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आप्तवाणी - १
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है। यह बुद्धि क्या करती है? खुद के दोष ढँकती है और दूसरों के देखती है। यह तो उलटे मनुष्य का काम है। जिसकी भूलें नष्ट हो गई हैं, वह दूसरों की भूलें नहीं देखता। ऐसी बुरी आदत ही नहीं होती, सहज ही निर्दोष देखता है। ज्ञान ऐसा होता है कि ज़रा-सी भी भूल नहीं देखता ।
दोष तो सभी के गटर हैं। ये बाहर के गटर हम खोलते नहीं हैं, छोटे बच्चे को भी वह अनुभव होता है। रसोईघर रखा है तो गटर तो होना ही चाहिए न? परंतु उस गटर को खोलना ही नहीं। किसी में कोई दोष हो, कोई चिढ़ता हो, कोई उतावला होकर घूमता हो, ऐसा देखना वह गटर खोला कहलाता है। उसके बजाय गुणों को देखना अच्छा। गटर तो अपना खुद का ही देखने योग्य हैं। पानी भर गया हो, तो खुद का गटर साफ करना चाहिए। यह तो गटर भर जाता है, पर समझ में नहीं आता और समझ में आए, तो भी करे क्या ? आखिर वह अभ्यस्त हो जाता है, उसीसे तो ये सारे रोग पैदा हुए हैं। शास्त्र पढ़कर गाते हैं कि किसी की निंदा मत करना, पर निंदा तो चालू ही रहती है।
किसी के बारे में ज़रा उलटा बोला, तो उतना नुकसान तो हुआ ही समझो। यह बाहरवाले गटर के ढक्कन को कोई नहीं खोलता, पर लोगों के गटर के ढक्कन खोलते ही रहते हैं।
किसी की निंदा करने का मतलब है, अपना दस रुपये का नोट देकर एक रुपया लेना । निंदा करनेवाला हमेशा खुद का ही नुकसान करता है। जिसका कोई फल नहीं मिलता हो, ऐसी मेहनत हम नहीं करते। निंदा से आपकी शक्तियों का दुर्व्यय होता है। यदि हमें पता चले कि यह तिल नहीं है पर रेत है, तो फिर उसे पेलने की मेहनत क्यों करें? टाइम और एनर्जी दोनों वेस्ट होते है। निंदा करके तो सामनेवाले का मैल धो दिया और तेरा अपना कपड़ा मैला किया। इसे अब कब धोएगा, मुए?
यह हमारे 'मुआ' शब्द का भाषांतर या अर्थ आप क्या करेंगे? इस शब्द का गूढ़ अर्थ है। इसमें उलाहना तो है, मगर तिरस्कार नहीं हैं। बहुत गहरा शब्द है। हमारी ग्रामीण भाषा है, पर है पावरफुल। एक-एक वाक्य
आप्तवाणी - १
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पर विचार करने लगें, ऐसा है क्योंकि यह तो ज्ञानी की हृदयस्पर्शी वाणी है, साक्षात सरस्वती !
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स्मृति
प्रश्नकर्ता: दादाजी, भूतकाल भूल नहीं सकते, ऐसा क्यों?
दादाश्री : भूतकाल अर्थात् याद करने पर याद नहीं आता और भूलना चाहें, तो भुलाया नहीं जाता, उसका नाम भूतकाल । सारे संसार की बहुत इच्छा है कि भूतकाल भुलाया जा सके, पर बिना ज्ञान के संसार की विस्मृति नहीं हो सकती ।
यह याद आती है, वह राग-द्वेष के कारण है। जिसका जिस वस्तु पर जितना राग है, उतनी वह वस्तु उसे याद आया करती है और यदि द्वेष हो, तब भी वह वस्तु ज़्यादा याद आया करती है। बहू सास को भूलने पीहर जाती है, पर भूल नहीं पाती, क्योंकि द्वेष है, अच्छी नहीं लगती। जब कि पति याद आता है, क्योंकि सुख दिया था इसलिए राग है। जिसने बहुत दुःख दिया हो या बहुत सुख दिया हो, वही याद आता है, क्योंकि राग-द्वेष से बंधे हैं। उस बंधन को मिटा दें, तब विस्मृत हो जाएगा। अपने आप ही विचार आया करें, उसे 'याद' आना कहते है। यह सब धो दिया जाए, तो स्मृति बंद हो जाती है और उसके बाद मुक्त हास्य उत्पन्न होता है। स्मृति है इसलिए तनाव रहता है। मन खिंचा हुआ रहता है, इसलिए मुक्त हास्य उत्पन्न नहीं होता। सबको अलग-अलग याद आया करता है। एक को याद आता हो वह दूसरे को याद नहीं आता, क्योंकि सबके अलग-अलग ठिकानों पर राग-द्वेष होते हैं। स्मृति राग-द्वेष के कारण है।
प्रश्नकर्ता: दादाजी, उसे निकालनी तो पड़ेगी न?
दादाश्री : स्मृति इटसेल्फ बोलती है कि हमें निकालो, धो डालो। यदि स्मृति नहीं आती, तो सब गड़बड़ हो जाता। वह यदि नहीं आएगी, तो आप किसे धोएँगे? आपको मालूम कैसे होगा कि कहाँ पर राग-द्वेष