वरदान सिद्ध होगी। तूफान में फँसी उनकी जीवन नैया को यह दादाई कुतुबनुमा सही मंजिल का दिशा दर्शन कराएगा, इस भावना के साथ
आप्तवाणी श्रृंखला की यह प्रथम कड़ी दादाजी के आश्रित बने मुक्त स्वजनों के द्वारा विनम्र भाव से मुमुक्षु जनों को सादर समर्पित.
त्रिमंत्र
आप्त विज्ञापन
हे सुज्ञजन ! तेरा ही 'स्वरूप' आज मैं तेरे करकमलों में आ रहा हूँ। कृपा करके उसका परम विनय करना ताकि तूं अपने आप, अपने ही 'स्व' के परम विनय में रहकर स्व-सुखवाली, पराधीन नहीं ऐसी, स्वतंत्र आप्तता का अनुभव करेगा।
यही है सनातन आप्तता, अलौकिक पुरुष की आप्तवाणी की। यही है सनातन धर्म, अलौकिक आप्तता का।
जय सच्चिदानंद