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आप्तवाणी-१
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आप्तवाणी-१
'शुद्धात्मा' है। वह जानता है, खुजलाने पर अभी जलन होगी तब मालूम होगा। पर वहाँ उस आनंद में तन्मयाकार हो जाता है, इसलिए फिर चार्ज होता है। डिस्चार्ज मोह खप रहा है, पर तन्मयाकार होकर अगले जन्म के लिए फिर चार्ज करता है। मनुष्यपन चार्ज करने जाता है, पर हो जाता है गधा। ऐसा बिना ठौर-ठिकाने का है सब। हिताहित का भान ही नहीं है, इसलिए करने जाए क्या और हो जाता है क्या? लोकनिंद्य कार्य होता हो, वहाँ मन-वचन-काया से कह देना और उन्हें खींच लेना, पर लोकमान्य हो, तो हर्ज नहीं है। लोकअमान्य हो, वहाँ पर उपाय करना पड़ता है। मिकेनिकल 'मैं' को कंट्रोल में रखने की सत्ता मूल 'मैं' की नहीं है। इंजन चालू होने के बाद बंद करने की सत्ता रहती नहीं है। चार्ज होने के बाद डिस्चार्ज होगा ही। उसमें भगवान की भी सत्ता नहीं थी। डिस्चार्ज में तो बैटरी जैसी चार्ज हुई होगी, वैसी ही डिस्चार्ज होगी। मूल स्वरूप में 'मैं' जानने के बाद कोई बैटरी चार्ज नहीं होती। चार्ज बंद हो जाता है। स्वरूप का ज्ञान मिलने के बाद डिस्चार्ज में दखल नहीं होता, पर काफी कुछ तो पुरुषार्थ से खप जाता है।
नहीं है। जन्में तब से ही मन-वचन-काया की तीन बैटरियाँ डिस्चार्ज होती रहती हैं। क्योंकि पूर्व जन्म में चार्ज किया था इसलिए। डिस्चार्ज हो तब पता चलता है कि उलटा चार्ज किया था। इसलिए फिर से सुलटा चार्ज करें, तो सुलटी लाइफ जाएगी। बाकी आज की तो सारी फिल्म तैयार हो चुकी है, वही है। अब जो रोल अदा करने को आया है, उसे अदा कर। जो फिल्म आज परदे पर दिखाई देती है, उसकी शूटिंग तो पहले कब की हो चुकी है, पर आज उसे वह पर्दे पर देख रहा है। उसमें जब अनचाहा आता है, तब चिल्लाता है कि कट करो, कट करो, मगर अब कट कैसे हो सकती है? वह तो जब शूटिंग कर रहे थे, तब सोचना था न? चार्ज करते थे, तब सोचना था न? अब तो कोई बाप भी बदल नहीं सकता। इसलिए बिना राग-द्वेष किए चुपचाप फिल्म पूरी कर दे।
सारा संसार ही चार्ज के वश में हो गया है।
रुचि-अरुचि, लाइक एन्ड डिस्लाइक. सभी अब डिस्चार्ज मोह है और राग-द्वेष चार्ज मोह है। चार्ज भगवान की आज्ञा के विरुद्ध है, डिस्चार्ज भगवान की आज्ञा के विरुद्ध नहीं है।
लोग डिस्चार्ज मोह के पत्ते काटते रहते हैं, पर चार्ज मोह तो चालू ही है, तो कैसे पार आए? कुछ तो डालियाँ काटा करते हैं, कुछ सारा तना ही काट देते हैं, पर जब तक जड़ रहेगी, तब तक वह फिर से उगता जाएगा। इसलिए लोग चाहे जितने उपाय करें, इस संसार वृक्ष को निर्मूल करने के लिए वैसे हल निकलनेवाला नहीं है। वह तो ज्ञानी पुरुष का ही काम है। ज्ञानी पुरुष पत्ते, डाली, तना किसी को नहीं छूते, अरे! छोटीछोटी असंख्य जड़ों को भी नहीं छूते। वे तो वृक्ष की मुख्य जड़ को जानते है और पहचानते हैं। वहाँ पर चुटकी भर दवाई लगा देते हैं, जिससे सारा वृक्ष सूख जाता है।
ज्ञानी पुरुष और कुछ नहीं करते। वे केवल आपकी चार्ज बैटरी को सरका कर दूर रख देते हैं, ताकि फिर से चार्ज नहीं हो। आपका चार्जिंग पोइन्ट ही पूरा का पूरा उड़ा देते हैं।
चार्जेबल मोह चार्ज होता है, पूरण होता है। १ अंश, २ अंश, ३ अंश ऐसे पूरण होते होते ५०० तक पहुँचता है। अब मोह डिस्चार्ज होता है, तब कैसे होता है? पहले एकदम से ५०० पर आता है। जैसे, क्रोध पहले ५०० डिग्री का आता है, फिर ४५० पर आता है, फिर ४०० पर आता है, ऐसा करते-करते अंत में २ पर आकर खतम हो जाता है, संपूर्ण डिस्चार्ज होता है। प्रत्येक वस्तु डिस्चार्ज में एकदम से आती है, फिर धीरे-धीरे घटती जाती है। क्रोध पहले ५०० पर आकर एकदम धमाका करता है। ५०० से शुरू होकर फिर धीरे-धीरे खत्म होता जाता
राह चलते रुचि-अरुचि उत्पन्न हो, ऐसा होता रहता है। हमारी इच्छा नहीं हो, फिर भी रुचि-अरुचि होती रहती है, पर रुचि क्यों होती है और अरुचि क्यों होती है? इस पर कोई विचार ही नहीं करता। तेरी इच्छा नहीं हो, तो भी उसमें परिवर्तन संभव नहीं है। तेरी इच्छा की बात